अब तक नहीं चढा 2014 जैसा चुनावी रंग, क्या प्रशांत किशोर को मिस कर रही है बीजेपी
पिछले लोकसभा चुनाव में थ्री डी तकनीक से लेकर चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रम बीजेपी ने किये, इसके सूत्रधार प्रशांत किशोर थे।
New Delhi, Apr 23 : 23 अप्रैल को तीसरे चरण के मतदान के साथ ही लोकसभा चुनाव 2019 की आधी से से ज्यादा सीटों पर वोटिंग प्रक्रिया समाप्त हो जाएगी, हालांकि इसके बावजूद इस चुनाव में वैसी खुमारी देखने को नहीं मिली है, जैसी उम्मीद की जा रही थी, तमाम प्रचार तंत्र का बावजूद पीएम मोदी की रैलियों और जनसभाओं में भी वैसा रंग और आकर्षण नहीं दिखता है, जैसा 2014 में था, इसके साथ ही 2014 चुनाव के सबसे बड़े हीरो प्रशांत किशोर उर्फ पीके भी पूरी तरह खबरों से गायब हैं।
बदल रहा प्रचार का तरीका
दिल्ली बीजेपी आईटी सेल प्रमुख पुनीत अग्रवाल ने एक वेबसाइट से बात करते हुए कहा कि इस चुनाव में विपक्ष बेहद ढीला दिऱ रहा है, उनके प्रचार रणनीति में कोई आक्रामकता नहीं दिख रही, नेता की कमी, साथ ही मुद्दों पर भी वो बैकफुट पर हैं, जिसकी वजह से प्रचार में वैसे तेजी नहीं दिख रही, पुनीत के अनुसार पहले-दूसरे चरण में तो सिर्फ पीएम मोदी की रैलियां ही चर्चा में रही, इसके अलावा दिल्ली में चुनाव 12 मई को है, इसलिये भी थोड़ा फीका लग रहा है, धीरे-धीरे रंग चढेगा।
सड़कों पर कम दिख रहा प्रचार
आईटी स्पेशलिस्ट पुनीत ने स्वीकार करते हुए कहा कि चुनाव में प्रचार का तरीका भी बदला है, अब चुनाव सड़कों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर भी आक्रामकता के साथ लड़ा जाता है, जहां वोटर खूब खुलकर अपने मन की बात करते हैं, कहा जाता सकता है कि चुनाव प्रचार रैलियों से निकल सोशल मीडिया के मैदान में आ गया है, जहां दो-तरफा संवाद होता है।
क्या बीजेपी को खल रही है पीके की कमी ?
पिछले लोकसभा चुनाव में थ्री डी तकनीक से लेकर चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रम बीजेपी ने किये, इसके सूत्रधार प्रशांत किशोर थे, कहा जाता है कि बीजेपी के प्रचार तंत्र को एक स्तर पर ले जाने के लिये प्रशांत किशोर ने मेहनत की, हालांकि इस बार बीजेपी के कैम्पेन में वैसी गर्मी महसूस नहीं की जा रही है, जिस पर सवाल पूछा जा रहा है कि क्या बीजेपी पीके की कमी को महसूस कर रही है।
जनता में आकर्षण पैदा करते हैं पीके
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रशांत किशोर अपनी प्रचार शैली के लिये जाने जाते हैं, वो जनता में कुछ आकर्षण तो जरुर पैदा करते हैं, लेकिन सिर्फ उनकी वजह से ही कोई चुनाव जीत सकता है, ऐसा भी बिल्कुल नहीं है, पीके मॉडल पश्चिमी देशों में तो सफल हो सकता है, लेकिन हमारे देश में सिर्फ उस रणनीति से चुनाव नहीं जीता जा सकता, अगर वो इतने ही कारगर होते, तो यूपी में कांग्रेस को जीता देते।