Opinion – शीला दीक्षित प्रधान मंत्री बनी होतीं तो मनमोहन सिंह से बहुत बेहतर साबित हुई होतीं

तीन बार यानी 15 बरस तक लगातार दिल्ली प्रदेश की मुख्य मंत्री रहीं शीला दीक्षित प्रधान मंत्री बनते-बनते रह गई थीं।

New Delhi, Jul 21 : शीला दीक्षित मेरी भी पसंदीदा नेता हैं , सर्वदा रहेंगी। उत्तर प्रदेश कैडर के आई ए एस अफसर रहे विनोद दीक्षित की पत्नी और पूर्व केंद्रीय मंत्री उमाशंकर दीक्षित की बहू शीला दीक्षित की तुलना अगर मुझे किसी से करनी ही पड़ जाए तो इंदिरा गांधी से ही करुंगा। कांग्रेस में बहुत सी स्त्रियां हैं लेकिन इंदिरा गांधी के बाद अगर किसी को अपने काम के लिए जाना जाता है तो वह शीला दीक्षित ही हैं।

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उन से कुल एक ही बार मिला हूं , जब वह दिल्ली की मुख्य मंत्री थीं। लेकिन वह ऐसे मिलीं गोया मुझे कितने बरसों से जानती रही हों। अम्मा की उम्र की थीं लेकिन बातचीत में उम्र का गैप नहीं आने दिया था उन्हों ने। उन की सहजता , शालीनता और विनम्रता कोई कैसे भूल सकता है।

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तीन बार यानी 15 बरस तक लगातार दिल्ली प्रदेश की मुख्य मंत्री रहीं शीला दीक्षित प्रधान मंत्री बनते-बनते रह गई थीं। तब जब सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह का मनमुटाव कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया तो विकल्प के तौर पर शीला दीक्षित पर ही सोनिया गांधी की नज़र गई। सुनते हैं कि सब कुछ तय भी हो गया लेकिन अचानक ही मनमोहन सिंह ने घुटने टेक दिए और शीला दीक्षित प्रधान मंत्री बनते-बनते रह गईं। मेरा स्पष्ट मानना है कि अगर शीला दीक्षित प्रधान मंत्री बनी होतीं तो मनमोहन सिंह से बहुत बेहतर साबित हुई होतीं। और कि कांग्रेस की स्थिति इतनी बदतर नहीं हुई होती।

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बेदिल दिल्ली को दिल्ली बनाने में , आधुनिक बनाने में ब्रिटिशर्स और इंदिरा गांधी के बाद अगर किसी का नाम कोई लेगा तो वह नाम शीला दीक्षित का ही होगा। अलग बात है चुनावी राजनीति में वोट काम से नहीं मिलता , धूर्तता और कमीनगी से मिलता है। यह अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में दो बार साबित किया है और शीला दीक्षित को अपने सैल्यूटिंग काम का वह हासिल नहीं मिला , जिस की कि वह हकदार थीं। सच आप बहुत याद आएंगी शीला जी , सर्वदा याद आएंगी। यह सिर्फ़ कांग्रेस की ही नहीं , पूरे देश की क्षति है। विनम्र श्रद्धांजलि !

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)