सपा-बसपा गठबंधन में रालोद की एंट्री, आखिर क्यों हर समझौते के लिये तैयार हैं जयंत चौधरी
पश्चिमी यूपी में लोकसभा की 22 सीटें है, पिछली बार बीजेपी के आगे सबने घुटने टेक दिये थे, लेकिन इस बार बीजेपी को घेरने के लिये तमाम दल गुटबंदी कर रहे हैं।
New Delhi, Jan 17 : सपा-बसपा गठबंधन के ऐलान के बाद से यूपी में सियासी पारा चढा हुआ है, बीती शाम रालोद प्रमुख के बेटे जयंत चौधरी ने अखिलेश यादव से मुलाकात की, जिसके बाद तरह-तरह की चर्चाएं शुरु हो गई। जयंत ने सपा अध्यक्ष से मुलाकात के बाद मीडिया से बात की, उन्होने कहा कि उनके लिये सीट से ज्यादा रिश्ते अहम हैं, और अखिलेश यादव के साथ खुशनुमा माहौल में बात हुई, उनका रुख लचीला है, यानी सपा-बसपा गठबंधन में रालोद की भी एंट्री तय मानी जा रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश
आपको बता दें कि पश्चिमी यूपी में लोकसभा की 22 सीटें है, पिछली बार बीजेपी के आगे सबने घुटने टेक दिये थे, लेकिन इस बार बीजेपी को घेरने के लिये तमाम दल गुटबंदी कर रहे हैं, पश्चिमी यूपी को लेकर सीटों के बंटवारे का जो फॉर्मूला तय हुआ है, उसमें तीन सीटों पर रालोद अपने सिंबल पर लड़ेगी, जबकि हाथरस सीट पर प्रत्याशी रालोद का होगा, लेकिन चुनाव चिन्ह सपा को होगा, पश्चिमी यूपी में 8 सीटों पर सपा और 11 सीटों पर बसपा के प्रत्याशी मैदान में होंगे।
औपचारिक ऐलान बाकी
सूत्रों का दावा है कि सीटों का बंटवारा हो चुका है, बस औपचारिक ऐलान बाकी है, बसपा के खाते में नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, फतेहपुर सीकरी, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर, नगीना और अलीगढ लोकसभा सीट गई है, जबकि पश्चिमी यूपी के बागपत, मुजफ्फरनगर और मथुरा सीट पर महागठबंधन की ओर से चौधरी अजित सिंह की पार्टी का प्रत्यशी मैदान में होगा।
पिछली बार खाता नहीं खुला था
2014 में मोदी लहर में बसपा और रालोद का खाता तक नहीं खुला था, रालोद 2014 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, इसी वजह से इस बार कांग्रेस के बार-बार बुलाने के बाद भी जयंत चौधरी और अजित चौधरी खास ध्यान नहीं दे रहे हैं, क्योंकि पिछली बार खुद अजित चौधरी और जयंत चुनाव हार गये, इसी वजह से वो कम सीटों के साथ भी सपा-बसपा गठबंधन में ही जाने को तैयार हैं।
मुजफ्फरनगर दंगे से वोट बैंक प्रभावित
आपको बता दें कि सपा शासनकाल में हुए मुजफ्फरनगर दंगे ने पश्चिमी यूपी में बीजेपी को जिंदा कर दिया, अजित सिंह का वोट बैंक माने जाने वाले जाट पूरी तरह से बीजेपी के साथ खड़े हो गये, नतीजा पश्चिमी यूपी में बाकी कोई भी दल कुछ खास नहीं कर सका, 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा में पूरी तरह से बीजेपी हावी रही, हालांकि अब देखना है कि 2019 में ऊंट किस करवट बैठती है।