सीबीआई का रंग – तमाम बदनामियों, किस्से -कहानियों के बावजूद इस वजह से CBI की साख अब भी कायम है
प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने चहेते आईपीएस अफसर को CBI की पूछताछ से बचाने के लिए उसके दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए हल्ला बोला था।
New Delhi, Feb 07 : CBI एक अनोखी जांच एजेंसी है। तमाम तरह के आरोपों, बदनामियों, किस्से -कहानियों के बावजूद उसकी साख अब भी कायम है। बदनामियों की चर्चा करें तो सुप्रीम कोर्ट तक उसे ‘पिंजरे में बंद तोता ‘कह चुका है। अभी प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने चहेते आईपीएस अफसर को CBI की पूछताछ से बचाने के लिए उसके दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए हल्ला बोला था। बहुत पहले से विपक्ष CBI पर सरकार के इशारे पर विरोधियों को परेशान करने का आरोप लगाता रहा है। इसमें सच्चाई भी है। CBI कैसे बचाने और फंसाने का काम करती है -उससे जुड़ा एक रोचक प्रसंग याद आ रहा है।
यह 1996-97 की बात है। कोर्ट के आदेश पर CBI बिहार में चारा घोटाले की जांच कर रही थी। ज्वाइंट डायरेक्टर यूएन विश्वास जांच टीम को लीड कर रहे थे। तब के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट को जांच की निगरानी का जिम्मा सौंपा था। CBI ने जांच की प्रारंभिक रिपोर्ट कोर्ट में पेश की थी। सीलबंद रिपोर्ट पढ़ कर न्यायाधीश चौंक पड़े। उन्होंने डॉ विश्वास से पूछा कि क्या यह आपकी रिपोर्ट है ? विश्वास ने इंकार में सिर हिलाते हुए अपनी जेब से एक दूसरी रिपोर्ट निकालकर अदालत को दिया। सभी हैरानी से यह देख रहे थे। जजों ने दूसरी रिपोर्ट भी पढ़ी फिर पूछा -दोनों रिपोर्ट में अंतर क्यों है ? डॉ विश्वास ने बताया की नियमानुसार उन्होंने अपनी रिपोर्ट CBI निदेशक को भेजी थी। वहां से एडिट होकर रिपोर्ट कोर्ट में पहुंची। लेकिन उन्होंने अपनी रिपोर्ट की एक कॉपी रख ली थी।
CBI के तत्कालीन डायरेक्टर जोगिंदर सिंह भी कोर्ट में मौजूद थे। उनका चेहरा स्याह पड चुका था। मूल रिपोर्ट में परिवर्तन क्यों किया गया, कोर्ट के इस सवाल का वे जवाब नहीं दे सके। जजों को मामला समझते देर नहीं लगी। कोर्ट ने तत्काल जोगिन्दर सिंह को चारा घोटाले जांच से अलग रहने का निर्देश दिया। विश्वास को स्वतंत्र रूप से मामले की जांच का आदेश हुआ। कहा गया कि वे अपनी रिपोर्ट सीधे कोर्ट को सौंपे। डायरेक्टर या किसी अन्य अधिकारी को रिपोर्ट दिखाने या उससे अप्रूवल लेने की जरुरत नहीं है। कोर्ट ने विश्वास को यह भी निर्देश दिया कि जांच में कोई बाधा या कठिनाई हो तो सीधे कोर्ट को बतायें।
इसके बाद विश्वास की जांच जो शुरु हुई तो वह घोटालेबाजों को सलाखों के पीछे करके ही रुकी। 20 साल तक बिहार पर राज करने की घोषणा करनेवाले लालू प्रसाद को 6 साल के बाद ही मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़ जेल जाना पड़ा। विभिन्न दलों के आधे दर्जन से अधिक राजनेताओं और IAS अफसरों को सजा हुई।
किसको बचाने के लिए विश्वास की रिपोर्ट बदली गई थी , अब यह कोई रहस्य नहीं रहा। यह भी तय है कि जोगिन्दर सिंह ने खुद से रिपोर्ट नहीं बदली होगी। उन्हें इसके लिए बाध्य किया गया होगा। उस समय दिल्ली में सयुंक्त मोर्चा की सरकार थी। CBI से रिटायर होने के बाद जोगिन्दर सिंह नैतिकता के उपदेशक बन गए थे। CBI के बारे में इस तरह की अनेकों घटनायें हैं। उनपर फिर कभी ….
(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)