‘राजनैतिक दृष्टि से दिग्गी राजा और प्रज्ञा ठाकुर की कोई तुलना हैं ही नहीं लेकिन प्रज्ञा भगवाधारी हैं’

‘भोपाल में दिग्गी और प्रज्ञा’ – डॉ. वेदप्रताप वैदिक
यों प्रज्ञा के अनेक उग्रवादी बयान भी लोगों को याद हैं लेकिन वे ध्रुवीकरण में मदद ही करेंगे। इसीलिए दिग्गी ने अपने समर्थकों से कहा है कि वे विकास को मुद्दा बनाएं।

New Delhi, Apr 20 : आजकल मैं अपने गृह-नगर इंदौर में हूं। यहां के अखबार दिग्विजय सिंह और प्रज्ञा ठाकुर से भरे पड़े हैं। दिग्गी राजा कांग्रेस और प्रज्ञा भाजपा की उम्मीदवार हैं। माना यह जा रहा है कि भोपाल की यह टक्कर देश की दिशा तय करेगी। यह क्षेत्र ही यह तय करेगा कि लोकसभा का यह चुनाव किस मुद्दे पर लड़ा जाएगा। आतंकवाद के मुद्दे पर या विकास के ? दिग्गी और प्रज्ञा, दोनों ठाकुर हैं। इसीलिए इनके बीच जातिवाद का तोे कोई मुद्दा हो ही नहीं सकता।

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भोपाल यों भी ठाकुर बहुल क्षेत्र नहीं है। दिग्गी पर आरोप है कि ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द उन्होंने हीघढ़ा था और यह शब्द ‘इस्लामी आतंकवाद’ के जवाब में तब चला था, जब 2008 में मालेगांव विस्फोट में कई मुसलमान मारे गए थे। उसी के आरोप में प्रज्ञा गिरफ्तार हुई थी और उन्होंने 10 साल जेल काटी थी। अब भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर प्रज्ञा ध्रुवीकरण का प्रतीक बनेंगी। वे भोपाल के हिंदू वोट एक मुश्त पाने की कोशिश करेंगी। भोपाल के 21 लाख मतदाताओं में सिर्फ 4.50 लाख मुसलमान हैं। यदि ध्रुवीकरण हो गया तो दिग्गी राजा की हार सुनिश्चित है लेकिन दिग्गी अपने आपको किसी हिंदू से कम नहीं समझते।

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वे निष्ठावान हिंदू हैं। पूजा-पाठ वाले हैं। वे राहुल गांधी की तरह दिखावटी हिंदू नहीं हैं। लेकिन चुनाव अभियान के दौरान अपने ‘ओसामाजी’ शब्द और बटला हाउस के आंतकवादियों के लिए बोले गए सहानुभूतिपूर्ण शब्द उनके गले के पत्थर बन जाएंगे। यों प्रज्ञा के अनेक उग्रवादी बयान भी लोगों को याद हैं लेकिन वे ध्रुवीकरण में मदद ही करेंगे। इसीलिए दिग्गी ने अपने समर्थकों से कहा है कि वे विकास को मुद्दा बनाएं। आतंकवाद को मुद्दा बनने ही न दें। लेकिन वह बने बिना रहेगा ही नहीं, क्योंकि भाजपा का अब वही ब्रह्मास्त्र बन गया है।

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पुलवामा, बालाकोट और अब दिग्विजय-इन तीनों शब्दों की टंकार अब सारे देश में सुनी जाएगी। राजनैतिक दृष्टि से दिग्गी राजा और प्रज्ञा ठाकुर की कोई तुलना हैं ही नहीं लेकिन प्रज्ञा भगवाधारी हैं, स्त्री हैं और उन पर हुए पुलिस अत्याचारों की कहानी अत्यंत लोमहर्षक है। अतः वे दिग्विजयसिंह पर भारी पड़ सकती हैं। इंदौर से सुमित्रा महाजन नहीं लड़ रही हैं, इसलिए भोपाल की सीट मप्र में सबसे ज्यादा ध्यानाकर्षक हो गई है। भगवा आतंकवाद और विकास की टक्कर के कारण सारे देश का भी ध्यान उस पर जाए बिना नहीं रहेगा।
( वरिष्‍ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं )