अहंकार के इस युग में मोदी ने बहुत बड़ा काम किया है, इसकी तारीफ होनी चाहिये

स्वच्छता कर्मियों के जीवन स्तर में बदलाव आया है। उन के भीतर स्वाभिमान जगा है , ऐसा मैं देख पा रहा हूं ।

New Delhi, Feb 25 : प्रयाग के कुंभ में नरेंद्र मोदी द्वारा इस घटना को अस्पृश्यता की नज़र से देखेंगे तो पाएंगे कि यह बड़ी घटना है । याद यह भी रखा जाना चाहिए कि यह गांधी युग नहीं , अहंकार युग है । इस अहंकार युग में ऐसी घटना मेरी राय में बड़ी घटना है । रही बात सिर पर मैला ढोने की तो मुगल काल से चली आ रही इस कलंकी परंपरा का बहुत कुछ हल निकल आया है । नाम मात्र का ही रह गया है , यह कलंक । दिनों दिन बढ़ते शौचालय इस के गवाह हैं। तमाम असहमतियों के बावजूद आप यह तो स्वीकार करेंगे ही कि इस प्रधान मंत्री के कार्यकाल में रिकार्ड शौचालय बने हैं। गांव-गांव बने हैं।

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स्वच्छता कर्मियों के जीवन स्तर में बदलाव आया है। उन के भीतर स्वाभिमान जगा है , ऐसा मैं देख पा रहा हूं । इस बात का अंदाज़ा आप इस एक बात से लगा सकते हैं कि जब स्वच्च्ताकर्मियों के लिए वांट निकलती है तो पढ़े-लिखे ब्राह्मण सहित तमाम सवर्ण भी इस काम के लिए संविदा पर भी अप्लाई करने लगे हैं । नाले में घुस कर सफाई करते हुए टेस्ट देते हैं ।स्वच्छकार इस बात का खुला विरोध करते हैं । बेरोजगारी का दंश भी है इस में ।

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आप को बताऊं कि जिस कालोनी में मैं रहता हूं , आस-पास बहुत से सरकारी अफ़सर रहते हैं। जिन में कुछ दलित अफ़सर भी हैं। तमाम अफसरों सहित , इन दलित अफसरों के यहां भी कुछ कर्मचारी उन के घर पर चौबीसों घंटे ड्यूटी करते हैं लेकिन यह कर्मचारी उन का कोई भी बाथरूम नहीं शेयर कर सकते , कभी भी । क्यों कि वह नौकर हैं ।

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अब चौबीसों घंटे तैनात रहने वाले यह नौकर नित्य क्रिया के लिए कहां जाते हैं , इन अफसरों को इस से कोई मतलब नहीं । ऐसे में एक प्रधान मंत्री अगर अस्पृश्य कहे जाने वाले स्वच्छता कर्मियों का चरण पखारता है तो इसे सकारात्मक ढंग से देखा जाना चाहिए। चुनावी नौटंकी के तहत भी हुई हो यह घटना , तब भी।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)