Opinion – एक पढ़े-लिखे व्यक्ति का यह पतन , यह विलाप बहुत दुखदायी है

एजेंडा पत्रकारिता के क्रांतिकारी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ बातचीत में जो जहर घोल रहे हैं अशोक वाजपेयी , वह अप्रतिम है।

New Delhi, Mar 17 : हिंदी के एक हारे हुए कांग्रेसी लेखक अशोक वाजपेयी को सूर्या समाचार पर सुनना बहुत उदास करता है । काश कि अशोक वाजपेयी सिर्फ़ लेखक होते , कांग्रेसी लेखक न होते । कभी बतौर प्रशासनिक अधिकारी तत्कालीन मुख्य मंत्री , मध्य प्रदेश अर्जुन सिंह के मिरासी रहे अशोक वाजपेयी अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ही सारी रौशनी देखने की जो ललक दिखा रहे हैं और समूचे हिंदी प्रदेश को सांप्रदायिक करार देने का जो कुत्सित प्रयास कर रहे हैं , सोशल मीडिया द्वारा कमतर नागरिक बनाने की जो विद्वता बघार रहे हैं , उस के क्या कहने।

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एजेंडा पत्रकारिता के क्रांतिकारी पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी के साथ बातचीत में जो जहर घोल रहे हैं अशोक वाजपेयी , वह अप्रतिम है। यह वही अशोक वाजपेयी हैं जिन्हों ने भोपाल में यूनियन कार्बाइड के जहर में हजारों लोगों के मरने , विकलांग होने के बाद भी कविता समारोह संपन्न किया उसी भोपाल में जहां लोग मरे थे , यह कह कर कि कुछ लोगों के मर जाने से उत्सव नहीं रुका करता है। इमरजेंसी के पोषक अशोक वाजपेयी अब अंधेरे से प्रश्न पूछने की बात करते हुए , भारी-भारी शब्दों का घटाटोप रच रहे हैं ।

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पुरस्कार वापसी के खलनायक अशोक वाजपेयी कभी साहित्य में अपने को सूर्य मानते थे , कुछ लोग भी पर आज अशोक वाजपेयी को सूर्या समाचार जैसे अनाम चैनल पर विधवा विलाप करते सुनना भी त्रासद है । एक पढ़े-लिखे व्यक्ति का यह पतन , यह विलाप बहुत दुखदायी है। कोमल शब्दों की पदावली में , साहित्य की छतरी तान कर , विद्वता की नदी बहा कर विष वमन करना कोई अशोक वाजपेयी से सीखे। सत्यता के संकट और निर्णायक मोड़ की लुभावनी बातें करते हुए शब्द और साहित्य को बड़ी ही नरमी से संकटकाल में धकेल रहे हैं। अद्भुत है विचार और कविता के बहाने अपने मन की कालिमा को घातक ढंग से , हिंसक ढंग से परोसना।

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मखमली और मुस्कुराती आवाज़ में मानवीय बनाने का काम करने की वकालत में छुपा जहर भी सर्वथा कह पाना भी अशोक वाजपेयी का ही हुनर हो सकता है । हुनर का यह हस्तक्षेप भी अविरल और अनिर्वचनीय है। भले अपनी बीमारी को विस्तार देती पर एक अच्छी कविता भी सुनाई अशोक वाजपेयी ने इस अवसर पर । मेरा स्पष्ट मानना है कि लेखक , कवि , विचारक , पत्रकार को कर्ता भाव में नहीं , साक्षी भाव में रहना चाहिए । किसी पार्टी का प्रवक्ता होने से बेहतर है , समय की दीवार पर लिखी इबारत को साक्षी भाव से बांचना चाहिए। तथ्य और तर्क को बिना तिरोहित किए।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)