Opinion – राजनीति में भी दिल टूटता है , पूनम सिनहा को शायद लखनऊ में अब पता चलेगा

देखना यह भी दिलचस्प होगा कि शीशा हो या दिल , वह तो टूटता ही है , राजनीति में भी दिल टूटता है , पूनम सिनहा को शायद लखनऊ में अब पता चलेगा।

New Delhi, Apr 18 : अभिनेत्री रीना राय के प्रेम और बरसों के संबंध को रेत कर , उन का हक़ छीन कर , शत्रुघन सिनहा की पत्नी बनी पूनम सिनहा क्या लखनऊ में राजनाथ सिंह को भी रगड़ और रेत कर चुनाव जीतेंगी या रगड़ खा कर ज़मानत ज़ब्त करवाएंगी। देखना दिलचस्प होगा। ज़िक्र ज़रुरी है कि पूनम सिनहा सिर्फ़ खामोश की पत्नी ही नहीं , अभिनेत्री भी हैं। जोधा अकबर जैसी फिल्म मां की भूमिका भी की है। लखनऊ के कायस्थों और सिंधियों को तो नहीं लखनऊ के नौजवानों को सोनाक्षी सिनहा का बहुत इंतज़ार है। वह उन्हें परदे पर तो बहुत देख चुके हैं , अब आमने-सामने लुक करना चाहते हैं। बता यह भी दूं कि जो लोग बता रहे हैं कि पूनम का लखनऊ में कुछ नहीं है , वह अपनी गलतफ़हमी तोड़ लें।

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शत्रुघन सिनहा के कुछ रिश्तेदार हैं लखनऊ में । एक तो आई पी एस अफ़सर भी रहे हैं । फिर इस बहाने और भाजपा के सांसद और सरकार मंत्री के नाते भी उन का लखनऊ आना, जाना रहा है। सांसद होने के पहले भी लखनऊ के पत्रकारों से मिलते रहे हैं वह और कि लखनऊ के प्रेस क्लब भी आते-जाते रहे हैं। असल दुविधा तब आएगी जब शत्रुघन सिनहा लखनऊ पूनम के प्रचार में आएंगे। पूनम लखनऊ में राजनाथ सिंह के ही नहीं , कांग्रेस प्रमोद कृष्णन के खिलाफ भी उम्मीदवार हैं। और शत्रुघन सिनहा पटना साहिब से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। यह फ़ोटो नब्बे के दशक की है , लखनऊ प्रेस क्लब में। संभवतः 1994-1995 की।

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गौरतलब है कि शत्रु के संघर्ष के दिनों की माशूका थीं , रीना राय। पूनम से शादी के बाद ही फिल्म बनी आशा। रीना राय हिरोइन थीं , जितेंद्र हीरो। शीशा हो या दिल , आख़िर टूट जाता है। आनंद बख्शी के लिखे इस गीत में रीना राय के दिल के टूटने की छनक थी और फ़िल्म हिट हो गई थी। यह फिल्म 1980 में आई थी।

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शत्रु की शादी भी जुलाई , 1980 में हुई थी। शादी के तुरंत बाद रीना राय के दिल टूटने को फिल्म निर्माता ने तुरंत भुना लिया था , फिल्म बाज़ार में। यह फिल्म सुपर , डुपर हुई थी , तब। गाना आज भी सुपर हिट है। देखना यह भी दिलचस्प होगा कि शीशा हो या दिल , वह तो टूटता ही है , राजनीति में भी दिल टूटता है , पूनम सिनहा को शायद लखनऊ में अब पता चलेगा। और इस की आवाज़ शीशा या दिल टूटने से ज़्यादा होती है।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)