Opinion – जनता के बीच अपनी साख हो चुके विपक्ष ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिये क्या किया

सवाल है कि आज के विपक्ष के कितने नेता देश , लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए जेल गए , लाठियां खाई हैं , किसी के पास कोई व्यौरा हो तो बताए भी ।

New Delhi, May 05 : ऐसे ही बचाएंगे देश , लोकतंत्र और संविधान ? पहले खुद को बचा लीजिए। देश , लोकतंत्र और संविधान कोई फूल , पत्ती नहीं है जिसे जब चाहे कोई नरेंद्र नरेंद्र मोदी , कोई भाजपा तोड़ ले। जनता के पास अपना दिल , दिमाग और विवेक है। जैसे 1977 में जनता जान गई थी कि देश , लोकतंत्र और संविधान खतरे में हैं और जनमत ने कूद कर सब कुछ बचा लिया था। लेकिन इस के पहले जनमत को जगाने के लिए , दूसरी आज़ादी की लड़ाई लड़ने के लिए तब 1975 में जय प्रकाश नारायण कूदे थे और जनता के बीच जा कर अलख जगाई थी। इंदिरा गांधी की लाठियां खाई थीं। अत्याचार सहे थे। जेल गए थे ।

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तमाम नेता , पत्रकार और लेखक जेल गए थे। देश भर की सारी जेलें जे पी की अगुवाई में भर गई थीं। हां , वामपंथी नेता , लेखक और पत्रकार ज़रूर जेल नहीं गए थे। क्यों कि उन की राय में काली इमरजेंसी में भी देश , लोकतंत्र , संविधान सब कुछ सुरक्षित था। इस लिए उन्हों ने उस काली इमरजेंसी का खुल कर समर्थन किया था। चौबीसों घंटे फासिज्म की माला जपने वाले वामपंथी लेखकों ने भी इमरजेंसी का समर्थन किया था। आखिर पार्टी के कमिटमेंट से वह अलग कैसे जा सकते थे । खैर , इंदिरा गांधी भी ढाई साल बाद जब दुबारा सत्ता में लौटीं 1979 में तो आंदोलन की राह पर चल कर ही , जेल जा कर ही। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी राम मंदिर आंदोलन की राह पर चल कर ही सत्ता का स्वाद चखा । बिना आंदोलन , बिना संघर्ष के सत्ता में आने वाले चरण सिंह , चंद्रशेखर , देवगौड़ा और गुजराल की दुर्गति को प्राप्त होते हैं। देश , सविधान और लोकतंत्र यह भी जानता है।

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खैर , सवाल है कि आज के विपक्ष के कितने नेता देश , लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए जेल गए , लाठियां खाई हैं , किसी के पास कोई व्यौरा हो तो बताए भी । अच्छा राफेल के लिए किसी ने लाठी खाई , जेल गया। वी पी सिंह और उन के साथी तो बोफोर्स के लिए लाठी भी खाए थे और बंद भी हुए थे। अन्ना हजारे भी अपने साथियों के साथ जेल गए थे। कांग्रेसियों और वामपंथियों को छोड़ दीजिए यह तो सुविधाजीवी हैं ही । न जेल जा सकते हैं , न लाठी खा सकते हैं । पर समाजवादियों की तो आदत रही है लाठी खाना , जेल जाना , आंदोलन करना। लोहिया और जे पी ने उन्हें यह सिखाया है। पर कहां ? एक लालू यादव जेल गया भी तो चारा घोटाले में , किसी आंदोलन में नहीं।

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दूसरा समाजवादी मुलायम यादव और उस का बेटा अखिलेश यादव कहीं जेल न चले जाएं इसी तीन , पांच में लगे हैं । बाकी बचे सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा आदि-इत्यादि तो यह लोग भी सत्याग्रह के कारण नहीं भ्रष्टाचार के कारण ज़मानत पर हैं । मायावती पर सी बी आई की तलवार निरंतर लटकी हुई है। भ्रष्टाचार के गटर में बैठे लोग क्या और कैसा आंदोलन कर सकते हैं , यह भी एक पहेली है। एक ममता बनर्जी हैं तो पुलिस कमिश्नर को जांच से बचाने के लिए मुख्य मंत्री हो कर भी धरना दे कर बैठ जाती हैं। नोटबंदी के लिए कोई ममता , कोई मायावती , कोई अखिलेश कोई केजरीवाल या राहुल गांधी बैठा क्या कहीं धरने पर ? कि जी एस टी के खिलाफ किसी ने जेल भरो आंदोलन किया ? शायद इस लिए भी इन मुद्दों पर आंदोलन करने से विपक्ष कतरा गया कि इन मुद्दों में दम नहीं था। जनता इन के साथ खड़ी नहीं होती।
वैसे भी ठेकेदारों , लायजनरों और दलालों वाली राजनीतिक पार्टियों से बयान बहादुरी ही अब हो सकती है । कोई आंदोलन , कोई संघर्ष , कोई धरना या जेल भरो आंदोलन नहीं। बताइए और इस बूते पर यह लोग नरेंद्र मोदी को हटाएंगे। देश , लोकतंत्र और संविधान बचाएंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार,  ये लेखक के निजी विचार हैं)