धर्म: अनोखी है इस ‘सूर्य मंदिर’ की कथा,  छठ पर्व पर लगती है लाखों श्रद्धालुओं की भीड़

देश में कई सूर्य मंदिर हैं, आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बता रहे हैं ये प्राचीन तो है ही साथ ही अनोखा भी है । बताया जाता है कि मंदिर डेढ़ लाख साल पहले बना था, वो भी सिर्फ एक दिन में ।

New Delhi, Nov 02: भारत विविधताओं में एकता का देश है । जाति धर्म से परे यहां त्‍यौहारों पर आस्‍था का जो मेला लगता है वो देखते ही बनता है । त्‍यौहारों में मानों सब एक दूसरे में रम जाते हैं । ऐसा ही एक पर्व है छठ । सूर्य देव को समर्पित ये व्रत हर साल बिहार में धूमधाम से किया जाता है । 4 दिन के इस व्रत के दौरान बिहार के वो लोग जो दूसरे शहरों में रहते हैं, अपने घरों को लौटते हैं और व्रत का हिस्‍सा बनते हैं । आपने अब तक कई सूर्य मंदिरों के बारे में सुना होगा उन्‍हें देखा होगा । लेकिन बिहार के औरंगाबाद जिले के देव स्थित प्राचीन सूर्य मंदिर की बात ही अलग है ।

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मंदिर से जुड़ी अनोखी बात
कहा जाता है कि इस मंदिर को बनाने वाले स्‍वयं देवताओं के शिल्‍पकार विश्‍वकर्मा जी थे । जिन्‍होने इस मंदिर का निर्माण त्रेता युग में किया था । महज एक रात में बनकर तैयार हुए इस मंदिर की भव्‍यता देखते ही बनती है । मंदिर निर्माण से जुड़ी इन मान्‍यताओं के कोई साक्ष्‍य तो नहीं है, लेकिन जिस शिल्‍पकला के साथ इस मंदिर को बनाया गया है वो अनूठी है । प्राचीन सूर्य मंदिर से जुड़ी एक खास बात ये है कि ये देश का अकेला ऐसा मंदिर है जिसका दरवाजा पश्चिम की ओर खुलता है । हिंदू धर्म में भगवान को पूर्व का स्‍थान दिया गया है, नॉर्थ ईस्‍ट दिशा जिसे ईशान कोण कहते हैं काफी शुभ मानी जाती है । ऐसे में इस मंदिर को पश्चिम में खुलने वाला द्वार एक रहस्‍य है, इसे ऐसा क्‍यों बनाया गया इसके पीछे कोई कथा सामने नहीं आती ।

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डेढ़ लाख साल पुराना है ये मंदिर
मंदिर के निर्माण काल के बारे में मंदिर के बाहर लगे एक शिलालेख पर ब्राह्मी लिपि में लिखित औ र संस्कृत में अनूदित एक श्लोक के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण 12 लाख 16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इला-पुत्र पुरुरवा ऐल ने आरंभ करवाया था । शिलालेख से पता चलता है कि इस वर्ष यानी साल 2017  में इस पौराणिक मंदिर के निर्माण काल को एक लाख पचास हजार सत्रह वर्ष पूरे हो गए हैं । इस देव मंदिर में सात रथों से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तियां अपने तीनों रूपों उदयाचल (सुबह) सूर्य, मध्याचल (दोपहर) सूर्य और अस्ताचल (अस्त) सूर्य के रूप में विद्यमान है ।

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मंदिर में है पवित्र सूर्य कुंड
कार्तिक और चैत महीने में छठ करने यहां देश के कई राज्‍यों से श्रद्धालु पहुंचते हैं । मंदिर के पास ही एक सूर्यकुंड है जहां व्रती सूर्य को अर्घ्‍य देते हैं और पूजा करते हैं । मंदिर में हर दिन सुबह चार बजे भगवान को घंटी बजाकर जगाया जाता है । उसके बाद पुजारी भगवान को नहलाते हैं, ललाट पर चंदन लगाते हैं, नया वस्त्र पहनाते हैं । यह परंपरा आदि काल से चली आ रही है ।

छठ पर्व पर जुटते हैं श्रद्धाालु
4 दिन के छठ पर्व में सूर्य देव की आराधना का विशेष महत्‍व है । एक दिन उगते सूरज को अर्घ्‍य और अगले दिन डूबते सूरज को अर्घ्‍य दिया जाता है । निर्जला रखे जाने वाले इस व्रत को करने वाला व्‍यक्ति अपने परिवार के साथ सभी की सुख समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करता है । इस पर्व पर प्राचीन मंदिर में लाखों लोग दर्शन के लिए उमड़ते हैं । अपनी मनौति पूरी होने पर वो भगवान का धन्‍यवाद करते हैं ।