योगी राज में कुंभ- प्रयागराज में घुसते ही एहसास होता है, शहर का नाम ही नहीं शहर भी बदला है

प्रयागराज शहर में (पहले का इलाहाबाद) घुसते ही आपको एहसास होने लगता है कि शहर का सिर्फ नाम ही नहीं बदला है, शहर भी बदल गया है।

New Delhi, Jan 31 : इस बार का कुंभ शानदार है। श्रद्धालु हैं तो भी जाइए, पर्यटक हैं तो भी जाइए, ज्ञानातुर हैं तो भी जाइए। इंतजाम बेहतर है। सरकार की ओर से पूरी कोशिश की गई है कि जो भी आए, खुश होकर जाए। मकसद साफ है। एक साधु-योगी राज्य का मुख्यमंत्री है इसलिए इतनी शानदार व्यवस्था है। हिंदुओं की समर्थक सरकार है, इसलिए इतनी अच्छी व्यवस्था है। आप जाएंगे तो व्यवस्था तो दिखेगी ही अगर आप इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं तो खास स्नान वाले दिन उड़ते हेलीकॉप्टर जब आप पर पुष्प वर्षा करेंगे तब तो आपका ध्यान बरबस उस ओर चला ही जाएगा। चुनावी साल है, लाभ भी मिलेगा, इसमें भी कोई दो राय नहीं। लाभ ज्यादा से ज्यादा मिले, यही सरकार की कोशिश है। मेले में जाइए तो आपको बड़ा साफ-साफ दिखेगा कि लाभ मिल भी रहा है। जब हेलीकॉप्टर ऊपर से उड़ता हुआ पुष्प वर्षा करता हुआ चक्कर लगाता है तो लोग हाथ हिलाकर उसका अभिवादन करते हैं। कुछ ये भी कहते हैं कि योगी जी हेलीकॉप्टर में हैं। कुछ ये भी कहते हैं हिंदू सरकार होने का ये मतलब है। वरना तो यहां धक्का-मुक्की ही रहती थी। इसके बाद भाजपा की तारीफ शुरू हो जाती है। कुंभ क्षेत्र में जगह-जगह मोदी और योगी के कटआउट, पोस्टर और बैनर लगे हैं। कुछ जगहों पर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी टंगे हैं।

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प्रयागराज शहर में (पहले का इलाहाबाद) घुसते ही आपको एहसास होने लगता है कि शहर का सिर्फ नाम ही नहीं बदला है, शहर भी बदल गया है। सड़कें चौड़ी हो गई हैं। सड़कों पर कुंभ से संबंधित जगह-जगह सूचनाएं और बोर्ड लगे हुए हैं। पता चलता है कि शहर में कोई समारोह होने वाला है। जो लोग जानते हैं वो तो जानते ही हैं कि यह समारोह एक-दो दिन का नहीं, बल्कि पूरे कुंभ भर का है। कुंभ के संगम क्षेत्र तक पहुंचने के लिए यातायात की अच्छी व्यवस्था कर दी गई है। जिस दिन खास स्ऩान है, उस दिन जरूर यात्रियों को परेशानी होती है। उस दिन शहर में श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। उस दिन बसें निशुल्क संगम तक पहुंचाती हैं। टेंपो और ई रिक्शा जरूर संगम से पहले ही बंद कर दिए जाते हैं। वो दूरी आपको पैदल चलकर तय करनी होती है। इसलिए बेहतर है कि प्रमुख स्नान से पहले ही संगम क्षेत्र में प्रवेश कर लें। ताकि असुविधा से बच सकें।

