रोज नए-नए कानून किसलिए? पत्नी को छोड़कर भागने वाले लोग सास-ससुर की देखभाल करेंगे?

अगर कोई बेटा या दामाद अपने बुजुर्ग माता-पिता या सास-ससुर का ख्याल नहीं रखे तो उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान करने से पहले क्या यह जरूरी नहीं है कि युवाओं के कमाने की व्यवस्था की जाए।

New Delhi, Dec  05 : नवभारत टाइम्स में आज प्रकाशित एक खबर के अनुसार सरकार बुजुर्गों के प्रति दामाद की भी जिम्मेदारी तक करना चाहती है। इस खबर के अनुसार वरिष्ठ नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए पुराने कानून में अहम बदलावों को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी है। संशोधित कानून के बाद बेटा ही नहीं, दामाद भी वृद्ध सास-ससुर की देखभाल के लिए जिम्मेदार होगा। भरण-पोषण के लिए तय अधिकतम 10 हजार की सीमा को समाप्त किया है। तकनीकी तौर पर ऐसे प्रावधान और इस तरह जिम्मेदार ठहराए जाने को गलत नहीं कहा जा सकता है पर ऐसे कानून लागू कैसे होंगे और इसका लाभ क्या मिलेगा?

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नागरिकों के प्रति सरकार अपनी जिम्मेदारी का पालन तो कर नहीं पा रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं तो हैं नहीं। और सरकार एसपीजी कानून की समीक्षा कर रही है और इसमें समय लगा रही है जबकि यह देश के कुछेक प्रधानमंत्री और पूर्व प्रधानमंत्रियों तथा उनके परिवार से ही संबंधित है। और इसमें कोई बचत भी नहीं होनी। एसपीजी तो वैसे ही रहेगी। फिर भी, सरकार इसपर गंभीरता से लगी हुई है पर बलात्कार पीड़ित की सुरक्षा व्यवस्था नहीं कर सकती है। डबल इंजन वाले प्रदेश में भी नहीं। आतंकवाद पीड़ितों का खतरा कम हुआ है यह सरकार पता कर सकती है लेकिन आम नागरिकों को कौन खतरे में है और जो कह रहा है कि उसे खतरा है – दोनों मामलों में सरकार उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पा रही है।

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व्यवस्था और समान्य प्रशासन के कामों में सरकार इतनी फिसड्डी है कि प्याज सड़ गया और बाजार भाव आसमान छू रहा है। अब सरकार प्याज आयात कर रही है जो महीने भर बाद पहुंचेगा और हम तब-तकी यही या इससे भी ज्यादा भाव झेलते रहेंगे। वित्त मंत्री प्याज खाती नहीं हैं इसलिए उन्हें चिन्ता नहीं हुई। तो सरकार जिसकी चिन्ता कर रही है वो सब उनसे संबंधित हैं?
दूसरी ओर वरिष्ठ नागरिकों या बेसहारा लोगों के प्रति सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रही है। बच्चों के लिए मिड डे भोजन की व्यवस्था का बुरा हाल है। देश भर में गरीबों कमजोरों के इलाज की व्यवस्था नहीं है। कहीं बीमा करवाकर काम चलाया जा रहा है कहीं चूक होने के बाद मुआवजा दिया जा रहा है पर नागरिकों के लिए कानून पर कानून बनाए जा रहे हैं। जब लोग पत्नी का ख्याल नहीं रख रहे हैं तो दामाद को सास ससुर का ख्याल रखने के लिए जिम्मेदार बनाने के कानून से क्या होगा? सरकार चाहती क्या है? बुजुर्गों का ख्याल रखा जाए या नहीं रखने वालों को सजा मिले। दोनों अलग चीजें हैं। सजा के प्रावधान से ख्याल रखना कोई जरूरी नहीं है।

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यही नहीं, अगर कोई बेटा या दामाद अपने बुजुर्ग माता-पिता या सास-ससुर का ख्याल नहीं रखे तो उसके खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान करने से पहले क्या यह जरूरी नहीं है कि युवाओं के कमाने की व्यवस्था की जाए। उसे देखभाल करने लायक होना सुनिश्चित किया जाए। जो काम सरकार को करना है वह तो बीमा करवाकर बच ले रही है पर नागरिकों को यही विकल्प क्यों नहीं दे रही है। समाज में एक वर्ग कमाता नहीं है, एक वर्ग पेंशन नहीं पाता है, एक वर्ग इलाज की सुविधा नहीं पाता है और ऐसे कई वर्ग हैं। इन सभी वर्गों के लोगों और उनके बुजुर्गों के लिए एक कानून होने का क्या मतलब है? और एक ही कानून होना है तो क्या वह बीमा करा देने जैसा सबसे आसान वाला विकल्प नहीं होना चाहिए जो सरकार अपने मामले में उपयोग करती है?

यही नहीं, जब ऐसे कानून की मांग नहीं है, पहले ही इतने कानून हैं कि उनका पालन नहीं हो पा रहा है तो रोज नए-नए कानून किसलिए? अभी जो कानून हैं उनका दुरुपयोग कम नहीं होता है फिर दुरुपयोग करने के लिए और कानून बनाने से पहले क्या यह जरूरी नहीं है कि कानून का दुरुपयोग न हो – यह सुनिश्चित किया जाए। जिन मामलों में ऐसा संभव नहीं है उसे खत्म किया जाए। ऐसे कानूनों में वेश्यावृत्ति कानून शामिल है। मैं नहीं कहता इसे हटा ही दिया जाना चाहिए पर ढंग से लागू तो किया जाए और नहीं किया जा सकता है तो हटाने पर विचार क्यों नहीं और इससे पहले नए-नए कानून का क्या मतलब?

(वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)