भ्रष्टाचार के सदाचार बन जाने का टर्निंग प्वाइंट

अधिकतर नेताओं के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया है कि पैसे जहां से भी आए, उसे रख लेना है।

New Delhi, Feb 09 : लगता है कि इस देश की अधिकांश राजनीति और अधिकतर नेताओं के लिए भ्रष्टाचार अब सदाचार बन चुका है। जिस तरह आज भ्रष्टाचार का बेशर्मी से खुलेआम बचाव किया जा रहा है, उससे यह और भी साफ लग जाता है। नब्बे के दशक में हवाला कांड ने ही राजनीति में ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि भ्रष्टाचार को सदाचार मान लिया जाए। वह महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट था।

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जब वैसे हवाला कारोबारियों से इस देश के बड़े -बड़े नेता लाखों-करोड़ों रुपए स्वीकार कर लें जो दुबई से पैसे लाकर कश्मीरी आतंकवादियों को पहुंचाता हो तो फिर बचा ही क्या ?! हवाला के पैसे स्वीकार करने वालों में दो पूर्व प्रधान मंत्री भी थे। मौजूदा व पूर्व केंद्रीय मंत्रियों व मुख्य मंत्रियों की तो भरमार थी। उन 115 नेताओं में कांग्रेस के थे तो भाजपा के भी। जनता दल के थे तो सजपा के भी। पत्रकार थे तो अफसर भी। एक पूर्व प्रधान मंत्री को एक करोड़ रुपए मिले थे तो दूसरे को दो करोड़ रुपए। कुल 65 करोड़ बांटे गए जो नाम जैन बंधु की डायरी में मिले थे। जब इन्हें पैसे दिए जा रहे थे , पाने वालों ने उनसे पूछा भी नहीं कि किस खुशी मंे दे रहे हो ?

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दरअसल अधिकतर नेताओं के लिए यह महत्वपूर्ण हो गया है कि पैसे जहां से भी आए, उसे रख लेना है। अब ऐसे दाता इन नेताओं के पास जाएंगे और कहेंगे कि इस व्यक्ति को बचा लीजिए क्योंकि इस पर आतंकवाद का झूठा आरोप लगा है तो दो करोड़ पाने वाला नेता उसकी मदद नहीं करेगा ? अब इसकी कहानी थोड़े में ! इस मामले की जांच सी.बी.आई. कर रही थी। जब अंततः यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सी.बी.आई. ने हवाला कांड की ठीक से जांच ही नहीं की। पुलिस ने 25 मार्च 1991 को श्रीनगर में अशफाक हुसेन लोन को गिरफ्तार किया था। वह हिजबुल मुजाहिद्दीन का सदस्य था। उसके पास सोलह लाख रुपये बरामद किए गये। ये रुपये कश्मीरी आतंकवादियें को बांटे जाने के लिए थे। अशफाक से पूछताछ के बाद मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने जे.एन.यू. के एक शोध छात्र शहाबुददीन गौरी को गिरफ्तार किया।

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वह खुद को मानवाधिकार कार्यकत्र्ता बताता था, पर वास्तव में वह आतंकवादियों को पैसे पहुंचाने का माध्यम था। गौरी ने पांच हवाला व्यापारियों के नाम बताये। ये सभी टाडा में गिरफ्तार किये गये। हवाला व्यापारी जैन के यहां सी.बी.आई. ने छापा मारा। जैन के यहां से दो डायरियां और दो नोट बुक्स बरामद किये गये। इन्हीं डायरियों और दस्तावेजों में विस्फोटक सूचनाएं मिलीं जो 115 नेताओं व अफसरों के बारे में थीं। तब जिन पांच हवाला व्यापारियों की गिरफ्तारी हुई थी, उनमें से एक व्यापारी पर यह आरोप भी लगा था कि उसने मुम्बई बम कांड के साजिशकत्र्ताओं को पैसे बांटे थे। उसका संबंध दाउद इब्राहिम व टाइगर मेमन से था। वह 1989 में इसी तरह के आरोपों में गिरफ्तार भी हुआ था। पर रहस्यमय कारणों से तब उसे रिहा कर दिया गया था।

वही बाद में हवाला घोटाले में गिरफ्तार हुआ। याद रहे कि जैन बंधुओं ने नेताओं को 1988 से ही पैसे बांटने शुरू कर दिए थे। हवाला कांड 1991 में सामने आया। 1993 तक यह मामला दबा रहा। जब विनीत नारायण ने सर्वोच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दायर की और न्यायमूत्र्ति जे.एस.वर्मा ने कड़ाई की तभी सी.बी.आई.ने जांच की गति बढ़ाई। फिर भी सी.बी.आई.ने उस डायरी में दर्ज सूचनाओं के अलावा कोई अन्य सबूत एकत्र करने की कोई कोशिश ही नहीं की।दरअसल इतने बडे-बड़े नेता और अफसर आरोपित थे कि सी.बी.आई.को एक कदम भी आगे बढ़ने में पसीने छूट रहे थे।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)