मध्य प्रदेश के ‘नोएडा’ ने छीनी सीएम शिवराज की कुर्सी, 13 साल बाद गए थे और ये हो गया
मध्य प्रदेश के ‘नोएडा’ के बारे में क्या जानते हैं आप, अगर नहीं और ये समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर ये है क्या तो हम आपको बताते हैं । मध्यप्रदेश का एक ऐसा प्रदेश जहां जाना शिवराज सिंह चौहान को कितना भारी पड़ा, आगे पढ़ें ।
New Delhi, Dec 13 : राजनीति को जानने वाले और इससे जुड़ी खबरों में अपनी रुचि रखने वाले नोएडा के बारे में अच्छे से जानते होंगे । नोएडा से जुड़ा मिथक, या अंधविश्वास ये है कि यहां जो भी मुख्यमंत्री जाता है, उसकी कुर्सी चली जाती है । उत्तर प्रदेश के मामले में ये मिथक कई बार सत्य साबित हो चुका है । एक ऐसा ही नोएडा या कह लें क्षेत्र मध्यप्रदेश में भी है, जहां जो-जो मुख्यमंत्री गया उसकी कुर्सी फिर उसकी नहीं रही ।
मध्यप्रदेश का ‘अशोक नगर’
मध्यप्रदेश में एक क्षेत्र है अशोक नगर, इसे आप भी मध्यप्रदेश का नोएडा कहेंगे, जब आप जानेंगे
कि यहां जाने वाला कोई भी मुख्यमंत्री अपनी कुसी नहीं बचा पाया । ताजा उदाहरण पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही हैं, 13 वर्षों से वो इस क्षेत्र से दूर रहे लेकिन जब वो यहां आए तो फिर कुर्सी को नहीं संभाल पाए । मध्यप्रदेश के नतीजे इस बार शिवराज सिंह के फेवर में नही रहे, और इसे संयोग ही कहिए कि अशोक नगर में इसी बार शिवराज सिंह ने दौरा किया था ।
13 साल तक टालते रहे
मध्यप्रदेश के मुख्मंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान कई बार आमंत्रित किए जाने के बाद भी अशोक
नगर जाना टालते ही रहे । उन्होने खुद 2013 में आने का वादा किया, लेकिन वादा करके भी वह नहीं पहुंचे । 24 अगस्त 2017 को अशोकनगर कलेक्ट्रेट की नई इमारत का उद्घाटन था जिसके लिए मुख्यमंत्री को आमंत्रित किया गया । उन्होंने इनवाइट को स्वीकार भी किया लेकिन वो गए नहीं । कई बार ज्योतिरादित्य सिंधिया उन पर ये कहकर ही आरोप लगाते रहे कि शिवराज सिंह चौहान को अशोक नगर भी आना चाहिए । आखिर यह भी उनके ही राज्य का हिस्सा है ।
इसी साल किया अशोक नगर में प्रचार
शिवराज इस साल की शुरुआत में अशोकनगर की एक विधानसभा सीट के लिए प्रचार के लिए
पहुंचे थे । यहां की मुंगावली सीट पर उपचुनाव होना था, तब और कुछ समय पहले ही शिवराज यहां चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे । शिवराज सिंह ने एहतियातन सड़क रास्ते की जगह हैलीकॉप्टर से जाना सही समझा था लेकिन कोई फायदा नहीं । अशोक नगर से जुड़ा अंधविश्वास एक बार फिर सच साबित हुआ और शिवराज की कुर्सी हाथ से निकल गई ।
इन लोगों के हाथ से भी गई कुर्सी
सत्ता में रहकर अशोकनगर जाकर कुर्सी गंवाने वाले कुछ और नेताओं के नाम भी हैं, इनमें एक है प्रकाश चंद्र सेठी – वर्ष 1975 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी पार्टी के एक अधिवेशन में अशोकनगर गए और साल खत्म होते-होते इनकी कुर्सी चली गई । 1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामा चरण तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने अशोकनगर आये थे, कुछ ही महीने बाद 29 मार्च 1977 को इन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी । 1985 में कांग्रेस के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह भी इस मिथक के जाल में फंसे । इनके मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी क्षेत्र के दौरे पर आये । इन्हें भी उनके साथ अशोक नगर जाना पड़ा । कुछ समय बाद हालात ऐसे बने कि इनकी भी कुर्सी जाती रही।
ये नेता भी मिथक के बने शिकार
1988 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा भी अशोक नगर मिथक के शिकार बने । रेलवे स्टेशन के फुटओवर ब्रिज का उद्घाटन करने इन्हें अशोक नगर जाना पड़ा, कुछ समय बाद ही ये मुख्यमंत्री नहीं रहे । 1992 में अशोक नगर में हुए एक र्काक्रम में शामिल हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा की भी कुर्सी कुछ समय बाद ही चली गई । वहीं 2001 में दिग्विजय सिंह अशोक नगर गए थे । हालांकि इन पर इस मिथक ने देरी से काम किया, 2003 में इन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी ।