डॉक्टर को दवा कंपनियां क्या-क्या देती हैं यह प्रधानमंत्री को किसने बताया होगा?

हर्षवर्धन ज्यादातर समय विज्ञान व तकनालाजी मंत्री रहे। चांदनी चौक से सांसद हैं और सरकारी दफ्तरों में बिस्कुट की जगह लैया चना और मेवे तथा गरी आदि के सेवन की सिफारिश की थी।

New Delhi, Jan 16 : चार अच्छे जाने – माने चिकित्सक और राजनेता प्रधानमंत्री के करीबी है। 1) डॉ. हर्षवर्धन 2) डॉ. महेश शर्मा 3) डॉ जितेन्द्र सिंह और 4) संबित पात्रा। इनमें संबित पात्रा इस बार चुनाव हार गए। बाकी तीनों मंत्री पिछली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री नहीं थे। संबित तो मंत्री ही नहीं थे। हर्षवर्धन बनाए गए थे पर खेल हो गया। उसके बाद जेपी नड्डा स्वास्थ्य मंत्री रहे। पिछले कार्यकाल में महेश शर्मा पर्यटन मंत्री थे और फिर संस्कृति मंत्री। अभी आप उन्हें भूतपूर्व भावी मंत्री कह सकते हैं। सांसद नहीं होते तो मैं सिर्फ भूतपूर्व मंत्री कहता।

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डॉक्टर केंद्रीय मंत्री ने भारत आने वाली विदेशी महिलाओं को स्कर्ट और छोटे कपड़े नहीं पहनने की सलाह दी थी। साथ ही विदेशी महिला सैलानियों को रात में अकेले बाहर नहीं निकलने की सलाह भी दी है। अब जेपी नड्डा स्वास्थ्य मंत्री क्यों नहीं हैं और हर्षवर्धन क्यों यह प्रधानमंत्री बताएं यह जरूरी नहीं है पर आप अटकल तो लगा ही सकते हैं।
संबित पात्रा डॉक्टर (सर्जन) होते हुए भी ऑयल एंड नेचुरल गैस कमीशन कॉरपोरेशन के गैर आधिकारिक निदेशक हैं। उनके लायक डॉक्टर का कोई काम सरकार के पास नहीं होगा – यह मानना चाहें तो मान लें। हर्षवर्धन जी पहले क्यों (स्वास्थ्य) मंत्री बनाए गए, फिर क्यों हटाए गए और फिर क्यों बनाए गए – मैं नहीं समझ पाता।

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डॉ. जितेन्द्र सिंह प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री हैं और उत्तर पूर्वी राज्यों के मामले देखते हैं। डॉक्टर वाला काम उनका भी नहीं है। और समझा जा सकता है कि राजनीतिक व्यस्तता के कारण डॉक्टरी के पेशे से अलग ही रहते हैं।

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हर्षवर्धन ज्यादातर समय विज्ञान व तकनालाजी मंत्री रहे। चांदनी चौक से सांसद हैं और सरकारी दफ्तरों में बिस्कुट की जगह लैया चना और मेवे तथा गरी आदि के सेवन की सिफारिश की थी। एक दूसरे वाले डॉक्टर, सुब्रमण्यम स्वामी भी भाजपा नेता है। पर उन्हें इस तरह के उपहार उनकी डॉक्टरी के कारण नहीं मिलेंगे। इसलिए उनकी बात करना बेकार है।
दवा कंपनियां डॉक्टर को रिश्वत में क्या देती हैं यह प्रधानमंत्री को किसने बताया होगा? और कब बताया होगा जो उन्होंने अब यह बात की है। आईएमए का नाराज होना स्वाभाविक है। कुछ तो पारदर्शिता होनी ही चाहिए। काम में न हो आरोपों में तो जरूरी है। डॉक्टरों के परिवार वाले खासकर बच्चे क्या सोचेंगे?

(वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)