वीडियो- यह कैसा आंदोलन है जो मीडिया का मुंह बंद करना चाहता है?

21 दिसंबर को राजद द्वारा नागरिकता कानून के विरोध में आहूत बिहार बंद में एक नई प्रवृति दिखी। एक गिरोह मानों पत्रकारों को पीटने का प्लान बना कर आया था।

New Delhi, Dec 22 : पटना ने अनेकों ‘बंद’ देखे हैं, लेकिन 21 दिसंबर 2019 जैसा ‘बंद’ कभी नहीं देखा। इस ‘बंद’ में पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्टों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया। आखिर उनका कसूर क्या था?

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पटना का डाकबंगला चौराहा प्रायः सभी तरह के ‘बंदों’ का प्रमुख केंद्र बन जाता है। सभी नेता-कार्यकर्ता-समर्थक-तमाशबीन वहां जमा होते हैं। उसे कवर करने के लिए पत्रकार-छायाकार भी पहुंचते हैं। कभी किसी ने उन्हें रोका-टोका हो यह मुझे याद नहीं आता। हां, कभी-कभी कोई छुटभैया नेता अपना नाम छापने या बाईट लेने के लिए जरूर दबाव बनाता है। पर इससे ज्यादा कभी कुछ नहीं हुआ।

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21 दिसंबर को राजद द्वारा नागरिकता कानून के विरोध में आहूत बिहार बंद में एक नई प्रवृति दिखी। एक गिरोह मानों पत्रकारों को पीटने का प्लान बना कर आया था। जहां कोई पत्रकार दिखता यह गिरोह उसे मारने-पीटने और उसका कैमरा तोड़ने में जुट जाता था। जागरण के कैमरामैन का माथा फोड़ दिया गया।। कृष्णमोहन शर्मा (TOI) जैसे सीनियर फोटो जर्नलिस्ट को पीटा गया। रिपब्लिक टीवी के प्रकाश सिंह और उनके कैमरामैन के साथ हाथापाई हुई। करीब एक दर्जन पत्रकारों ने एक कमरे में खुद को बंद कर अपनी जान बचाई। बाद में पुलिस सुरक्षा में उन्हें निकाला गया। करीब आधे दर्जन पत्रकार-छायाकार घायल हुए। कई ओबी वैन क्षतिग्रस्त किये गए।

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यह सब सीनियर नेताओं और पुलिस की मौजूदगी में हुआ। किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं। संविधान बचाने के नाम पर इस बंद का आयोजन किया गया था। क्या पत्रकारों को पीटने और उन्हें काम न करने देने से संविधान बचेगा? यह कैसा आंदोलन है जो मीडिया का मुंह बंद करना चाहता है? बंद के आयोजकों को इसका जवाब देना चाहिए।
डाकबंगला चौराहे पर जब तेजस्वी यादव भाषण कर रहे थे, उसी समय पत्रकारों पर हमले शुरू हुए। साफ है कि हमलावरों की मंशा तेजस्वी यादव और राजद को बदनाम करने की होगी। राजद के अनेकों बंद हमने कवर किये हैं, पर कभी इस तरह पत्रकारों को निशाना नहीं बनाया गया। तेजस्वी यादव को अभी लंबी राजनीति करनी है। उन्हें खुद आगे बढ़कर पत्रकारों पर हमला करनेवालों की गिरफ्तारी के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। साथ ही इस घटना के लिए उन्हें खेद भी व्यक्त करना चाहिए।क्योंकि पत्रकार उनके बुलावे पर उन्हें कवर करने गए थे।

पटना ने अनेकों 'बंद' देखे हैं, लेकिन 21 दिसंबर 2019 जैसा 'बंद' कभी नहीं देखा। इस 'बंद' में पत्रकारों और फोटो जर्नलिस्टों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया। आखिर उनका कसूर क्या था? पटना का डाकबंगला चौराहा प्रायः सभी तरह के 'बंदों' का प्रमुख केंद्र बन जाता है। सभी नेता-कार्यकर्ता-समर्थक-तमाशबीन वहां जमा होते हैं। उसे कवर करने के लिए पत्रकार-छायाकार भी पहुंचते हैं। कभी किसी ने उन्हें रोका-टोका हो यह मुझे याद नहीं आता। हां, कभी-कभी कोई छुटभैया नेता अपना नाम छापने या बाईट लेने के लिए जरूर दबाव बनाता है। पर इससे ज्यादा कभी कुछ नहीं हुआ।21 दिसंबर को राजद द्वारा नागरिकता कानून के विरोध में आहूत बिहार बंद में एक नई प्रवृति दिखी। एक गिरोह मानों पत्रकारों को पीटने का प्लान बना कर आया था। जहां कोई पत्रकार दिखता यह गिरोह उसे मारने-पीटने और उसका कैमरा तोड़ने में जुट जाता था। जागरण के कैमरामैन का माथा फोड़ दिया गया।। कृष्णमोहन शर्मा (TOI) जैसे सीनियर फोटो जर्नलिस्ट को पीटा गया। रिपब्लिक टीवी के प्रकाश सिंह और उनके कैमरामैन के साथ हाथापाई हुई। करीब एक दर्जन पत्रकारों ने एक कमरे में खुद को बंद कर अपनी जान बचाई। बाद में पुलिस सुरक्षा में उन्हें निकाला गया। करीब आधे दर्जन पत्रकार-छायाकार घायल हुए। कई ओबी वैन क्षतिग्रस्त किये गए।यह सब सीनियर नेताओं और पुलिस की मौजूदगी में हुआ। किसी ने उन्हें रोका-टोका नहीं। संविधान बचाने के नाम पर इस बंद का आयोजन किया गया था। क्या पत्रकारों को पीटने और उन्हें काम न करने देने से संविधान बचेगा? यह कैसा आंदोलन है जो मीडिया का मुंह बंद करना चाहता है? बंद के आयोजकों को इसका जवाब देना चाहिए।डाकबंगला चौराहे पर जब तेजस्वी यादव भाषण कर रहे थे, उसी समय पत्रकारों पर हमले शुरू हुए। साफ है कि हमलावरों की मंशा तेजस्वी यादव और राजद को बदनाम करने की होगी। राजद के अनेकों बंद हमने कवर किये हैं, पर कभी इस तरह पत्रकारों को निशाना नहीं बनाया गया। तेजस्वी यादव को अभी लंबी राजनीति करनी है। उन्हें खुद आगे बढ़कर पत्रकारों पर हमला करनेवालों की गिरफ्तारी के लिए सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। साथ ही इस घटना के लिए उन्हें खेद भी व्यक्त करना चाहिए।क्योंकि पत्रकार उनके बुलावे पर उन्हें कवर करने गए थे।#पटनापत्रकारपिटाई

Posted by Pravin Bagi on Saturday, December 21, 2019

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)