दिल्ली अग्निकांड – इन मौतों का जिम्मेदार कौन?

यह कांड दिल्ली में हुआ, इसलिए देश का इस पर इतना ध्यान भी गया। दिल्ली और गुड़गांव में ऐसे सैकड़ों स्थल और भी हैं लेकिन देश के कई शहर और कस्बों में उनकी भरमार है।

New Delhi, Dec 10 : दिल्ली की एक अनाज मंडी के इलाके में लगी आग के कारण 43 लोग मारे गए। इस भयंकर हत्याकांड पर जो राजनीतिक दंगल चल रहा है, वह जले पर नमक के समान है। भाजपा और आप पार्टी के नेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं। भाजपा कह रही है कि दिल्ली की इस दुर्घटना के लिए दिल्ली की केजरीवाल सरकार जिम्मेदार है और केजरीवाल कह रहे हैं कि जिस इलाके में यह घटना घटी है, उसके लिए भाजपा की नगर निगम जिम्मेदार है।

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यह तो अच्छा हुआ कि दोनों पार्टियों की सरकारों ने हताहत लोगों के लिए इतनी राशि का एलान कर दिया है कि उसके ब्याज से उनके परिजन को इतनी आमदनी हो जाएगी कि वे भूखे नहीं मरेंगे। लेकिन दोनों सरकारों और उनके अफसरों की लापरवाही क्या माफी के लायक हैं ? बिल्कुल नहीं। इसका अर्थ यह नहीं कि नेताओं और अफसरों को हत्या के अपराध में पकड़कर जेल में डाल दिया जाए। लेकिन यह जरुरी है कि जनता और अदालतें उन्हें कठघरे में खड़ा करें। उनसे पूछा जाए कि आवासी घरों में फेक्टरियां चलने देने के लिए कौन जिम्मेदार है ? फायर ब्रिगेड की अनुमति के बिना ज्वलनशील कारखाने कैसे चल रहे हैं ?

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जो भी इन क्षेत्रों के अफसर हों, उन्हें दंडित किया जाए, उन्हें नौकरी से निकाला जाए, उनकी पेंशन रोक ली जाए और इन सब कार्रवाइयों का प्रचार किया जाए तो देश के सारे नौकरशाहों का आचरण सुधरेगा। कारखाने के मालिकों को तो सजा होनी ही चाहिए। इसके अलावा उस मोहल्ले के लोगों पर भी भारी जिम्मेदारी है। उन्हें चाहिए कि ऐसे अवैध कारखानों के बारे में वे खुले-आम शिकायतें करें और अभियान चलाएं। आग थोड़ी फैल जाती तो सैकड़ों लोग मारे जा सकते थे। उन्हें भी चुप रहने की सजा मिलती। चार-पांच लोग यहां जलने से मरे और दर्जनों दम घुटने से। मोबाइल फोन पर उनके अंतिम क्षणों की बातचीत रोंगटे खड़े कर देती है।

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यह कांड दिल्ली में हुआ, इसलिए देश का इस पर इतना ध्यान भी गया। दिल्ली और गुड़गांव में ऐसे सैकड़ों स्थल और भी हैं लेकिन देश के कई शहर और कस्बों में उनकी भरमार है। मैं अपने नेताओं और अफसरों से कहता हूं कि कृपया अपने आप को उस हालत में रखकर जरा देखे, जिसमें 43 लोगों ने अपने दम तोड़ा है। फायर ब्रिगेड के अधिकारी राजेश शुक्ल और उनके साथियों की बहादुरी को मेरे सलाम, जिन्होंने अपनी जान खतरे में डालकर कइयों की जान बचाई।

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)