राजनीति को करें अपराधमुक्त
जरा, यह सोचिए कि जिस देश की संसद में लगभग आधे सदस्य ऐसे हों, जिन पर अपराधों के आरोप हों और उन पर मुकदमे चल रहे हों वह संसद किस मुंह से इस देश का शासन ठीक से चला सकती है।
New Delhi, Jan 26 : हमारे सर्वोच्च न्यायालय और अश्वनी उपाध्याय की तारीफ किन शब्दों में की जाए ? सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीति से अपराधियों को बाहर करने के लिए अब पक्का रास्ता बनाने की तैयारी कर ली है। अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर विचार करते हुए अपने चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि वह एक सप्ताह में अश्विनी के साथ सलाह करके यह बताए कि अपराधी नेताओं को चुनाव लड़ने से कैसे रोका जाए ?
अदालतों का हमारे यहां हाल यह है कि ज्वलंत मुकदमों को सुनने में भी वे बरसों लगा देती हैं लेकिन इस मामले को उसने सिर्फ एक हफ्ते का समय दिया है, इसी से समझ लीजिए कि राजनीति का अपराधीकरण कितना संगीन मामला है। इस वक्त हमारी लोकसभा के 539 सदस्यों में से 233 अपराधी पृष्ठभूमि के हैं।
इसमें लगभग सभी पार्टियों के सदस्य हैं। जरा, यह सोचिए कि जिस देश की संसद में लगभग आधे सदस्य ऐसे हों, जिन पर अपराधों के आरोप हों और उन पर मुकदमे चल रहे हों वह संसद किस मुंह से इस देश का शासन ठीक से चला सकती है।
2018 में चुनाव आयोग ने यह प्रावधान किया था कि जिन उम्मीदवार पर ऐसे अपराधों के लिए मुकदमे चल रहे हों, जिनकी सजा पांच साल से ज्यादा हो, वे अपनी उम्मीदवारी के वक्त अखबारों में तीन बार छपाकर बताएं कि उन पर क्या आरोप हैं ? इस नियम का पालन तो हुआ लेकिन ऐसी सूचना ऐसे अखबारों में छाप दी गई, जिन्हें कोई पढ़ता ही नहीं। टीवी चैनलों पर यह सूचना तब दिखाई गई, जब तक दर्शक सोकर भी नहीं उठते। तुम डाल-डाल तो हम पात-पात। इस बार चुनाव आयोग को काफी कठोर और ठोस कदम उठाना चाहिए। जो पार्टियां ऐसे उम्मीदवारों को चुनती हैं, एक संख्या से ज्यादा, उन्हें चुनाव-बाहर किया जाना चाहिए। चुनावी-खर्च पर काबू होना चाहिए। चुनाव ही भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। इसी में सभी नेता नहाते है।