देश विभाजन के समय सरदार पटेल ने कहा था ‘नया देश पाकिस्तान जी नहीं पाएगा।’
स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद देश के विभाजन के सख्त खिलाफ थे। सरदार पटेल ने भी खींझ कर बंटवारा स्वीकार किया।
New Delhi, Oct 31 : देश के विभाजन के वक्त सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कहा था कि ‘नया देश पाकिस्तान जी नहीं पाएगा।’ यह बात मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी पुस्तक ‘आजादी की कहानी’ में लिखी है। मौलाना ने लिखा है कि ‘ उनका यानी सरदार पटेल का ख्याल था कि पाकिस्तान की मांग मान लेने से मुस्लिम लीग को अच्छा -खासा सबक मिल जाएगा। थोड़े ही अरसे में पाकिस्तानी इमारत भरभरा कर ढह जाएगी और जो प्रांत हिंदुस्तान से अलग हो रहे हैं उन्हें बेहिसाब मुसीबतें और परेशानियां झेलनी पड़ेंगी।’
याद रहे कि स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद देश के विभाजन के सख्त खिलाफ थे। सरदार पटेल ने भी खींझ कर बंटवारा स्वीकार किया। बंटवारे के ठीक पहले नेताओं और दलों के बीच क्या- क्या बातें हुर्इं और कौन नेता क्या कह और कर रहा था,इस के बारे में मौलाना आजाद की टिप्पणियां जानना महत्वपूर्ण व मौजूं होगा। ताजा माहौल में और भी मौजूं है जब पाकिस्तान एक बार फिर इतिहास के चैराहे पर खड़ा है। मौलाना ने लिखा था कि
‘देश का बंटवारा कांग्रेस ने भी स्वीकार किया और मुस्लिम लीग ने भी। चूंकि कांग्रेस सारे राष्ट्र की प्रतिनिधि संस्था थी और मुस्लिम लीग को मुसलमानों में काफी समर्थन प्राप्त था,इसलिए सामान्यतः इसका मतलब यही होना चाहिए कि सारे देश ने बंटवारा स्वीकार कर लिया।
परंतु वस्तुस्थिति एकदम भिन्न थी। यह स्वीकृति बस कांग्रेस महा समिति के एक प्रस्ताव में और मुस्लिम लीग के अभिलेखों में ही निहित है। हिंदुस्तान के लोगों ने बंटवारे को स्वीकार न किया था।’ ‘कांग्रेस नेताओं ने सहज-सरल भाव से बंटवारे को स्वीकार नहीं किया था। कुछ ने क्र्रोध और रोष के वश में अन्यों ने तंग आकर उसे स्वीकार कर लिया था। जब आदमी डर या रोष से अभिभूत हो जाता है तो वह किसी भी चीज को वस्तुपरक दृष्टि से नहीं परख पाता। फिर भाव के आवेश में काम करने वाले ये बंटवारे के हिमायती कैसे समझ पाते कि वे जो कुछ कर रहे हैं,उसके क्या- क्या नतीजे निकल सकते हैं ?’
मौलाना के अनुसार, ‘कांग्रेसियों में बंटवारे के सबसे बड़े हिमायती सरदार पटेल थे। पर उनका भी विश्वास न था कि हिंदुस्तान की समस्या का सबसे बड़ा हल यही है। आहत अहंकार के कारण और चिढ़कर उन्होंने बंटवारे की हिमायत करना शुरू कर दिया। वित्त मंत्री के रूप में लियाकत अली खां उनके हर सुझाव में कुछ न कुछ पेंच लगा कर उसे अस्वीकार कर देते थे। इसलिए कदम- कदम पर उन्हें निराशा का सामना करना पड़ता था। नतीजा यह हुआ कि एकदम रोष में आकर उन्होंने तय कर लिया कि अगर कोई और चारा नहीं है तो बंटवारे को स्वीकार कर लिया जाना चाहिए।’ बंटवारे के बाद हिंदुस्तान में रह गए मुसलमानों के बारे में देश के मौलाना आजाद ने लिखा, ‘बंटवारे के बाद सबसे विडंबनामय स्थिति उन मुस्लिम लीगी नेताओं की थी जो हिंदुस्तान में रह गए थे।
जिन्ना अपने अनुयायियों को यह संदेश देकर कराची चले गए कि अब देश बंट गया है, इसलिए अब उन्हें हिंदुस्तान का वफादार नागरिक बन जाना चाहिए। चलते वक्त के इस संदेशे ने उनमें एक अजीब कमजोरी की भावना भर दी और उनके वहम का पर्दा एकबारगी फट गया। 14 अगस्त 1947 के बाद उनमें से कई नेता मुझसे मिलने आए। उनकी दशा बड़ी दयनीय थी।सभी बड़े अफसोस और गुस्से में कह रहे थे कि जिन्ना ने हमें धोखा दिया है और हमें मंझधार में छोड़ दिया है।’ ‘पहले तो मैं समझा नहीं कि उनके इस कथन का क्या मतलब है कि जिन्ना ने हमें धोखा दिया है। दरअसल इन लोगों ने बंटवारे की जो तस्वीर अपने मन में बनाई थी , उसका वस्तुस्थिति से कोई नाता नहीं था।
पाकिस्तान के सही माने क्या होंगे, यह बात वे लोग न समझ पाए थे। अगर मुसलमानों के बहुमत वाले प्रांतों का एक अलग देश बन गया तो यह बात साफ थी कि जिन प्रांतों में मुसलमानों का अल्पमत है, वे हिंदुस्तान के हिस्से बनेंगे। यू.पी.और बिहार में तो मुसलमानों का अल्पमत था और बंटवारे के बाद भी रहना था। अजीब बात है, लेकिन यह सच है कि इन मुस्लिम लीगियों को यह समझा दिया गया था और अपनी बेवकूफी के कारण इन्होंने मान भी लिया था कि पाकिस्तान बन गया तो मुसलमानों को चाहे वे मुसलमानों के बहुमत वाले प्रांतों के हो,या अल्पमत वाले प्रांतांे के अलग राष्ट्र समझा जाएगा और उन्हें अपने भविष्य का निर्णय अपने आप करने का हक होगा। अब जब मुसलमान बहुल प्रांत हिंदुस्तान से बाहर निकल गए,इनलोगों को एहसास हुआ कि इन लोगों ंने बंटवारा से पाया कुछ भी नहीं,बस सब कुछ खोया ही खोया है।जिन्ना के आखिरी संदेशे ने तो उनकी कमर ही तोड़ डाली।वे और कमजोर हो गए और अपनी बेवकूफियों से हिंदुओं में रोष और विरोध की भावना और पैदा कर दी थी।’
(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)