कल्याण सिंह- भारत में जाति एक कड़वी हक़ीकत है, सत्ता भोगने के लिए कामयाब औज़ार

याद कीजिए कि एक समय था जब कल्याण सिंह का कद इतना बढ़ गया था कि अटल , आडवाणी के बाद तीसरे नंबर पर कल्याण सिंह का नाम लिया जाता था।

New Delhi, Sep 18 : कल्याण सिंह भाजपा में पिछड़ी जाति की राजनीति के लिए ही सर्वदा उपस्थित किए गए। किसी पूजा-पाठ के लिए नहीं। सुनियोजित ढंग से। इस तरह कि इस बात को तब कल्याण सिंह भी नहीं समझ सके थे। भाजपा को तब राम मंदिर के लिए पिछड़ों की ज़रूरत थी। बिना पिछड़ी जाति के राम मंदिर आंदोलन को सफलता नहीं मिल सकती थी। न ही , विवादित बाबरी ढांचा बिना पिछड़ी जातियों के भाजपा ध्वस्त करवा सकती थी।

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कल्याण सिंह इसी कार्य और इसी रणनीति के तहत मुख्य मंत्री बनाए गए थे। विनय कटियार , नरेंद्र मोदी , उमा भारती , गोविंदाचार्य आदि बहुतेरे पिछड़े नेता अग्रिम पंक्ति के लिए इसी गरज से उपस्थित और सक्रिय किए गए थे। सवर्णों के बूते भाजपा अपने इस मकसद को किसी सूरत प्राप्त नहीं कर सकती थी। क्यों कि सवर्णों के पास न तो भीड़ है , न तोड़-फोड़ की वह स्किल और हुनर। आप इसे मेहनत का रंग भी दे सकते हैं। फिर उत्तर प्रदेश में भाजपा की राजनीति में कल्याण सिंह के जातीय आधार का मुकाबला न तो तब राजनाथ सिंह कर सकते थे , न कलराज मिश्र , न लालजी टंडन। राज्यपाल की पारी खत्म करने के बाद अब इस समय भी कल्याण सिंह का चेहरा इसी लिए आगे किया गया है। तब बाबरी ढांचा ध्वस्त करना मकसद था , अब राम मंदिर निर्माण का मकसद सामने है।

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इस लिए भी कि यह मंदिर निर्माण बिना पिछड़ी और दलित जाति की मदद के भाजपा कभी नहीं कर सकती। सवर्णों के वश का यह है भी नहीं। भाजपा जानती है कि कब किस का कहां और कैसे बेहतर उपयोग किया जा सकता है। याद कीजिए कि एक समय था जब कल्याण सिंह का कद इतना बढ़ गया था कि अटल , आडवाणी के बाद तीसरे नंबर पर कल्याण सिंह का नाम लिया जाता था। लेकिन कुछ तो कल्याण सिंह में अचानक आए अहंकार और बहुत कुछ राजनाथ सिंह की शकुनी बुद्धि ने कल्याण सिंह को अटल बिहारी वाजपेयी से सीधे, सीध लड़वा दिया। कल्याण सिंह परास्त हो गए और भाजपा ध्वस्त हो गई उत्तर प्रदेश में। वह तो नरेंद्र मोदी की आंधी में 2014 के लोकसभा चुनाव में अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को धो-पोंछ कर फिर से खड़ा किया। न सिर्फ़ खड़ा किया भाजपा को बल्कि मुलायम , मायावती की बंदर-बांट से उत्तर प्रदेश को बाहर निकाला।

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बहरहाल बात इतनी बिगड़ चुकी है कि अब उत्तर प्रदेश में पिछड़ी और दलित जाति की राजनीति बिना जहर उगले , नफरत की बात किए , मुमकिन नहीं। जहर उगलने की , नफरत बुझे तीरों से सवर्णों को अपमानित करने की नीति ही पिछड़ी जाति की , दलित राजनीति की अब नई राजनीतिक आधारशिला है। बिना इस व्याकरण के पिछड़ी और दलित राजनीति का एक वाक्य नहीं लिखा जा सकता अब। कम से कम उत्तर प्रदेश की राजनीति में। बल्कि देश में भी पिछड़ी और दलित राजनीति का यही राजमार्ग है। कल्याण सिंह इस राजमार्ग के पुराने योद्धा हैं। कोई अचरज की बात नहीं। याद कीजिए कि अभी बीते साल ही बतौर राज्यपाल , राजस्थान लखनऊ की एक सभा में कल्याण सिंह कह गए थे कि जो भी कोई पिछड़ों के आरक्षण के खिलाफ बोले , कोई भी हो उसे तुरंत थप्पड़ मार दो !

जाहिर है संवैधानिक कुर्सी पर बैठे किसी राज्यपाल की यह भाषा नहीं थी। राज्यपाल की मर्यादा ताक पर रख कर यह एक पिछड़ी जाति के नेता की जहर बुझी भाषा थी। भाजपा को इस अमर्यादित भाषा पर न तब ऐतराज था , न अब है। कल्याण सिंह भाजपा के लिए अब भी एक संभावना हैं। भाजपा के पिछड़ी जाति के आधार को और मज़बूत करने की संभावना। यह बात सर्वदा याद रखिए कि भारत में जाति एक कड़वी हक़ीकत है। सत्ता भोगने के लिए कामयाब औज़ार। और अफ़सोस कि इस मर्ज की अब कोई दवा नहीं है। कोई काट नहीं है। भूल जाइए कबीर के उस कहे या लिखे को :
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
भारतीय राजनीति और आरक्षण के खेल में जाति के इस मामले में कबीर अब पूरी तरह अप्रासंगिक हैं ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)