बिहार चुनाव- खेल उतना आसान नहीं है, जितना उपर से दिख रहा है
बिहार – बाँका ही ऐसी सीट है जहां एनडीए का उम्मीदवार मुकाबले से बाहर बताया जा रहा है। लोग पुतुल देवी को ही एनडीए उम्मीदवार मानकर चल रहे हैं।
New Delhi, Apr 18 : आज बिहार की जिन पांच सीटों पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, भागलपुर और बांका में वोट पड़ रहे हैं उन्हें मोटे शब्दों में महागठबंधन के प्रभाव वाली सीटें कह सकते हैं। इनमें से चार सीटों पर 2014 की लहर में भी एनडीए हार गयी थी। बांका में पिछ्ली बार भाजपा उम्मीदवार रहीं पुतुल देवी इस बार वे बेटिकट हैं और एनडीए का गणित गड़बड़ाने के लिये मैदान में डटी हैं। जाहिर है ऐसे में हर कोई कहेगा कि इस चरण में महागठबंधन को एज है। मगर मुझे लगता है कि यह कहना सरलीकरण होगा।
उपरी तौर पर किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया की सीटें कांग्रेस के खाते में जाती दिख रही हैं, भागलपुर में दोनों मंडलों के बीच टक्कर है और बाँका में पुतुल देवी ने एनडीए को मैदान से बाहर कर दिया है, ऐसा लगता है। मगर ऐसा है नहीं, अन्दर अन्दर कई कहानियां हैं।
अब जैसे 75 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाली किशनगंज सीट महागठबंधन के लिये सबसे सेफ सीट होनी चाहिये थी। मगर मुमकिन है कि वहां कांग्रेस प्रत्याशी मो जावेद तीसरे नम्बर पर चले जायें। ओबैसी की पार्टी के जमीनी नेता अख्तरुल ईमान की पकड़ ग्रामीण मुसलमानों में अधिक है। जदयू को हिन्दुओं का पूरा वोट मिल रहा है, अगर उन्हें एकाध लाख मुसलमानों ने भी वोट दिया तो वे निकल सकते हैं। मगर इसका मतलब यह नहीं है कि कांग्रेस पीछे है। यहां कौन आगे है कौन पीछे कहना मुश्किल है। त्रिकोणीय मुकाबला है, कोई भी जीत सकता है।
यही स्थिति पूर्णिया में पप्पू सिंह के साथ है। कभी सवर्ण मतदाताओं के चहेते रहे पप्पू सिंह इस बार सवर्ण वोटों के लिये तरस रहे हैं। उनकी अपनी जाति राजपूत के वोट भी उन्हें पूरी तरह नहीं मिल रहे। वे यादव और मुस्लिम वोटों के भरोसे हैं। यह दोनों समुदाय भी इन्हें मन मार कर वोट दे रहे हैं। उसी तरह भाजपा के कैडर वोटर बेमन से सन्तोष कुशवाहा को वोट देने के लिये मजबूर हैं। मामला उल्टा पुल्टा हो गया है। पप्पू सिंह ने एक ओडियो मैसेज जारी किया है कि उनकी लड़ाई मोदी या नीतीश से नहीं, सन्तोष कुशवाहा से है।
इस लिहाज से तारिक अनवर के लिये कटिहार सीट थोड़ी सेफ है, जहां 47 फीसदी वोटर मुस्लिम हैं। सामने जदयू उम्मीदवार बहुत मजबूत नहीं है।
भागलपुर में दियारा के दोनों गंगापुत्रों की लड़ाई में जीतेगा वही जिसको उसकी अपनी जाति अपना नेता मानेगी। शहरी मतदाताओं में इन दोनों को लेकर उदासीनता है।
इस बीच बाँका ही ऐसी सीट है जहां एनडीए का उम्मीदवार मुकाबले से बाहर बताया जा रहा है। लोग पुतुल देवी को ही एनडीए उम्मीदवार मानकर चल रहे हैं।
अब आप समझ ही रहे होंगे कि खेल उतना आसान नहीं है, जितना उपर से दिख रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)