Opinion – भ्रष्ट अफसर: यह सजा काफी नहीं

सरकार द्वारा कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई सराहनीय है लेकिन मेरे विचार में उसमें दो बातें और जोड़ी जानी चाहिए।

New Delhi, Oct 01 : मोदी सरकार के पहली बार आते ही भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई शुरु की गई थी। लेकिन फिर सरकार ढीली पड़ गई लेकिन खुशी की बात है कि अब नई सरकार आते ही उसने भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई शुरु कर दी है। अब लगभग 50 अफसरों को सरकार ने जबरन सेवा-निवृत्त कर दिया है या यों कहें तो बेहतर होगा कि उन्हें धक्का मारकर निकाल दिया गया है। इनमें से ज्यादातर वित्त मंत्रालय से संबंधित अधिकारी हैं।

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ये अधिकारी इनकम टैक्स, सेल्स टैक्स आदि विभागों में उच्च पदों पर टिके हुए थे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बधाई की पात्र हैं कि वित्तीय संकट में फंसी सरकार को सम्हालते हुए भी उन्होंने यह साहसिक कार्य किया लेकिन यह काम ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर है। जिस सरकार के अफसरों और कर्मचारियों की संख्या लाखों में हों और उसमें से सिर्फ 50 ही पकड़े जाएं तो इसका मतलब क्या हुआ ? याने सरकार में भ्रष्टाचार कणभर भी नहीं है। लेकिन असली मामला एकदम उल्टा है याने हजार में से 50 सरकारी कर्मचारी भी यदि शुद्ध हों तो गनीमत है। यहां तो आवा का आवा ही ऊता है। पूरे कुंए में ही भांग पड़ी हुई है।

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सरकार का कौनसा विभाग है, जिसमें भ्रष्टाचार नहीं है ? अफसर और कर्मचारी जिस बेशर्मी से नागरिकों से घूस मांगते हैं और उन्हें तंग करते हैं, उसका चित्रण करना बड़ा मुश्किल है। इसका मूल कारण है- हमारे नेताओं का भ्रष्ट होना। कर्मचारियों को पता है कि उनके राजनीतिक स्वामी मोटा पैसा खाए बिना जिंदा नहीं रह सकते। इसीलिए उनका छोटा-मोटा पैसा खाना वे बर्दाश्त करेंगे ही। इसीलिए 72 साल की आजादी के बाद भी भारत में भ्रष्टाचार की धारा निरंतर बहती रही है। पिछले पांच वर्षों में सरकारी भ्रष्टाचार की लगभग 26 हजार शिकायतें औपचारिक रुप से दर्ज हुई हैं। यों तो उनकी संख्या 26 लाख भी हो सकती थी लेकिन शेर के मुंह में कोई हाथ क्यों डाले ?

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सरकार द्वारा कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई सराहनीय है लेकिन मेरे विचार में उसमें दो बातें और जोड़ी जानी चाहिए। पहली बात तो यह कि उन अफसरों ने कहां क्या भ्रष्टाचार किया है, इसे सर्वविदित किया जाना चाहिए। दूसरा, उनकी और उनके परिवार की समस्त चल और अचल संपत्ति जब्त की जानी चाहिए और उन्हें कोई पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। उनके नामों को चित्र सहित अखबारों और टीवी चैनलों पर प्रसारित किया जाना चाहिए। जिन अफसरों को जबरन नौकरी से निकाला गया है, उनमें से एक ने भी चूं तक नहीं बोला, कोई अदालत में नहीं गया, किसी ने अनशन-धरना नहीं किया याने उन्होंने खुद अपने भ्रष्ट होने पर मुहर लगाई है। सरकार उन्हें सही-सलामत क्यों छोड़ रही है, यह समझ में नहीं आता।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)