Opinion – हाॅकी, मेजर ध्यानचंद और राजनीति

ध्यानचंद कहते थे इस देश के खिलाडि़यों में नहीं, बल्कि चयनकर्ताओं में प्रतिभा की कमी है।

New Delhi, Aug 29 : कभी हाॅकी के अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत की धूम मची रहती थी। पर, समय के साथ इस देश की हाॅकी उदास हो गई।अपने निधन से साल भर पहले हाॅकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद ने कहा था कि ‘राजनीति ने हाॅकी का सत्यानाश कर दिया।’ उन्होंने इसके कुछ अन्य कारण भी बताए थे। भारतीय हाॅकी की दशा देख कर ध्यान चंद अपने जीवन के अंतिम दिनों में काफी निराश थे। उनका निधन 1979 में हुआ। उन्होंने 1948 में हाॅकी का अंतिम मैच खेला था।

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हाॅकी के बुरे दिन देख कर ध्यानचंद कहते थे कि इस देश के खिलाडि़यों में नहीं, बल्कि चयनकत्र्ताओं में प्रतिभा की कमी है। 1960 में ध्यान चंद,बलवीर सिंह सीनियर और कुंवर दिग्विजय सिंह बाबू उर्फ के.डी.सिंह बाबू चयन समिति में थे। लखनऊ में के. डी. सिंह बाबू के नाम पर स्टेडियम है। इस समिति ने खिलाडि़यों का चयन कर लिया। पर जब चयनकत्र्ता अपने -अपने घर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि टीम में भारी फेरबदल कर दिया गया। ध्यान चंद के अनुसार 1960 में टीम के चयन में मनमानी के कारण पहली बार भारत ने हाॅकी में मुंह की खाई।तब से हाॅकी की हालत बिगड़ी तो बिगड़ती ही चली गई।

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खेल में हार या जीत तो चलती ही रहती है। पर यदि देश राजनीति के कारण हार जाए तो वह शर्मनाक बात है। आज यही हो रहा है। आज संसद में भी कोई यह सवाल पूछने को तैयार नहीं है कि हम हाॅकी में क्यों हारे ? देश के नाम की किसी को चिंता ही नहीं है। हाॅकी के मशहूर खिलाड़ी के.डी.सिंह बाबू ने जब 1978 में आत्म हत्या की तो कुछ लोगों ने यह भी कहा कि वे हाॅकी की दुर्दशा से विचलित हो उठे थे। हालांकि कुछ दूसरे लोगों ने उनकी आत्म हत्या का कारण कुछ और ही बताया था। याद रहे कि ध्यान चंद के नेतृत्व में भारतीय हाॅकी टीम ने तीन बार ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीता और बाबू के नेतृत्व में दो बार।पर, ऐसे विश्व प्रसिद्ध खिलाडि़यों द्वारा चयनित टीम को भी अन्य कारणों से दरकिनार कर दिया गया।

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मेजर ध्यान चंद ने 1978 में एक भेंट वार्ता में सिकंदर बख्त की विशेष तौर पर चर्चा की थी।
सिकंदर बख्त केंद्र में मंत्री भी रह चुके थे। ध्यान चंद के अनुसार सिकंदर बख्त को खुश करने के लिए उन्हें चेयरमैन की कुर्सी सौंप दी गई। चालीस पचास साल से हाॅकी खेलता रहा हूं। मैंने दुनिया के हर मुल्क में हाॅकी खेला। पर, सिकंदर बख्त कहां हाॅकी खेलते थे, मुझे पता नहीं। ध्यान चंद बताते हैं, ‘तब हाॅकी टीम की कोचिंग चल रही थी। मैं पटियाला गया हुआ था।वहां पर खेल संस्थान में मेरे नाम से एक हास्टल का उद्घाटन था। सिकंदर बख्त उस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे।वहां उनसे मेरा औपचारिक परिचय कराया गया। पर, सिकंदर बख्त ने मुझसे टीम के चयन पर कोई बातचीत नहीं की।इधर -उधर की चर्चाएं होती रहीं।

जानकार लोग कहते हैं कि भारतीय हाॅकी टीम के पतन के कारणों में प्रांतवाद और जातिवाद का भी योगदान रहा। आज जब इस देश में क्रिकेट खेल में आ रही तरह- तरह की विकृतियों की चर्चा हो रही है तो उस स्थिति में इसे याद कर लेना मौजूं होगा कि हाॅकी खेल को किस तरह रसातल में पहुंचाया गया। ध्यान चंद ने यह भी शिकायत की थी कि फिलिप्स कप्तान बनने लायक नहीं थे। फिलिप्स की वजह से टीम में आदिवासी क्रिश्चियन रखे गये। हमारे समय में खेल का पिछला रिकाॅर्ड देखा जाता था। टीम में शामिल होने के लिए खिलाडि़यों को कड़ा मुकाबला करना पड़ता था। उसके हर मैच का खेल देखने के बाद किसी खिलाड़ी का चयन होता था।किसी एक -दो मैच में अच्छे काम के आधार पर चयन नहीं होता था। अब पिछला रिकाॅर्ड नहीं देखा जाता।यहां तक कि चयन में भाई भतीजावाद और जातिवाद चलता है। योग्य खिलाड़ी रह जाते हैं और अयोग्य खिलाडि़यों का चयन हो जता है।

चयनकत्र्ता कान के कच्चे होते हैं। जरा सा मौका पाते ही व्यक्तिगत दुश्मनी पाल लेते हैं।
हाॅकी के खेल में पुरानी तकनीकी को छोड़कर खिचड़ी तकनीक अपनाई जा रही है। हार का एक कारण यह भी है।ध्यान चंद के जमाने में छोटे पास वाली तकनीक कारगर थी। अब तो छोटे पास देने के बजाय खिलाड़ी खुद गेंद लेकर भागता है या मैदान में भी अपनी पसंद के खिलाड़ी को ही पास देता है।यूरोपियन खिलाड़ी शारीरिक दृष्टि से इक्कीस पड़ते हैं। इसलिए वे सीधे भिड़ जाते हैं और गेंद हाथ से निकल जाती है। हाॅकी में पिछड़ने के कारणों में एक बड़ा कारण पेनाल्टी काॅर्नर है।उसको गोल में बदलने की हमारी क्षमता में कमी आई है।ऐसा अभ्यास की कमी के कारण हुआ है। ध्यान चंद के अनुसार हम लोग इसलिए भी जीतते थे कि मैदान में जाने से पहले हम सब खिलाड़ी मिलकर अपनी व्यूह रचना करते थे। अब तो कप्तान और कोच अपने अहं को तुष्ट करते रहते हैं और खिलाड़ी होटल के अपने कमरे में घुस जाते हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)