Opinion – अपना गांव संभालो मैं तो शहर की ओर चला, यानी राहुल गांधी का वनवास

कांग्रेस ने राजनीति को इतना भ्रष्ट , बर्बर , दुर्दांत , देशविरोधी , समाजविरोधी , घृणित और द्रोहपूर्ण बना दिया कि राजनीति शब्द गाली लगने लगी है ।

New Delhi, Jul 12 : दो तीन गांव की जमींदारी थी । बड़का बाबूजी जमींदारी रुतबे में रहते थे । जिन गांवों में जमींदारी थी वहां जाते तो बटाईदार दौड़े दौड़े आते । कोई दूध , कोई चूड़ा कोई गुड़ और कोई फल लेकर हाजिर हो जाता । बड़का बाबूजी खूब रुआब में रहते थे । प्रजा एक पैर में खड़ी रहती थी । हमलोग छोटे थे । स्कूल की छुट्टियों में पिकनिक मनाने इन्ही गांवो का रुख करते । लगता था बैलगाड़ी में में राजा महाराजा जा रहे हैं। आते समय बैलगाड़ियों में अनाज लादा जाता था और शान से पिकनिक मनाकर लौट जाते थे ।

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बाद में गांव में नक्सली धीरे धीरे अपना वर्चस्व बनाने लगे। हालत यह हो गयी कि उन्होंने खेतो और जमीन पर झंडा गाड़ दिया और फरमान जारी कर दिया कि अब यहां से अनाज जमींदार साहब के यहां नही जाएगा । कुछ दिनों तक बड़का बाबूजी ने माहौल सुधरने का इंतजार किया । लेकिन जब लगा कि नक्सली और मजबूत होते जा रहे हैं तो भाई भतीजो के साथ विचार विमर्श कर गांव की जमींदारी छोड़ने का फैसला किया । औने पौने भाव मे बटाईदारों को ही जमीन बेचकर शहर का रुख कर लिया । अब हम सभी जमींदारी छोड़कर मजे में हैं लेकिन जब भी हम पूरे परिवार जमा होते हैं एक बात कचोटता है कि हम पुरखो की विरासत को बचा नही सके । आज भी वे गांव हमारे बचपन के सपने हैं ।

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कांग्रेस के जुबराज राहुल गांधी सोने के चम्मच के साथ पैदा हुए। पूरे देश मे उनके खानदान की जमींदारी थी । बड़े बूढ़े सभी उनके चौखट पर शीश नवाते थे । मन मे भाव भी जगा होगा कि सचमुच भारत के जुबराज हैं । लेकिन राजा के घर जन्म लेने से कोई राजा जनक थोड़े हो जाता है । राजा जनक ने भी विद्वत्ता हासिल करने के लिए तपस्या की थी , मेहनत की थी । खेतो में हल चलाया , ऋषियों से वेद पढ़े , कुशान से सैन्य शिक्षा ली। लेकिन राहुल तो खुद को जन्मजात नेता मान बैठे । न बोलने की कला सीखी , न चलने का ढंग सीखा , न बड़ो से संस्कार सीखे , न राजनीति सीखी ,न रणनीति सीखी । क्वालिफिकेशन के नाम पर राजीव गांधी का बेटा और इंदिरा का नवासा भर था । 130 करोड़ की जनता इतना मूर्ख और लाचार नही है कि इस जमींदारी को बर्दाश्त करता ।

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आप यकीन नही करेंगे कि कांग्रेस ने राजनीति को इतना भ्रष्ट , बर्बर , दुर्दांत , देशविरोधी , समाजविरोधी , घृणित और द्रोहपूर्ण बना दिया कि राजनीति शब्द गाली लगने लगी है । दिल्ली के पांच सितारा होटल और कलबों में सत्ता की शक्ति के लिए इतना घृणित काम और फैसले लिए जाते हैं कि सचमुच आपको राजनीति से घृणा हो जाएगी । कांग्रेस का यह रोग कांग्रेस तक सीमित नही रह गया । सभी दलों ने ऐसी राजनीति करने की होड़ लगा दी । क्षेत्रीय दल तो कांग्रेस को पछाड़ चुके हैं । लालू , मुलायम , मायावती , ममता जयललिता जैसे क्षत्रप कांग्रेस से भी आगे चले गए । मैंने दिल्ली के इन पांच सितारा राजनीति को नजदीक से देखा है । सत्ता के लिए आज के राजनीतिज्ञ देश को दांव पर लगा देते हैं हम और आप देश के लिए मरने मारने पर उतारू होते हैं लेकिन राजनीतिज्ञों को केवल पावर चाहिए । बहरहाल राहुल के हाथों से सत्ता की शक्ति जैसे ही गयी उन्होंने सन्यास लेना ही बेहतर समझा ।पांच सालो तक इस इंतजार में रहे कि शायद किस्मत पलटी मारे ।लेकिन कसाई के भाखने से गाय थोड़े मरती है ।निकम्मे राहुल ने देश को मझधार में छोड़कर मौज मनाने के लिए विदेश जाना तय किया । चाणक्य ने कहा था कि विदेशी महिला या उसके संतान को देश की बागडोर नही देनी चाहिए । राहुल ने बता दिया कि देश से उन्हें कुछ लेना देना नही है केवल पावर चाहिए ।

आज मुझे अपने जमींदार बड़का बाबूजी इसलिए याद आये कि उनगाँवो में हमने सिर्फ जमींदारी देखी। वहाँ के लोगो से जुड़ाव नही किया । बड़का बाबूजी सहित हम सब शहर में पिकनिक मनाने आ गए । आज हमारे बच्चे उन गांवों का नाम भी नही जानते । राहुल को भारत देश है यह तो पता है लेकिन अगर उसने विदेशी लड़की से शादी कर ली है तो उनके बच्चे भारत को जंगलियों का देश ही समझेंगे । इसलिए राहुल का इतना चुनावी और राजनैतिक कसरत महज नाटक लगता है । देश को कांग्रेस नही वंशवाद से मुक्ति चाहिए ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)