राजनीति के हाशिये पर कैसे पहुंच गये चाणक्य, कभी ‘संकटमोचक’ तो कभी ‘घरतोड़वा’ की मिली उपाधि

अमर सिंह के बारे में कहा जाता है, कि वो राजनीति, फिल्म और बिजनेस के कॉकटेल हैं, सपा में रहते हुए उन्होने इसे कई मौकों पर सिद्ध भी किया।

New Delhi, Jan 27 : राज्यसभा सांसद अमर सिंह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, यूपी से सियासी सफर शुरु करने वाले अमर सिंह कभी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के दाहिने हाथ माने जाते थे, हालांकि आज वो समाजवादियों के जानी दुश्मन बनकर बैठे हैं, बीजेपी से बढती नजदीकियां उनके राजनीतिक भविष्य की ओर भी इशारा कर रही है, आज राजनीति के ये चाणक्य अपना 63वां जन्मदिन मना रहे हैं, आइये इस खास मौके पर उनके बारे में कुछ बताते हैं।

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फ्लाइट में मुलायम से मुलाकात
बताया जाता है कि साल 1996 में फ्लाइट में अमर सिंह की तत्कालीन रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव से मुलाकात हुई, जिसके बाद उन्होने राजनीति में एंट्री ली, हालांकि उससे पहले भी वो नेताजी से मिल चुके थे, लेकिन ज्यादा खास बातचीत नहीं हुई थी, मुलायम सिंह यादव ने उन्हें समाजवादी पार्टी में महासचिव बनाने का फैसला लिया, कुछ सालों तक तो मुलायम और अमर सिंह के बीच काफी घनिष्टता रही, लेकिन फिर साल 2010 में उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया, जिसके बाद उन्होने अलग पार्टी बनाई, लेकिन कुछ खास नहीं कर सके, फिर कुछ समय के लिये राजनीति से सन्यास ले लिया, उसके बाद रालोद के टिकट पर 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा, यहां भी हार मिली, फिर 2016 में सपा में वापसी हुई। लेकिन फिर अगले साल उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।

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राजनीति, फिल्म और बिजनेस
अमर सिंह के बारे में कहा जाता है, कि वो राजनीति, फिल्म और बिजनेस के कॉकटेल हैं, सपा में रहते हुए उन्होने इसे कई मौकों पर सिद्ध भी किया, कई बार उन्होने अपनी राजनैतिक समझदारी से पार्टी को उबारा, जया बच्चन से लेकर मनोज तिवारी और संजय दत्त को सपा में लेकर आये, हालांकि सपा से जब उन्हें निकाला गया, तो उसके बाद बच्चन परिवार से भी उनकी दूरियां बन गई, कहा जाता है कि अमिताभ के बुरे वक्त में अमर सिंह डटकर उनके साथ खड़े रहे, लेकिन अमर सिंह के बुरे वक्त में बच्चन परिवार ने उनका साथ छोड़ दिया।

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परिवार तोड़ने का आरोप
साल 2016 में अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच चल रही खींचतान में रामगोपाल यादव ने जिस बाहरी शख्स को बार-बार जिम्मेदार बताया, वो अमर सिंह ही थे, हालांकि विवाद के बाद उन्हें पार्टी से बाहर निकाल दिया गया, तब राज्यसभा सांसद पर आरोप लगा था कि उन्होने मुलायम को शाहजहां और अखिलेश को औरंगजेब के रुप में प्रचारित करवाया। इतना ही नहीं साल 2002 में धीरुभाई अंबानी का निधन हो गया, तब धीरुभाई ने 80 हजार करोड़ का टर्नओवर करने वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज के बंटवारे को लेकर कोई वसीयत नहीं लिखी थी, जिसके बाद मुकेश और अनिल अंबानी के बीच संपत्ति को लेकर विवाद हो गया, कहा जाता है कि अमर सिंह ने इस झगड़े में अनिल का साथ दिया था, सपा ने अनिल अंबानी को राज्यसभा टिकट भी ऑफर किया था, लेकिन उन्होने मना कर दिया।

नोट फॉर वोट में उछला नाम
यूपीए- वन के समय अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते को लेकर बीजेपी द्वारा लाये गये अविश्वास प्रस्ताव में सांसदों को कथित रुप से घूस देने के मामले में अमर सिंह का नाम आया था, तब फग्गन सिंह कुलस्ते, महावीर भगौरा तथा एक और सांसद ने संसद में नोटों के बंडल लहराये थे, हालांकि बाद में अमर सिंह इन आरोपों से बरी हो गये।