समस्त उज्जैनी अपने युवराज के पराक्रम को देख धन्य हुई है, वीडियो

आह, मेरी अज्ञानता, मेरे अहंकार ने और पूर्वाग्रह ने मुझे पापी बना दिया होता अगर आज ये पराक्रम मैंने स्वयं अपने नेत्रों से न देखा होता।

New Delhi, Jun 27 : मेरा भ्रम आज टूट गया। राजनीति में परिवारवाद को लेकर एक दक्षिणपंथी पार्टी की मैंने आलोचना की थी। मैंने कहा था कि अगर आप कांग्रेस के भीतर के वंशवाद की आलोचना करते हैं तो अपने भीतर की भी कीजिए। मैंने एक बात और कही थी कि कोई ज़रूरी नहीं कि नेता के बेटे के भीतर भी वही खूबियां हों जो उसके बाप में हैं। और किसी बेटे को इस बिनाह पर टिकट देकर एमपी, विधायक या पार्टी का कोई बड़ा पद दे देना उचित नहीं।

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परंतु मानव त्रुटियों का पुतला है। जो मानव त्रुटि न करे वह मानव कहां? वह तो ईश्वर हो जाए। मैं आज त्रुटि संशोधन हेतु ये लेख लिख रहा हूं। मैं एक महान पार्टी के- जो कि नए भारत की नींव रख कर उससे कहीं आगे बुलेट की रफ्तार पकड़ चुकी है- के एक महान पदाधिकारी जो आजकल कलकत्ता के दंगल पर नज़र रख रहे हैं (अपनी चलती चलाती दुकान छोड़कर)- के चिरंजीव पुत्र के पराक्रम को देख अभिभूत हुआ जाता हूं…।
आह, मेरी अज्ञानता, मेरे अहंकार ने और पूर्वाग्रह ने मुझे पापी बना दिया होता अगर आज ये पराक्रम मैंने स्वयं अपने नेत्रों से न देखा होता। समस्त उज्जैनी अपने युवराज के पराक्रम को देख धन्य हुई है। प्रतिभा कहां छिप सकती है भला? वह कोई मूढ़ ही होगा यदि इसके बाद भी यह प्रश्न करे की नेता का पुत्र उतना पराक्रमी और प्रतिभाशाली हो जितना पिता है?

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…और प्रतिभा देखिए, बेट (मालवांचल में ऐ नहीं होता ए होता है)…बेट से अभिमन्यु की भांति कौरवों (निगम कर्मचारियों) को ललकारते उनके अधोभाग पर बेटिंग करते…? आह उज्जैनी…तू धन्य है…और धन्य है विजयवर्गीय खानदान…जिसने अपनी परंपरा को अक्षुण्ण रखा है।
हज़ारों वर्षों पश्चात उज्जैनी गौरवान्वित हुई है। नया भारतवर्ष रचा जा रहा है। धवल दाढ़ी वाले पितामह कहते हैं- बदलते भारत का स्वागत करें। आर्य स्वागतम् स्वागतम्…
परंतु एक चिंता है पितामह…राजयोग के जिस उत्तुंग पर आप विराजमान हैं…वहां इंद्र की उच्छृंखलता नहीं…महादेव की गंभीरता की आवश्यकता है। जब आपकी पार्टी का एक गण निर्भीक हो…भरे बाज़ार में यूं राज्य कर्मचारियों का आखेट करने लगे…तो पितामह वो सहस्त्रों युवाओं और तरुणों को क्या? जो रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। जिनको आपने शिक्षक, चिकित्सक, अभियंता आदि इत्यादि (जो कुछ भी उन्होंने सोच अपनी क्षमताओं के अनुरूप) बनने के रास्ते देने के बजाए…पकौड़ा या आंत्रप्रेन्योर बनने को प्रोत्साहित किया…और वो कुंठित भए..।
यदि वो आपके ‘प्रिय पात्र’ के पुत्र की भांति नए भारतवर्ष के पथ पर या लुटियन ज़ोन में बैटिंग करने उतर गए तो…?

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अस्तु…। क्षमा प्रार्थी हूं…यदि आपकी भारत को लेकर उमड़ती महत्वाकांक्षाओं को पढ़ न सका। समझने का तो प्रश्न नहीं क्योंकि बाज़ार पहले बुद्धि हरता है। और यहां हर नागरिक अब बाज़ार में ही खड़ा है। या तो स्वयं को बेचने के लिए या पारक्रमी गणों के पराक्रम पर हतप्रभ होने के लिए…तालियां बजाने के लिए। आपकी उदारता अपने विश्वासपात्रों के लिए उचित ही होगी, तभी तो हम न समझ सके। मध्य भारत में दिखा अमात्य के ‘गणपुत्र’ का पराक्रम उगते नवभारतवर्ष के मस्तक पर लगा तिलक है। आइए इस तिलक के साथ अपने उज्जवल भविष्य के लिए आहूति दें….
स्वाहा….स्वाहा….स्वाहा….

(टीवी पत्रकार राकेश पाठक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)