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वैसे एक बार आप संगम क्षेत्र में पहुंच गए तो आनंद ही आनंद है। लेटे हनुमान जी के बगल से जैसे ही आगे यमुना तट की ओर बढ़ेंगे वीआईपी घाट है। वहीं से वीआईपी नाव या क्रूज से संगम पर ले जाए जाते हैं। आम लोग भी उस घाट के बगल से ही नौका लेकर संगम तक पहुंचते हैं। लेकिन अगर आपके पांव में जान बची है तो टहलते हुए जाइए। करीब एक-डेढ़ किलो मीटर का सफर भीड़ से गुजरते हुए आप तय करते हैं। इस दौरान नावों और तैरते साइबेरियाई पक्षियों का नजारा ले सकते हैं। संगम नोज पर जरूर भीड़ है। पर उतनी नहीं कि आप घबड़ाएं या कोई दिक्कत हो। पानी से बिल्कुल लगी हुई बोरियों से बना घाट है। उससे पहले कुश की तरह एक खास तरह की घास बिछी हुई है, जिसकी वजह से बालू या गंदगी नहीं है। वैसे तो लोग बिल्कुल पानी के पास तक अपने कपड़े उतारकर स्नान को पानी में उतरते हैं, पर ज्यादा भीड़ होने पर पीछे उस घास पर भी कपड़े उतार कर नहाने जा सकते हैं। वहां सुरक्षा बल के जवान तैनात हैं। बल्लियों से चौड़े-चौड़े रास्ते बनाए गए हैं। एक रास्ता वीआईपी घाट की ओर जाता है तो कुछ रास्ते सीधे संगम पर। एक रास्ता गंगा की तरफ को भी जाता है। जो संगम पर नहाना चाहे, संगम वाले रास्तों को पकड़े, गंगा में नहाना चाहे गंगा वाले रास्ते को पकड़े। इस बार पानी बहुत ज्यादा है। गंगा को देखने पर तो लगता है कि उसमें बाढ़ आई हुई है। तेज गति से पानी उमड़ता हुआ चल रहा है और सीधे जाकर यमुना में मिलता है। स्नान के लिए बैरिकेडिंग की गई है। डूबने या बहने का खतरा बिल्कुल भी नहीं है। गंगा की तेज धारा के ऊपर बैठी साइबेरियन पक्षियां मन को मोह लेती हैं।

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गंगा के दूसरी तरफ संतों के अखाड़े लगे हुए हैं। वहीं रुकने की भी व्यवस्था है। इस बार का मेला क्षेत्र भी पहले की तुलना में ज्यादा बड़ा है। जो लोग सुख-सुविधा चाहते हैं, उनके लिए फाइव स्टार जैसे टेंट लगे हुए हैं। जो संगम से वाकिंग टिस्टेंस् पर हैं। वहां से टहलते हुए आप संगम तक आ सकते हैं। लाइटिंग की व्यवस्था बहुत अच्छी है, इसलिए रात में भी इसका भरपूर मजा ले सकते हैं। यह टेंट सेक्टर 17 में लगे हुए हैं। इसके बाद सेक्टर 16 है, जहां नगा अखाड़े जमे हुए हैं। हर टेंट के सामने अलाव जल रहा है और एक नगा साधु वहां बैठा हुआ है। कोई-कोई चिलम भरता या तैयारी करता भी दिख जाता है। इसके बाद सेक्टर 15 और 14 हैं, जिनमें संतों-महात्माओं और मठों के टेंट लगे हुए हैं। उन्हीं टेंटों में उनके भक्त और श्रद्धालुओं को ठहरने की भी व्यवस्था है। सेक्टर 14 में ही अपने जमाने के सुप्रसिद्ध देवराहा बाबा का भी टेंट आश्रम है। उधर पहुंचते ही वैसी ही झोपड़ी आपको दिखती है, जिसमें देवराहा बाबा रहा करते थे। मचान पर बनी वह झोपड़ी देवराहा बाबा की याद दिलाती है। आपको याद होगा बहुत पहले हरिद्वार में कुंभ लगा था। तब अखबारों में छपा था कि एक ही समय में देवराहा बाबा हरि की पैड़ी पर स्नान में भी शामिल हुए और अपने आश्रम में भक्तों को उपदेश भी दे रहे थे। एक ही समय की दोनों फोटो (नहाते और उपदेश देते) छपी थीं।

पहले कुंभ को लेकर किंबदंतियां बहुत सुनी जाती थीं। पर इस कुंभ में ऐसा कुछ नहीं है। न कोई कांटों पर लेटा हुआ है न कोई आग के बीच बैठा हुआ है। अगर कुछ असामान्य सा दिखता है तो वो नागा ही हैं। वे भी शांत और समाज प्रेमी। दर्शकों, श्रद्धालुओं, भक्तों का सहयोग करते। गुस्से से दूर। भक्त फोटो लेना चाहता है तो पोज भी दे देते हैं। चश्मा भी लगा लिया। अपना गुप्तांग भी आगे कर देते हैं। किसी ने प्रणाम किया तो हाथ उठाकर उसे आशीर्वाद भी देते हैं।
घर में सुख-सुविधाओं के बीच तो आप हमेशा रहते हैं। इस बार कुंभ में जरूर जाइए और गंगा किनारे किसी आश्रम या टेंट में रहिए। ठंड जरूर लगेगी, उम्मीद से ज्यादा। थोड़ा ज्यादा बिस्तर का इंतजाम कर लीजिए। लेकिन ये जीवन भर याद रखने वाला अनुभव होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार अमरेन्द्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)