Aspirational India के इस दर्द के लिए जिम्मेदार वही `मुफ्तखोर’ भारत है

यह `मुफ्तखोर’ इतना कैजुअल है कि पाँव में जूते तक नहीं पहन रखे हैं और किसी स्टंटमैन की तरह एक हाथ से पाइप पकड़े दीवार पर पानी डाल रहा है।

New Delhi, Feb 13 : ये वो `मुफ्तखोर’ भारत है, जिसके पाँव आजकल ज़मीन पर नहीं है। यही वो `मुफ्तखोर’ है, जिसकी अय्याशियों की चर्चा कश्मीर से कन्याकुमारी तक है।
सुबह-सुबह टहलते हुए मेरी नज़र सामने वाली इमारत पड़ी जहाँ अभी प्लास्टर का काम चल रहा है। मैं रूककर देखना लगा कि ये `मुफ्तखोर’ कर क्या रहा है? क्या इसकी अय्याशियाँ इतनी बढ़ गई हैं कि बंजी जंपिंग की तैयारी कर रहा है और एक हम हैं जिसे महँगी हाउसिंग सोसाइटी में अच्छा जॉजिंग ट्रैक तक मय्यसर नहीं।

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गौर से देखा तो बंजी जंपिंग वाला शक दूर हो गया क्योंकि इसकी कमर में कोई बेल्ट नहीं बँधा है। कहीं को कोई सेफ्टी इक्विपमेंट नहीं है। हैलमेट-वेलमेट क्या चीज़ है!
मैने गिनना शुरू किया.. एक.. दो.. तीन.. ये आदमी ग्यारहवें माले की बाहरी दीवार पर खड़ा है और पाइप के सहारे ताजा प्लास्टर को पुख्ता करने के लिए उसकी तराई कर रहा है। दो मिनट देखने के बाद जब मैं आश्वस्त हुआ कि यह आदमी अपनी गर्दन नहीं घुमाएगा तो मैने कैमरा जूम किया।

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मोबाइल का कैमरा इससे ज्यादा जूम नहीं हो सकता है। तस्वीर पूरी कहानी बयान नहीं कर रही है। यह `मुफ्तखोर’ इतना कैजुअल है कि पाँव में जूते तक नहीं पहन रखे हैं और किसी स्टंटमैन की तरह एक हाथ से पाइप पकड़े दीवार पर पानी डाल रहा है।
पानी की चंद बूँदे भी सूखे बाँस पर पड़ेंगी तो इस तरह कि फिसलन पैदा होगी कि वह सीधा नीचे आएगा। उसके बाद क्या होगा? शायद किसी अख़बार में सिंगल कॉलम की कोई ख़बर बन जाये।
जब इसके %$##जादे ठेकेदार ने जीवन रक्षा की बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराई तो फिर इंश्योरेंस वगैरह कहाँ होगा? तो यह आदमी जमीन करेगा जमीन पर लाल निशान छोड़ने के बाद पुलिस की कैशलेस इकॉनमी में लाख-दो लाख का कंट्रीब्यूशन करवा जाएगा।

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वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इकॉनमी में इसका योगदान अब भी है। शायद इतना संस्कारी ना हो कि गाय या कुत्ते के लिए रोटी अलग से निकाल कर रखे। लेकिन इसके घर में बनने वाली हर पाँचवी रोटी सरकार जी ले लेते हैं। जीएसटी हर हिंदुस्तानी की तरह इस `मुफ्तखोर’ पर भी लागू है।
aspirational India को इस बात की कुंठा है कि उसके पास 12 लाख वाली कार है और उसके पड़ोसी के पास 18 लाख वाली क्यों है। aspirational India के इस दर्द के लिए जिम्मेदार वही `मुफ्तखोर’ भारत है, जिसका प्रतिनिधि इस तस्वीर में आसमान की ऊँचाइयों को छूता हुआ दिखाई दे रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)