Opinion – प्रिंस से गले मिलने का फ़ैसला उतना ही ग़लत है जैसे महबूबा के साथ कश्मीर में सरकार बनाना था

पीएम मोदी का यह मेहमान हैं तो एक निश्चित दूरी बना कर हाथ मिला कर रश्म अदायगी कर लेनी चाहिए थी।

New Delhi, Feb 22 : मानता तो मैं भी हूं कि नरेंद्र मोदी को आज सऊदी अरब के प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान को झूम कर गले नहीं लगाना था और कि प्रोटोकाल तोड़ कर एयरपोर्ट रिसीव करने भी नहीं जाना चाहिए था। भले मोदी के एक फोन पर मुश्किल में फंसे भारतीय नागरिकों को बाहर निकालने में मदद की थी । मोदी का यह मेहमान हैं तो एक निश्चित दूरी बना कर हाथ मिला कर रश्म अदायगी कर लेनी चाहिए थी। क्यों कि यह प्रिंस भी पाकिस्तानपरस्त है । पाकिस्तान के कटोरे में डेढ़ लाख डालर दे कर आया है।

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वैसे हिंदुस्तान में भी एक जमात ऐसी है जो पाकिस्तान और पाकिस्तान परस्तों के साथ पूरी सहानुभूति रखती है। उसे सारी शिकायत और सारे सवाल नरेंद्र मोदी और उन की सरकार से है। सिद्धू पाकिस्तानी सेना प्रमुख वाजवा से गले मिलते हैं तो बहुत बढ़िया।

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खालिस्तानी के साथ फोटो खिंचवाते हैं तो बहुत बढ़िया। लेकिन हिंदुस्तान मेहमान बन कर आए सऊदी अरब के प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से मोदी का गले लगना नागवार गुज़रता है। सिद्धू और महबूबा जैसों के पाकिस्तान प्रेम के क्या कहने। महबूबा वाला गैंग तो आतंकवादियों की सरपरस्ती में भी लथपथ है । यह चर्चा कीजिए तो पूरी जमात एक सुर में बोलेगी कि फिर महबूबा के साथ सरकार क्यों बनाई ।

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बुरहान वानी , अफजल गुरु जैसों को आतंकवादी मानने से पूरी बेशर्मी से इनकार करती है यह जमात। अफजल की फांसी को तो यह जमात ज्यूडिशियल किलिंग बताती है। अलग बात है कि उधर पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ ज़रदारी ने इमरान खान को नसीहत देते हुए कहा है कि उन्हें भारत की जांच में मदद करनी चाहिए क्यों कि विश्व विरादरी में पाकिस्तान आज अलग-थलग पड़ गया है। जरदारी का कहना है कि एक दो देश के समर्थन से क्या होता है ।लेकिन इधर भारत का विपक्ष नरेंद्र मोदी को नाकाम साबित करने में लगा है। गुड है । वह कहते हैं न घर को आग लग गई , घर के चिराग से । पूरी दुनिया पाकिस्तान को दोषी मानती है , हिंदुस्तान में एक जमात लेकिन नरेंद्र मोदी को दोषी मानती है। यह वही जमात है जो सेनाध्यक्ष को गुंडा कहते नहीं अघाती है। सेना को बलात्कारी बताती है।

 (वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के  फेसबुक वॉल से साभार,  ये लेखक के निजी विचार हैं)