अलबेला प्रधान मंत्री- जॉन्सन की मीडिया-धर्मिता भी उनके वंश की भांति विविधता से भरपूर है

प्रधान मंत्री जानसन का तीस-वर्षीय पत्रकारी जीवन काफी दिलचस्प रहा| प्रशिक्षुवाली शुरुआत तो उन्होंने स्कूली पत्रिका “दि ईटन कॉलेज क्रोनिकल” के संपादक के रूप में 1981 में की थी|

New Delhi, Aug 02 : ब्रिटिश मीडिया की नजर में प्रधान मंत्री पद हेतु अंतिम पसंद एलेक्सेंडर बोरिस जॉन्सन थे| गत सप्ताह वे यह पद पा भी गए| तीन दशकों से श्रमजीवी पत्रकार रहे जानसन को उनके संपादकजन मानते रहे कि वे तथ्यों का आदतन निरादर करते हैं| सार्वजानिक उक्तियों तथा वक्तव्यों को विकृत करते हैं| उनकी कलम पर राग द्वेष छाये रहते हैं| गाम्भीर्य तथा कौतुक को पर्यायवाची वे बना डालते हैं| इन्हीं कारणों से विभिन्न पत्रिका प्रबंधनों ने उन्हें तीन बार बर्खास्त किया गया था| फिर भी यह आदमी स्तंभकार, संवाददाता और संपादक के रूप में ऐसा सिक्का था जो मीडिया व्यवसाय में बार – बार लौट आता था|

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जॉन्सन की मीडिया-धर्मिता भी उनके वंश की भांति विविधता से भरपूर है| तुर्की नस्ल के अल्बानी पत्रकार अली कमाल उनके परदादा थे| उनकी रगों में, उन्हीं के शब्दों में, यहूदी, जर्मन और फ्रेंच रक्त प्रवहित होता है| अमरीका में जन्मे थे लिहाजा वहीं के अमरीकी बाशिंदे बने| बाद में ब्रिटिश नागरिक बने| वे जन्मजात कट्टर रोमन कैथोलिक थे| उसे परिवर्तित कर उन्होंने चर्च ऑफ़ इंग्लैंड के उदार धर्म को अपनाया| उनके माता –पिता को एक रूसी मूल का प्रवासी व्यक्ति बोरिस मिला तो उसी का नाम अपने इस ज्येष्ठ पुत्र को दे दिया|
नरेंद्र मोदी के अटूट प्रशंसक जानसन अपने को भारतवर्ष का जामाता कहने में गौरव महसूस करते हैं| हालाँकि वे भिन्न किस्म के दामाद हैं| उनकी (दूसरी तलाकशुदा) पत्नी मारिना ह्वीलर की माता (सरदारनी दीप सिंह कौर) सरगोधा (अब पाकिस्तानी पंजाब में) की थीं| उनके पिता सर शोभा सिंह को ब्रिटिश राज ने कनाट प्लेस के निर्माण का ठेका दिया था| अर्थात उनके बड़े पुत्ररत्न-पत्रकार सरदार खुशवंत सिंह अपने रिश्ते में बोरिस जानसन के सौतेले चचिया ससुर हुए| शायद इसी रिश्तेदारी के नाते प्रधान मंत्री ने घोषणा कर दी कि भारत से ब्रिटेन का व्यापार अब दुगुना किया जाएगा| क्योंकि वह गतिहीन हो गया है| चीन का व्यापार ब्रिटेन में कई गुना बढ़ा है| नानक धर्म के इस रिश्तेदार जानसन महोदय ने ब्रिस्टल नगर के एक गुरद्वारे में कह दिया था कि भारतीय मदिरा के ब्रिटेन में विक्रय को करमुक्त कर देंगे| वे अपने भारतवासी सिख रिश्तेदारों को स्कॉच व्हिस्की भेजते हैं| इस पर सिख महिलाएं गरजीं कि उनके धर्म में शराबबंदी है| ऐसा काम अधर्मी होगा| जानसन ने क्षमा मांग ली|

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प्रधान मंत्री जानसन का तीस-वर्षीय पत्रकारी जीवन काफी दिलचस्प रहा| प्रशिक्षुवाली शुरुआत तो उन्होंने स्कूली पत्रिका “दि ईटन कॉलेज क्रोनिकल” के संपादक के रूप में 1981 में की थी| ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय छात्र यूनियन के अध्यक्ष के काल में वे व्यंग्य पत्रिका “दि ट्रिब्यूटरी” के प्रधान संपादक बने| जब वे प्रतिष्ठित “लन्दन टाइम्स” (1987) में कार्यरत थे तो एक खोजी लेख लिखा था, जो राजा एडवार्ड द्वितीय के पुरातन महल के बारे में था| जॉन्सन ने उसमें कल्पित तथ्य लिखे| जांच के बाद उन्हें बर्खास्त कर दिया गया | फिर वे दैनिक “टेलीग्राफ” से जुड़े| वे राजधानी ब्रेसेल्स (बेल्जियम) में उसके ब्यूरो प्रमुख नियुक्त हुए| यहाँ भी वे करतब दिखने से बाज नहीं आये| यूरोपीय आयोग की तीव्र आलोचना में उनहोंने कई विवादित रपट भेजी जो छपी भी थी| इनकी समीक्षा कर वरिष्ठ संपादक क्रिश पैटन ने जानसन को फर्जी पत्रकारिता का ‘महानतम रचयिता’ बताया| हालाँकि जान्सन के यूरोपीय आयोग पर लिखे आलोचनात्मक लेखों की प्रधान मंत्री मार्गरेट थैचर ने तारीफ की| मगर उनके बाद प्रधानमंत्री बने जान मेजर ने जॉन्सन के लेखों पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की थी| घटनाक्रम बदला और ब्रिटेन के संसदीय निर्वाचन (1977) में जॉन्सन के लेखों और समाचार टिपण्णी का बुरा प्रभाव कंजरवेटिव पार्टी पर पड़ा| वह हार गई| वापस (1994) स्वदेश आकर जानसन को संपादक हेस्टिंग्स ने अपने दैनिक का सह-संपादक नियुक्त किया| हालाँकि वे चाहते थे कि युद्ध संवाददाता का कार्य करें|

