जिस देश की 60 फीसदी जनता 3 आना में गुजारा करती थी, वहीं नेहरु का खर्च 25 से 30 हजार के बीच था

लोहिया जैसे नेता सत्ता पक्ष को असली चुनौती दे सके क्योंकि वे अपने जीवन में ईमानदार थे। दृढ़ निश्चयी थे। वे संघर्षों की उपज थे न कि किसी परिवार की।

New Delhi, Oct 15 : विपक्ष का मतलब क्या होता है? इसे समझने के लिए राम मनोहर लोहिया को समझना होगा। आज 12 अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि है। पर वो तारीख थी 21 अगस्त 1963, नेहरू इस देश के प्रधानमंत्री थे। लोहिया विपक्ष में थे। नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। यह देश का पहला अविश्वास प्रस्ताव था। लोहिया भाषण देने खड़े हुए। भाषण का मुद्दा था 3 आना बनाम 15 आना। लोहिया ने बोलना शुरू किया।

Advertisement

उन्होंने बताया कि योजना आयोग के मुताबिक देश की 60 फीसदी जनसंख्या तीन आने से भी कम में गुजर बसर कर रही है। यानि देश में करीब 27 करोड़ लोग सिर्फ 3 आने में अपना पेट भरने को मजबूर हैं। इस पर नेहरू तपाक से बोले कि आपकी जानकारी गलत है, 3 आना नहीं बल्कि 15 आना। हालांकि नेहरू जिस आंकड़े का जिक्र कर रहे थे, वह भी उनकी सरकार के लिए बेहद शर्मनाक था। 15 आने में आखिर एक व्यक्ति कैसे गुजर बसर कर सकता था? तब तक लोहिया ने नए आंकड़े पेश किए।

Advertisement

लोहिया ने बताया कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कुर्ते की धुलाई में रोज 3 रुपये खर्च होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री का रोज का अपना खर्चा 25 हज़ार से 30 हज़ार के बीच का है। अब नेहरू के पास कोई जवाब नहीं था।

Advertisement

यह वही लोहिया थे जो नेहरू के खिलाफ फूलपुर से 1962 का चुनाव लड़े थे और यहां के 43 बूथों पर उनसे अधिक वोट पाकर भी चुनाव हार गए थे। अगले साल 1963 में फर्रुखाबाद से उपचुनाव जीतकर फिर वापस संसद पहुंचे। लोहिया जैसे नेता सत्ता पक्ष को असली चुनौती दे सके क्योंकि वे अपने जीवन में ईमानदार थे। दृढ़ निश्चयी थे। वे संघर्षों की उपज थे न कि किसी परिवार की। वे मुश्किलों का सामना करके आगे बढ़े थे, न की चांदी का चम्मच अपने मुंह में लेकर पैदा हुए थे। उनकी स्मृतियों को को शत-शत प्रणाम।

(टीवी पत्रकार अभिषेक उपाध्याय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)