हैदराबाद एनकाउंटर के निहितार्थ बहुत गहरे हैं, ये कोई सामान्य एनकाउंटर नहीं है, इसे समझने की जरूरत है

पुलिस या आम आदमी कानून हाथ में न ले, इसके लिए जरूरी है कि अपराधी शीघ दंडित हों। न्याय के लिए लोगों को साल दर साल इंतजार न करना पड़े।

New Delhi, Dec 14 : हैदराबाद एनकाउंटर के निहितार्थ बहुत गहरे हैं। यह कोई सामान्य एनकाउंटर नहीं है। इसे समझने की जरूरत है। यह रेपिस्ट का एनकाउंटर नहीं, इस देश की न्यायिक व्यवस्था का एनकाउंटर है। अंग्रेजों के बनाये भारतीय दंड विधान का एनकाउंटर है। अंग्रेजीदां नौकरशाहों द्वारा संचालित शासन व्यवस्था का एनकाउंटर है। राजनेताओं की किंकर्तव्यविमूढ़ता का एनकाउंटर है।

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इसके लिए हैदराबाद पुलिस बधाई की पात्र है। उन वीरों का सार्वजनिक अभिनंदन किया जाना चाहिए। अपनी नौकरी दाव पर रख, उन्होंने जनभावना का सम्मान किया है। इसलिए वे सम्मान के अधिकारी हैं। लेकिन अंग्रेजी मानसिकता की गुलाम, लालफीताशाही में जकड़ी और पीड़ितों को त्वरित न्याय देने के बदले तारीख पर तारीख देने वाली न्यायपालिका इस भाव को समझने में असमर्थ है। क्योंकि न्याय की देवी की आंखों पर काली पट्टी जो बंधी है!
इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद एनकाउंटर की जांच बिठाई है। जितनी तत्परता जांच बिठाने में दिखाई गई, उतनी अगर रेपिस्टों को दंडित करने में दिखाई जाती तो एनकाउंटर की जरूरत ही नहीं पड़ती। निर्भया के गुनहगारों को सात साल से मेहमान बनाकर रखा गया है। अब जब हैदराबाद एनकाउंटर हुआ तब अदालत को याद आया कि उन्हें फांसी देनी है ? ऐसी न्याय व्यवस्था को हज़ार बार धिक्कार है।

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देश भूला नहीं है, किस तरह गोगोई साहब को यौन उत्पीड़न के आरोप से क्लीन चिट दिया गया था? एक समय भागलपुर ऑंखफोड़वा कांड की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ी थी। जिस तरह आज पूरा देश हैदराबाद पुलिस के साथ खड़ा है, ठीक उसी तरह तब भागलपुर के लोग पुलिस के साथ खड़े हुए थे। कुछ अपराधियों के आतंक से तब भागलपुर कांप रहा था। अपराधी पकड़े जाते। पर कोर्ट से छूट जाते। पुलिस को जनता से मुंह छिपाना पड़ रहा था। अंततः पुलिस ने अपराधियों की आंखें फोड़ दी। उसके बाद भागलपुर अर्से तक शांत रहा।
जन आक्रोश देख पुलिस तो जाग जाती है, लेकिन न्यायपालिका कब जागेगी?

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पुलिस या आम आदमी कानून हाथ में न ले, इसके लिए जरूरी है कि अपराधी शीघ दंडित हों। न्याय के लिए लोगों को साल दर साल इंतजार न करना पड़े। कहा भी गया है कि देर से मिला न्याय न्याय नहीं है। न्यायिक व्यवस्था और शासन से जुड़े लोगों को इसे याद दिलाने की जरूरत है। अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि उन्हें जनाक्रोश के एनकाउंटर का शिकार होना पड़ेगा।
हमें उम्मीद करनी चाहिए कि देश की न्याय व्यवस्था में जल्द ही बदलाव होगा।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)