Opinion – लोकतंत्र सिर्फ सरकार नहीं विपक्ष भी होता है

क्या हम वास्तव में लोकतंत्र के रूप में परिपक्व और सुधारवादी हैं? क्या हमारे लिए सरकारों का जल्दी से जल्दी चुना जाना पहली प्राथमिकता है।

New Delhi, May 22 : EVM आई थी। गड़बड़ी का शोर मचा। उसके साथ VVPAT लगा दिया गया। VVPAT का फंक्शन ये था कि वोटर वोट देने के तुरंत बाद VVPAT से निकलने वाली पर्ची में उस प्रत्याशी का नाम देख सकता था जिसे उसने वोट दिया हो। ये पर्ची उस वोटर को आश्वस्त करती है कि उसने जिसे वोट दिया है वोट उसी को मिला है।
एक फायदा और था। अगर किसी ईवीएम में गड़बड़ी की आशंका हो तो VVPAT से पर्ची निकालकर गिन लो और उसका मिलान EVM में दिख रहे वोटों से कर लो। क्रॉस चेक हो जाएगा।

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अब हुआ क्या? हुआ ये कि चुनाव में गड़बड़ी की आशंका हो तो किसी विधानसभा की पांच VVPAT की पर्चियों गिननी तय हुई। लेकिन सिर्फ पांच?? विपक्ष ने इसी पर हंगामा काट दिया। उनका कहना है कि इसे बढ़ाकर पचास प्रतिशत किया जाए। बस इसे ही सुप्रीम कोर्ट ने नकार दिया। ये कहा कि अगर ऐसा होगा तो गिनती करने के बाद नतीजे आने में 5-7 दिन लग जाएंगे।

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अब विपक्ष अड़ा है। उसे पहले ही EVM पर भरोसा नहीं था और अब जब पचास प्रतिशत वाली बात मानी नहीं जा रही तो ऐसे में उसका बिफरना लाज़िमी है। हमें समझना होगा कि ये महज़ 21 दल या 21 नेता नहीं हैं बल्कि हिंदुस्तान की दो तिहाई आवाम के प्रतिनिधि हैं। देश की दो तिहाई जनता अगर लाख आश्वासन के बावजूद किसी तंत्र में भरोसा नहीं कर रही तो कायदे से सोचने की बात है। पूरी व्यवस्था ही बहुमत पर टिकी है तो बहुमत माना जाना चाहिए। लोकतंत्र सिर्फ सरकार नहीं विपक्ष भी होता है। जो दल हारते हैं उनके नेता भी चुने जाने पर ही सदन में पहुंचते हैं और उनको चुनने वाले भी रियाया का हिस्सा हैं।

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अंत में मुझे बात अमेरिका के 45 स्टेट्स, फ्रांस, फिनलैंड, जर्मनी और इटली की करनी है जो इस तकनीक के अगुवा थे लेकिन इनमें से अधिकतर पर्चों पर ही लौट गए।
क्या वाकई हम तकनीक में उनसे बेहतर हैं? क्या हम वास्तव में लोकतंत्र के रूप में परिपक्व और सुधारवादी हैं? क्या हमारे लिए सरकारों का जल्दी से जल्दी चुना जाना पहली प्राथमिकता है ना कि बड़े पैमाने पर लोगों की संतुष्टि और पारदर्शी तरीके से अपने नीति नियंता चुनना? EVM हार से बचने की आड़ या ढिठाई से लागू किए रहने से कहीं अधिक उस लोकतंत्र को चलाए रखने का टूल है जिसे पाने के लिए कई पीढ़ियों ने अपना जीवन और जान लगा दिए।

(टीवी पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)