शूर्पणखा ने ऐसा कौन सा पुण्‍य किया था कि वह श्रीकृष्ण की पत्नी बन गई? रोचक कथा

रावण की बहन शूर्पणखा और श्रीकृष्‍ण की पत्‍नी, जी हां ये कथा बहुत ही रोचक है । त्रेता युग से द्वापर युग तक की ये कथा बेहद दिलचस्‍प है । जानिए शूर्पणखा ने ऐसा क्‍या किया था जिसकी वजह से उसे स्‍वयं भगवान की वधू बनने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ ।

New Delhi, Oct 08: दंडकारण्य की स्वामिनी, रावण की अति प्रिय भगिनी शूर्पणखा के बारे में शायद ही आप ये बात जानते हों कि उन्‍हें श्रीकृष्‍ण की पत्‍नी का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ । आम जन में शूर्पणखा की छवि एक राक्षसी की है । एक ऐसी स्‍त्री जिसने नककटी होने के बाद श्रीराम और लक्ष्‍मण से बदले की ठानी और युद्ध के लिए रावण को प्रेरित किया । अंत में अपने ही कुल के नाश का कारण बनी । लेकिन इस सबके बावजूद वो श्रीकृष्‍ण की पत्‍नी बनी, उसका उद्धार हुआ । बड़े-बड़े ऋषि मुनी कठोर तप के बाद भी ये सुख प्राप्‍त नहीं कर पाते हैं, लेकिन शूर्पणखा को ये आशीर्वाद मिला ।

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भगवान श्री राम का सानिध्‍य मिला
शूर्पणखा को ना सिर्फ श्रीराम से वार्ता का सौभाग्‍य मिला बल्कि श्रीराम ने उसकी लक्ष्मणजी से भी बात करवाकर भक्तिस्वरूपा आद्या शक्ति जगत जननी सीता माता के दर्शन भी करवा दिए। दरअसल इस सब का मर्म शूर्पणखा के पूर्व जन्‍म में छिपा है । पूर्व जन्म में शूर्पणखा इन्द्रलोक की ‘नयनतारा’ नामक अप्सरा थी । उर्वशी, रम्भा, मेनका, पूंजिकस्थला आदि प्रमुख अप्सराओं में इनकी गिनती होती थी । कथानुसार इन्द्र के दरबार में अप्सराओं का नृत्य चल रहा था, उस समय यह नयनतारा नृत्य करते समय भ्रूसंचालन अर्थात आंखों से इशारा भी कर रही थी। ये देखते हुए इन्द्र उस पर मोहित हो गए । तब से नयनतारा इन्द्र की प्रेयसी बन गई ।

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वज्रा ऋषि के क्रोध का बनी भाजन
उस काल में पृथ्वी पर ‘वज्रा’ नामक एक ऋषि घोर तपस्या कर रहे थे । इंद्र ने उस समय नयनतारा को ही ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु पृथ्वी पर भेजा । लेकिन वज्रा ऋषि की तपस्या भंग होने पर उन्होंने अप्‍सरा को राक्षसी होने का श्राप दे दिया । ऋषि वज्रा से क्षमा-याचना करने पर उन्‍होने उसे कहा कि राक्षस जन्म में ही तुझे प्रभु के दर्शन होंगे । नयनतारा ने अपनी देह त्याग कर दी, और शूर्पणखा राक्षसी के रूप में रावण के घर जन्‍म दिया । उसने मन में ठान लिया था कि वो प्रभु को प्राप्‍त करके रहेगी । यहीं उसने एक बड़ी गलती कर दी, उसने भगवान राम को वन में देखते ही उन्‍हें पाने की इच्‍छा कर डाली ।

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अहंकारमय थी शूर्पणखा
शास्‍त्रों में कहा गया है ब्रह्म को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया होती है, जो भक्ति और वैराग्य के सहारे ही संपूर्ण होती है । जबकि शूर्पणखा ने ऐसा नहीं किया । उसने भक्तिरूपा सीता माता और वैराग्यरूपी श्री लक्ष्मणजी के पास न जाकर सीधे ब्रह्म को पाने की कोशिश की । वह सीधे श्रीराम को प्राप्‍त कर भक्ति को ही अलग कर देना चाहती थी । इसके अलावा वैराग्य का आश्रय लेती तो भी प्रभु को प्राप्त कर सकती थी, किंतु उसने वैराग्य को भी नकारकर अहंकार में सीधे प्रभु के पास जाना उचित समझा । प्रभु ने शूर्पणखा को  उचित प्रक्रिया का ज्ञान कराने के लिए उसे वैराग्यरूपी लक्ष्मण के पास भेजा । लेकिन वैरागी लक्ष्मण ने उसे पुन: प्रभु के पास भेज दिया। तब प्रभु ने कहा कि मैं तो भक्ति के वश में हूं, तब शूर्पणखा भक्तिरूपा सीता माता के पास गई, परंतु वहां भी एक भागवतापराध कर बैठी। सोचा, प्रभु इस भक्ति के वश में हैं, अत: मैं इस भक्ति को ही खा जाऊं। अत: लक्ष्मणजी ने क्रोध में आकर उसके नाक-कान काटकर अंग भंग कर दिया। इसके बाद शूर्पणखा के ज्ञान-चक्षु खुल गए और प्रभु के कार्य को पूरा कराने ‘विनाशाय च दुष्कृतम्’ के लिए उनकी सहायिका बनकर प्रभु के हाथ से खर व दूषण, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद आदि निशाचरों को मरवा दिया और प्रभु प्राप्ति की उचित प्रक्रिया अपनाने के लिए पुष्करजी में चली गई और जल में खड़ी होकर भगवान शिव का ध्यान करने लगी।

बनी श्रीकृष्ण की पत्नीं
करीब दस हजार वर्ष बाद भगवान शिव ने शूर्पणखा को दर्शन दिए और वरदान दिया कि 28वें द्वापर युग में जब श्रीराम कृष्णावतार लेंगे, तब कुब्जा के रूप में तुम्हें कृष्ण से पति सुख की प्राप्ति होगी। तब श्रीकृष्ण तुम्हारी कूबड़ ठीक करके वही नयनतारा अप्सरा का मनमोहक रूप प्रदान करेंगे। और ऐसा ही हुआ । शूर्पणखा को अंत में अप्‍सरा का मोहक रूप भी मिला और वो भगवान की सहचर्या भी बनीं ।