पटना का हाल देखकर लग रहा है, कॉस्मेटिक सर्जरी तो की गई, लेकिन तबीयत कायदे से नहीं पूछी गई

पटना का हाल देखकर लग रहा है कि दिखाने के लिए शहर की कॉस्मेटिक सर्जरी तो की गई मगर किसी भी सरकार ने उसकी तबीयत कायदे से नहीं पूछी।

New Delhi, Oct 02 : इस साल दो बार पटना गया और एक बार तो बाकायदा लंबा पोस्ट लिखा कि इस शहर का विकास बेहद बेतरतीब हालत में है। कहीं फ्लाईओवर बना तो दिया गया मगर लग रहा है जबरन ही बना दिया गया। ऊपर से कोई नामालूम वजह के चलते रास्ता भी बंद है। उसके नीचे कूड़े के खूब ढेर लगे हैं और लोग रॉन्ग साइड चलने को मजबूर हैं। रवीश के भी किसी पोस्ट में शहर के फ्लाईओवर्स को लेकर ऐसा ही कुछ पढ़ा था जिसमें वो अजीब ढंग से बनाए फ्लाईओवर को लेकर चिढ़े से थे।

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रेलवे स्टेशन के पास फाटक पार करने के लिए लोग एक घंटे तक जूझते हैं क्योंकि सड़क नाम की चीज़ बनाने की बात सरकार को सूझी ही नहीं। जिसका पहिया गड्ढे में फंस गया फिर वो उसे कर्ण की तरह अपने रथ से उतरकर निकाल रहा है। बाकी लोग जो उसके पीछे हैं मुंह पर गाली और उंगली से हॉर्न दबाए पसीने से लथपथा रहे हैं। पास ही में दारोगा जी किसी सब्जीवाले के ठेले पर बैठे चाय सुड़कते हुए दृश्य का आनंद ले रहे हैं क्योंकि वो जानते हैं कि जो एंबुलेंस भीड़ में फंसी खड़ी है उसमें किसी वीआईपी का रिश्तेदार तो यकीनन नहीं होगा।

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मैं नहीं कहता कि बाज़ारवाद कि बयार पटना में नहीं बही होगी। ज़ाहिर है, शहर में शोरूम हैं, ब्रांड हैं, मॉल हैं मगर एक अव्यवस्था भी है जिसका नतीजा अब बाढ़ में बिगड़ते हालात के रूप में सामने आ रहा है। खुद राज्य का डिप्टी सीएम निक्कर पहने घर का सामान लिए राहत के इंतज़ार में खड़ा है। सीएम पाजामा चढ़ाए पानी से डूबी सड़क पार करके गुज़र रहा है।

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जैसे ऐसे दृश्य काफी नहीं कि बारिश और बाढ़ को लेकर बेशर्म बयान भी आ रहे हैं। पटना का ऐतिहासिक और राजनीतिक महत्व किसी मायने में कम नहीं है लेकिन दुख है कि उसकी बदहाली पर बहस निकलते ही लोग लालू-नीतीश में उलझ जाते हैं। विकास एक सतत प्रक्रिया है। इसे जारी रखने में कई कई सरकारें खप जाती हैं। पटना का हाल देखकर लग रहा है कि दिखाने के लिए शहर की कॉस्मेटिक सर्जरी तो की गई मगर किसी भी सरकार ने उसकी तबीयत कायदे से नहीं पूछी।

(टीवी पत्रकार नितिन ठाकुर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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