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उसी दौर में राजनीतिक संवाददाता के रोल में जानसन को कई बेहतरीन रपट के लिए राष्ट्रीय पारितोष भी मिले| मगर पत्रिका “न्यूज़ ऑफ़ दि वर्ल्ड” ने उनके संदेहात्मक गतिविधियों पर खोजी रपट भी छापी| निजी संपर्कों के कारण जॉन्सन को दैनिक “दि स्पेक्टेटर” में नियमित स्तम्भ लिखने का कार्य मिला| शीघ्र ही वे कई टीवी न्यूज़ चैनलों पर सफल और प्रभावी टिप्पणीकार बने| तभी “दि टेलीग्राफ” और “दि स्पेक्टेटर” के मालिक कोनराड ब्लैक ने जानसन को दोनों दैनिकों के प्रधान संपादक का पद दिया| अपेक्षा की कि वे राजनीति से दूर रहेंगे| मगर जानसन ‘हेनली स्टैण्डर्ड’ के संपादक बन और हेनली संसदीय चुनाव क्षेत्र से राजनीति में आ गये|

पत्रकार रहते जानसन ने अपनी पत्रकार महिला साथियों के साथ अंतरंग संबंध बनाये| ये सर्व विदित थे| इनके नाते उन्होंने काफी ‘प्रसिद्धि’ पाई| तब तक “मी टू” के अभियान से मीडिया ग्रसित नहीं हुआ था| कुछ नाम जो उस समय चले उनमे खास थे पेट्रोनेल्ला वैय्याट और एन्ना फजकर्ली का| इन रूमानी संबंधों पर नाटकों का मंचन भी हुआ और मीडिया में व्यंग्यात्मक लेख भी छपे| उनकी मित्र हेलेन मेकेंटायर को तो अविवाहित मातृत्व भी मिला| उनके प्रशंसकों ने जानसन की चुम्बकीय प्रतिभा पर काफी लिखा भी| उनकी भूरी लहराती जुल्फें, बिखरे, रूखे बाल, स्वर्णिम कपोल और गहरी नीली आँखें तुरंत ध्यान खींचती हैं| जॉन्सन कि समानता अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प से होने लगी| हालाँकि ट्रम्प ने अपनी महिला मित्रों से रिश्तों को गोपनीय कभी नहीं रखा|

जानसन के प्रधान मंत्री निर्वाचित होने तथा टेरेसा मई के त्यागपत्र का खास मुद्दा यही है कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से हटे| नए प्रधानमन्त्री ने पंचांग में तिथि भी तय कर दी है| अक्टूबर 31 तक ब्रिटेन अलग हो जाएगा| अब तो एक सप्ताह ख़त्म भी हो गया है| चुनौती गंभीर है| यदि ब्रिटेन सम्मानपूर्वक यूरोपीय यूनियन से नहीं हट पाया तो स्कॉटलैंड राज्य यूनाइटेड किंगडम से अलग हो जाएगा| उत्तरी आयरलैंड में विप्लव की ज्वाला धधक रही है| अर्थात इंग्लैंड एकाकी पड़ जाएगा| वह दिवालियेपन की कगार पर आ जायेगा| सदियों से उपनिवेशों (भारत से खासकर) लूटे माल कि समाप्ति भी हो जाएगी|

इसीलिए जानसन को सीमित समय में आतिशी काम कर दिखाना है| मगर अभी से उन्होंने भाग निकलने की राह खोज ली है| उन्हें विकल्प के रूप में संसद भंग कराकर नया चुनाव करने का रास्ता सूझ रहा है| उन्होंने नेता विपक्ष जेरेमी कार्बिन को सत्ता में आने से रोकने का नारा भी लगा दिया है| मगर जेरेमी कार्बिन अपने समय की बाट बड़ी सब्रता से जोह रहे हैं| प्रतिदिन उनकी लेबर (सोशलिस्ट) पार्टी कि लोकप्रियता बढती जा रही है| यह तय है कि यदि संसदीय निर्वाचन होता है तो जेरेमी कार्बिन प्रधानमन्त्री बनेंगे| जेरेमी कार्बिन एक गांधीभक्त, सत्याग्रही, उपनिवेशवाद विरोधी, शाकाहारी और तंबाकू तथा शराब से सख्त परहेजी हैं।
जानसन कंजरवेटिव पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कार्बिन की सुनामी से घबराये हुए हैं क्योंकि आम सदस्य कार्बिन में देखता है कि वे मामूली आदमी की भाति जमीनी बातें बोलते हैं। उन्हें गांधी अंतर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार से 2013 में नवाजा गया था। अहिंसा में उनकों दृढ़ आस्था है। अतः जान्सन को असली झटका कार्बिन से है। यूरोपीय यूनियन दोयम है।

(वरिष्ठ पत्रकार के विक्रम राव के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)