रेफल कहीं मोदी को न ले डूबे ?

ओलांद ने खुद को बचा लिया लेकिन मोदी को फंसा दिया। सरकार की सिट्टी-पिट्टी गुम है।

New Delhi, Sep 23 : लड़ाकू विमान रेफल के सौदे ने अब बड़ा खतरनाक मोड़ ले लिया है। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने इसी विमान से मोदी सरकार पर बम बरसा दिए हैं। वह विमान बनने के बाद भारत आएगा या नहीं, कुछ पता नहीं लेकिन यह भी पता नहीं कि मोदी सरकार अब अपनी जान कैसे बचाएगी ? जैसे बोफर्स राजीव गांधी को ले डूबा, कहीं वैसे ही रेफल मोदी को न ले डूबे। ओलांद ने एक फ्रांसीसी पत्रकार को रेफल-सौदे के बारे में जो इंटरव्यू दिया है, उसमें उन्होंने साफ-साफ कहा है कि अनिल अंबानी की कंपनी को इस सौदे में शामिल करने का प्रस्ताव भारत सरकार ने दिया था। वे भारत सरकार के प्रस्ताव को रद्द कैसे करते ?

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ओलांद ने यह बयान क्यों दिया ? इसलिए दिया कि फ्रांस के अखबारों में उन पर यह आरोप लग रहा था कि वे अपनी प्रेमिका जूली गाए को खुश करना चाह रहे थे। जूली उनके साथ 26 जनवरी 2016 को भारत आई थी। वह एक बहुत मंहगी फिल्म बना रही थी। अंबानी ने उसे पटाया। 85 करोड़ रु. की फिल्म का एक चौथाई खर्च अंबानी ने उठाने का वादा किया याने लगभग 20-21 करोड़ रु. की रिश्वत दे दी।

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इस आरोप से बचने के लिए ही ओलांद ने सफाई दी और कहां कि उन्हें इस फिल्म के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। ओलांद ने खुद को बचा लिया लेकिन मोदी को फंसा दिया। सरकार की सिट्टी-पिट्टी गुम है। रक्षा मंत्रालय आंय-बांय-शांय कर रहा है। रक्षा मंत्री निर्मला सेतुरामन के सिर के ऊपर से पानी बह रहा है। उन्हें क्या पता कि मोदी, अंबानी और ओलांद के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी ? मोदी ने ओलांद को गणतंत्र दिवस (2016) पर मुख्य अतिथि आखिर क्यों बनाया ? अनिल अंबानी जैसे विफल उद्योगपति को लड़ाकू जहाज बनाने की अनुमति कैसे दे दी ? अंबानी को 2015 में मोदी अपने साथ पेरिस क्यों ले गए थे ?

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जहाज बनानेवाली सरकारी कंपनी हिंदुस्तान एयरोनाॅटिक्स लि. की जगह एक गैर-सरकारी कंपनी, जो कल पैदा हुई और जिसको विमान-निर्माण का कोई अनुभव नहीं, उसे यह सौदा कैसे मिल गया ? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि 500 करोड़ के जहाज की कीमत 1600 करोड़ रु. कैसे हो गई ? 60 हजार करोड़ रु. के इस सौदे में फ्रांसीसी कंपनी दुस्साल्ट को यदि 15 हजार करोड़ भी दे दिए गए तो प्रश्न यह है कि शेष 45 हजार करोड़ रु. का क्या होगा ? वे किसकी जेब में जाएंगे ? अनिल अंबानी को 5-10 हजार करोड़ से ज्यादा मिलना तो असंभव है। तो क्या बोफर्स की तरह वे फिर लौटकर दबे-छुपे भारत ही आएंगे ? इस प्रश्न को जोरों से उठानेवाले हमारे ‘पप्पू’ का चप्पू अब ‘गप्पूजी’ की खाल उधेड़कर रख देगा। गप्पूजी के पास अभी भी मौका है। रेफल विमान अभी बनने शुरु नहीं हुए हैं, बोफर्स की तरह। उसे रद्द करने में ही समझदारी है। डर यही है कि कही सौदा रह न जाए और सरकार ढह न जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)