Opinion – सरकारी सेवा का असल आकर्षण तो घूस यानी सेवा शुल्क ही है, इस पर GST लगाया जाए

घूस को सेवा शुल्क कहा जाए, इसके लिए पुलिसवालों को आंदोलन चलाना चाहिए। केस से नाम हटवाना, यह अतिरिक्त काम है। इसका अलग से शुल्क होना ही चाहिए।

New Delhi, Jul 30 : पटना के बख्तियारपुर थाने के दारोगा सुबोध कुमार को सस्पेंड कर दिया गया है। आरोप है कि केस से नाम हटाने के लिए उन्होंने एक व्यक्ति से 5 हज़ार रुपये घूस लिया। हद हो गई भाई, भला यह भी कोई आरोप है! यह तो पुलिसवालों का जन्मसिद्ध अधिकार है! सिर्फ पुलिसवालों का ही क्यों हर सरकारी सेवक का यह अधिकार है! अपनी हैसियत के अनुसार वे सेवा शुल्क लेते हैं। उसे रिश्वत कहना ठीक नहीं। घूस कहने से मानहानी करने जैसा बोध होता है। कोर्ट में पेशकार भी सेवा शुल्क लेते हैं। लेकिन उसे कोई घूस नहीं कहता। उसे पेशी कहते हैं। मुगलों के जमाने में शायद इसे ही नजराना कहा जाता था।

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घूस को सेवा शुल्क कहा जाए, इसके लिए पुलिसवालों को आंदोलन चलाना चाहिए। केस से नाम हटवाना, यह अतिरिक्त काम है। इसका अलग से शुल्क होना ही चाहिए। बताइए, उस दारोगा को इसके लिए कितनी मेहनत पड़ी होगी। फिर से नया कागज तैयार करना, उस पर ऊपर के अधिकारियों की अनुमति लेना,, क्या मुफ्त में होगा? ऊपर वाले को भी तो उम्मीद रहती है ! उसे क्या दारोगा जी अपनी जेब से देंगे? व्यवहारिक होकर सोचने की बात है। अगर आप सचमुच निर्दोष हैं तो फिर पैरवी क्यों? दारोगा जी कागज कोर्ट भेज देंगे, वहां से बरी हो जाइए? लेकिन लोगों को कोर्ट पर भरोसा हो तब न?

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दुनिया बदल रही है, देश बदल रहा है। सरकार को भी सोच बदलनी चाहिए। तथाकथित घूस पर GST लगा कर उसे लीगल कर देना चाहिए। इससे सरकार को भी आमदनी हो जायेगी और किसी को अपराधबोध भी नहीं होगा। जैसा कि पूर्व CM मांझी जी को होता रहा है। मांझी जी जब MLA थे, तब उन्हें बिजली विभाग में घूस देना पड़ा था। इसका अपराध बोध उनके अंदर था। जब वे CM बने तो एक सभा में यह बोलकर अपना दिल हल्का कर लिए। नहीं बोले होते तो दिल पर बोझ लिए रहते।

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देने और लेनेवाले दोनों को यह बोझ रहता है। इससे दिल की बीमारी भी हो सकती है। और असल बात यह कि अगर वेतन पर ही गुजारा करना है तो कोई सरकारी सेवा में क्यों आयेगा भला? सरकारी सेवा का असल आकर्षण तो घूस यानी सेवा शुल्क ही है। इसलिए इस पर GST लगाकर लीगल दर्ज देने की मैं अनुशंसा करता हूँ। उम्मीद है कि समस्त सरकारी सेवक, पुलिस और डॉक्टर समेत, इसका समर्थन करेंगे। और इसके पक्ष में यूनियन की बैठक में प्रस्ताव पारित करेंगे। एक बार जोर से बोलिये,,,घूस लेने हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हैम उसे लेकर रहेंगे।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)