Opinion- राहुल गांधी ने अमेठी में पीठ दिखा दी, उन्हें अपना राजनीतिक सलाहकार बदल लेना चाहिये

राहुल गांधी को अपना राजनीतिक सलाहकार बदल लेना चाहिए। वैसे ही सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने कांग्रेस का बहुत नुकसान कर दिया है।

New Delhi, Apr 01 : राहुल गांधी अमेठी से जीतेंगे कि हारेंगे यह तो 23 मई को ही पक्का पता चलेगा। लेकिन केरल वामपंथ का गढ़ है। सो केरल के वायनाड से राहुल गांधी की जीत में संदेह बहुत है । केरल के हमारे सूत्र बताते हैं कि केरल में कांग्रेस के लिए अब कोई स्पेस शेष नहीं है। कांग्रेस की जो स्पेस थी केरल में उस स्पेस को भाजपा ने कवर कर लिया है। केरल की सड़कों पर खुले आम गोकशी , और इस पर कांग्रेस के दोगलेपन और चुप्पी का यह परिणाम है। सो केरल में लेफ्ट के बाद है तो भाजपा है , कांग्रेस नहीं।

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राहुल गांधी को अपना राजनीतिक सलाहकार बदल लेना चाहिए। वैसे ही सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने कांग्रेस का बहुत नुकसान कर दिया है। अमेठी में राहुल गांधी को निश्चित रूप से मुश्किल हो रही है , तभी वह केरल के वायनाड का रुख कर रहे हैं। क्यों कि वहां मुस्लिम और क्रिश्चियन वोट ज़्यादा हैं। इस का एक फरमान यह भी है कि जनेऊ पहन कर राहुल और प्रियंका का मंदिर-मंदिर जाना आदि बहुत लाभदायक नहीं रहा है। भाजपा की दलील है कि राहुल ने अमेठी में कुछ नहीं किया है। इस लिए वह हार रहे हैं। मान लिया इस दलील को। लेकिन दो साल से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है। तो भाजपा ने भी वहां क्यों नहीं कुछ किया । आखिर सब का साथ , सब का विकास का नारा अमेठी में भी कारगर क्यों नहीं है।

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फ़िलहाल तो राहुल गांधी ने अमेठी को तो जो पीठ दिखाई है , दिखाई ही है , केरल में वायनाड का रुख कर वामपंथियों को भी मुंह चिढ़ा दिया है। अमेठी में भाजपा और वायनाड में वामपंथी उन्हें हराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। राहुल गांधी अब उस ईंट की तरह हो चुके हैं जिन्हें दोनों तरफ से सिर्फ़ पकना ही पकना है ।

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यह पकना परिपक्वता के अर्थ में नहीं , तकलीफ के अर्थ में है । ऐसे जैसे दो स्त्रियों के बीच कोई पुरुष पकता है और झुलस-झुलस जाता है। राहुल इस चुनाव में ऐसे ही झुलसेंगे। दो नाव पर एक साथ चढ़ने की जो मूर्खता है सो अलग है। अब आप कहेंगे कि पहले भी लोग दो जगह से लड़ते रहे हैं। बीते चुनाव में नरेंद्र मोदी भी दो जगह से लड़े थे । इंदिरा गांधी , अटल बिहारी वाजपेयी , लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग भी दो सीट से लड़ते रहे हैं। एक साथ तेरह सीटों पर भी लड़ते देखा है लोगों को। लेकिन राहुल गांधी की अमेठी और वायनाड के चनाजोर गरम की तासीर कुछ और है।

 ( वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)