भारत-पाकः कौन किसका हिस्सा?

क्या ऐसे में कश्मीर जैसी समस्याएं टिक पाएंगी ? वे तो अपने आप रसातल में चली जाएंगी। पिछले 50 वर्षों में इन सभी 16 देशों में मुझे कई बार जाने और महिनों रहने का अवसर मिला है।

New Delhi, Mar 18 : राष्ट्रीय स्वयंसेवक के वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संयोजक इंद्रेशकुमार के भाषण पर देश में हल्ला जरुर मचेगा, क्योंकि उन्होंने मुंबई के एक समारोह में कह दिया कि 1947 में पाकिस्तान नहीं था और 2025 के बाद वह नहीं रहेगा। वह भारत का हिस्सा होगा।

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उनके इन शब्दों को लेकर कई भाजपा-विरोधी उन पर टूट पड़ेंगे और पाकिस्तान में तो बवाल ही खड़ा हो सकता है लेकिन आप उनका पूरा भाषण ध्यान से सुनें या पढ़ें तो आपको लगेगा कि वे भावी दक्षिण एशिया का एक शानदार नक्शा पेश कर रहे हैं, जिसके बारे में पिछले पचास साल में मैं थोड़ी-बहुत कोशिश करता रहा हूं। उसे महर्षि दयानंद ने अब से डेढ़ सौ साल पहले ‘आर्यावर्त्त’ कहा था, संघ ने उसे ‘अखंड भारत’ कहा और डाॅ. राममनोहर लोहिया उसे ‘भारत-पाक महासंघ’ कहा करते थे। मैंने उसे थोड़ा और फैला दिया है। यह इलाका अराकान से खुरासान तक फैला हुआ है। बर्मा से ईरान तक और त्रिविष्टुप याने तिब्बत से मालदीव तक।

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इसमें मध्य एशिया के पांचों राष्ट्रों और मोरिशस को भी जोड़ा जा सकता है। यदि इन सोलह देशों का महासंघ बन जाए तो अगले कुछ ही वर्षों में ये देश शक्ति और संपन्नता में यूरोप से टक्कर लेने लगेंगे। यूरोपीय संघ का उदाहरण देकर ही इंद्रेशजी ने अपनी बात को आगे बढ़ाया है। यह महादक्षेस होगा। जब ‘सार्क’ की स्थापना हुई तो मैंने इसका नाम ‘दक्षेस’ रखा याने दक्षिण एशियाई सहयोग संघ। दक्षेस में कुछ काम आगे जरुर बढ़ा है लेकिन चार दशकों में उसकी प्रगति चींटी की चाल के बराबर हुई है। उसकी सबसे बड़ी बाधा भारत-पाक संबंध हैं। यदि वे सुधर जाएं तो इन सारे देशों में कौन किसका हिस्सा होगा, यह सवाल ही बेमानी हो जाएगा।

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तब पाकिस्तान भारत का हिस्सा होगा और भारत पाकिस्तान का ! क्या ऐसे में कश्मीर जैसी समस्याएं टिक पाएंगी ? वे तो अपने आप रसातल में चली जाएंगी। पिछले 50 वर्षों में इन सभी 16 देशों में मुझे कई बार जाने और महिनों रहने का अवसर मिला है। वहां के जन-साधारण और बादशाहों, राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों से भी मुझे दिल खोलकर बात करने का मौका मिला है। सभी चाहते हैं कि यह सपना साकार हो लेकिन कोई इतना बड़ा नेता हमारे बीच नहीं है, जो इसे अमली जामा पहना सके। आशा करें कि 2025 तक वह आ जाए।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)