फांसी पर लटकाने के 2 घंटे बाद भी नहीं मरा ये शख्स, तो फिर ऐसे ली गई थी जान

तिहाड़ जेल के पूर्व प्रवक्ता सुनील गुप्ता की किताब ब्लैक वॉरेंट में ये किस्सा लिखा है, इसके मुताबिक फांसी में हर चीज ब्लैक होती है।

New Delhi, Dec 16 : निर्भया के दोषियों को फांसी देने की प्रक्रिया में आई तेजी की वजह से उनके माता-पिता को एक आस जगी है, कि जल्द ही उनकी बेटी को न्याय मिलेगा, इस बीच कई ऐसी खबरें आ रही है कि फांसी की क्या प्रक्रिया है, कैसे एक शख्स को फांसी पर लटकाने के बाद भी वो कुछ घंटे जिंदा रहा, दरअसल आज से 37 साल पहले ऐसा हो चुका है, वो भी दिल्ली के तिहाड़ जेल में, तब जिस शख्स को फांसी दी गई थी, दो घंटे तक उसकी नाड़ी चलती रही, फिर दूसरे तरीके से उसकी जान ली गई, आइये आपको बताते हैं कि कौन था वो शख्स और क्या है पूरी कहानी।

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साल 1982 का किस्सा
मेडिकल साइंस का हवाला देते हुए तिहाड़ जेल के वरिष्ठ डॉक्टर के अलावा वास्तविकता में भी शरीर का वजन कम होने की वजह से दो घंटे बाद भी मौत नहीं होने का किस्सा हो चुका है, ये घटना 31 जनवरी 1982 की है, कुख्यात हत्यारे रंगा और बिल्ला को इसी दिन फांसी दी गई थी।

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हर चीज काला
तिहाड़ जेल के पूर्व प्रवक्ता सुनील गुप्ता की किताब ब्लैक वॉरेंट में ये किस्सा लिखा है, इसके मुताबिक फांसी में हर चीज ब्लैक होती है, ब्लैक कपड़े, ब्लैक वॉरेंट, ब्लैक थैला(जिससे सिर ढका जाता है) इत्यादि। 31 जनवरी 1982 को सुबह 5 बजे रंगा ने स्नान किया, जबकि बिल्ला ने स्नान करने से मना कर दिया।

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फांसी दी गई
तत्कालीन जेल अधीक्षक आर्य भूषण शुक्ल ने लाल रुमाल हिलाया, तो जल्लाद ने लीवर खींच लिया, इसके दो घंटे बाद जब डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि बिल्ला की जान जा चुकी है, लेकिन रंगा की नाड़ी तब तक चल रही थी, सांस रोकने या शरीर का वजन कम होने की वजह से ऐसा हो सकता है, जब रंगा में सांस चल रही थी, तो उसके पैरों को दोबारा से नीचे जाकर खींचा गया, जिसके बाद उसने दम तोड़ा, किताब ने लेखक ने दावा किया है, कि वो उस समय मौके पर मौजूद थे।