एयर स्ट्राइक – मोदी ने इतिहास को खण्डित किया है!

नए दौर के भाजपायी मोदी इस पुरातनपंथी सनातनी हठ को भला क्यों मानें? वह भी इस्लामी पाकिस्तान के विरुद्ध, जिसका न ईमान है, न अकीदत है, न कोई उसूल|

New Delhi, Mar 04 :  अत्यंत तार्किक, लायक और सम्यक मुद्दा भारत के चन्द बौद्धिकों ने उठाया है कि भारतीय वायुसेना को प्रमाण देना चाहिए कि उन्होंने पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा स्थित बालाकोट के जैशे मोहम्मद वाले आतंकी शिविर पर गत सप्ताह कैसी बमवर्षा की? तन और मन से मैं भी इन विचारवान हमवतनियों के साथ हूँ| कई पाकिस्तानी और भारत के महागठबंधनी भी उनके हमसफर बन गये हैं| इन मिग उड़ाकों का फर्ज था कि उस पर्वत शिखर पर उतरते, कुछ देर टिकते, ऑडियो-वीडियो शूट करते, थोड़ी-बहुत लाशें यान में लादते, फिर जम्मू के टी. वी. को दिखाते| सबूत पेश करते| किन्तु बस दस-बारह मिनटों में ही वे सब लौट आये| आखिर इन आतंकियों का अंतिम संस्कार तो करना चाहिए था| वेद शास्त्रों में यही निर्देश है| कुरुक्षेत्र में अर्जुन भी कर्ण के शव-दहन में शामिल हुआ था| भूल गये कि कसाब को चिकन-बिरयानी खिलाकर फांसी के बाद ही मजहबी रस्मों के साथ गाड़ा गया था| बिना नमाजे-जनाजा के, उनके लिये जन्नत की दुआ किये बिना, इन पाकिस्तानी आतंकियों की लाशों को छोड़कर, भारतीय वायु सैनिकों का भाग आना अमानवीय था| मुर्दों के मानवाधिकारों का उल्लंघन था| हमारे प्रबुद्धजनों ने मांग की है कि यह जगजाहिर हो कि कितने आतंकी “शहीद” किये? साबित करें| साथ ही पुलवामा में 40 भारतीय जवानों की मृत्यु के बाद कितना विस्फोटक (आरडीएक्स) बचा था? इसे क्या काला बाजार में बेचा गया? तो वह रकम कहाँ गयी?
कुछ हिन्दुओं ने इसी सिलसिले में फूहड़ मजाक भी किया है कि आसमान पर पाकिस्तानी एफ-16 का भारतीय एम-21 ने पीछा किया था| एम के माने मेल (नर) को एफ-16 माने फीमेल (षोडशी नारी) से जोड़ा गया| अभी तक इन बौद्धिकों ने इस व्यंग्य के विरुद्ध घोर आपत्ति भी नहीं जतायी|

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अलबत्ता चन्द बौद्धिकों ने टोकाटाकी अवश्य की कि आज भारत में युद्धोन्माद फैलाया जा रहा है| मैं इस से पूर्णतया सहमत हूँ| युगों से आर्यावर्त मार सहता आया है| हमारी यह ऐतिहासिक आदत है| मोहम्मद बिन कासिम, तैमूर, गोरी, गजनवी, दुर्रानी, अब्दाली आदि भारतीय कायरता को उजागर कर चुके हैं| इब्राहिम लोदी पर तो जहीरुद्दीन मोहम्मद बाबर ने और मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह रंगीले पर नादिर शाह ने जेहाद छेड़ा था| शायद लोदी और मोहम्मद शाह काफ़िर थे| वे हिंदुत्व के एजेंट थे| पाकिस्तान ने भी अपने प्रक्षेपास्त्रों के नाम अब्दाली, गोरी, गजनवी आदि रखे कि भारत समझ जाये कि वह दारुल हर्ब है, भले ही साढ़े अट्ठारह करोड़ मुसलमान वहाँ बसते हैं|

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हाँ एक प्रश्न यहाँ अवश्य उठता है कि इन भारतीय बौद्धिकों ने दिसम्बर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना के प्रवेश पर सवाल क्यों नहीं उठाया था? हालांकि तब दो माह बाद ही सोलह विधान सभाओं के चुनाव हो रहे थे| युद्ध के फलस्वरूप इंदिरा-कांग्रेस सभी चुनाव जीतीं थी| तीसरी लोकसभा चुनाव (1962) में उत्तरी मुम्बई क्षेत्र से रक्षा मंत्री वी. के. कृष्णा मेनन की गाँधीवादी आचार्य जेबी कृपलानी के मुकाबले निश्चित पराजय को पलटने हेतु पुर्तगाली उपनिवेश गोवा में जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय सेना भेजी थी| हालांकि 1946, जब डॉ. राममनोहर लोहिया ने पणजी में जंगे आजादी शुरू की थी और मधुलिमये, सेनापति बापट आदि ने 1956 में उस मुक्ति संग्राम को तीव्रतर किया था, तब नेहरू-कांग्रेस ने इन सत्याग्रहियों को जेल भेजा था| उस वक्त इन भारतीय बौद्धिकों ने अहिंसावादी भारत द्वारा सेना के प्रयोग पर एतराज नहीं जताया था| तो अब 2019 में आत्मरक्षा हेतु सेना का उपयोग क्यों गलत माना जाय?

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मेरे आकलन में इस सारे फसाद की जड़ में बालुई उत्तर गुजरात का यह घैंची तेली है जो कभी चाय बेचता था| इसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविरों में समझा होगा कि तुर्की के गजनी वाले महमूद ने पवित्र सोमनाथ शिवलिंग को रौंदा और लूटा था| अतः उसका बदला ठीक हजार साल बाद इस्लामी जम्हूरियत से लिया जाय| विश्व को हिन्दू शौर्य से फिर परिचित कराया जाय| हालांकि ये बौद्धिक जन हिन्दू शौर्य को तसलीम नहीं करेंगे, क्योंकि भोर के अँधेरे में भारत ने बालाकोट पर हमला किया था| हिन्दू हमेशा सूरज के उजाले में, शंख बजाकर, चेतावनी देकर युद्ध छेड़ता है| गनीमत है कि बालाकोट में गौशाला नहीं थी| वर्ना अभिनन्दन और उनके साथी वहाँ जाते ही नहीं| अहमदशाह अब्दाली के सैनिकों ने पानीपत मैदान में गायों के झुण्ड की ओट में छिपकर मराठों को मारा था| पानीपत से सत्तर किलोमीटर पर कुरुक्षेत्र है| यहाँ पांच हजार साल पूर्व न्याय युद्ध हुआ था| युग बीता तो युगधर्म भी बदल गया| मगर इन भारतीय बौद्धिकों की यही जिद रही होगी कि शायद इन सच्चे भारतीय सैनिकों द्वारा पुराने कुरुक्षेत्र के युद्ध नियम का अब भी पूर्ण पालन करना चाहिए था| नए दौर के भाजपायी मोदी इस पुरातनपंथी सनातनी हठ को भला क्यों मानें? वह भी इस्लामी पाकिस्तान के विरुद्ध, जिसका न ईमान है, न अकीदत है, न कोई उसूल| वे शठ हैं, तो मोदी सवा शठ !

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)