‘प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने को कुछ लोग अतिरेक और करिश्माई नजर से देख रहे’

मौजूदा माहौल में प्रियंका गांधी हर लिहाज से विरोधियों के लिेये एक मजबूत चुनौती होंगी. वर्ना जिम्मा तो अमेठी और रायबरेली का २०१२ में भी था

New Delhi, Jan 27 : प्रियंका गांधी के कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आने को कुछ लोग इतने अतिरेक और करिश्माई नजरिए से देख रहे हैं, जैसे अब कायाकल्प हो जाएगा. जैसे मनु नौका पर सवार हो गए हैं, जैसे नूह जहाज पर निकल रहे हैं, जैसे ब्रम्हा सोने जा रहे हैं, जैसे एक कल्प पूरा हो रहा है- औऱ प्रलय आनेवाला है. नए सिरे से सृष्टि रची जाएगी, नए सिरे से दुनिया रुप लेगी, सब सुंदर और शुभ होगा! ये भी खूब है!

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एक सामान्य और व्यवहारिक-सी बात है. गांधी नेहरु परिवार का एक ऐसा सदस्य मैदान में उतर रहा है जिसमें संभावनाएं हैं, जिसका जनता में आकर्षण है और जिसके जरिए कांग्रेस को फायदा होने की उम्मीद है.

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मौजूदा माहौल में प्रियंका गांधी हर लिहाज से विरोधियों के लिेये एक मजबूत चुनौती होंगी. वर्ना जिम्मा तो अमेठी और रायबरेली का २०१२ में भी था. कहा ये गया था कि आप यहां से बिलकुल मत निकलिए, पूरा जोर लगाइए. क्या हुआ था?

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रायबरेली की सारी पांच सीटें साफ औऱ अमेठी की पांच में से तीन निकल गई थीं. नतीजे २०१७ के भी कोई हौसला देनेवाले नहीं थे, लेकिन हां मोदी सरकार के पांच साल के बाद एक माहौल है जिसमें प्रियंका गांधी कई तरह की उठापटक का कारण बन सकती हैं. ऐसा नहीं है कि राजनीति और सत्ता की नए सिरे से रचना होगी. अतिरेक भावुकता है जो व्यवहारिकता और जमीनी सच से कटा होता है.

(इंडिया न्यूज के प्रबंध संपादक राणा यशवंत के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)