तमाम प्रयासों के बाद भी शाहीनबाग आंदोलन अन्ना/रामदेव आंदोलन की तरह देश में लहर पैदा नही कर पाया

जिस CAA को सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है, उसी के माध्यम से जनाक्रोश भड़का कर सरकार को सत्ता से बाहर करने का प्रयास किया जा रहा है। वामपंथी और नक्सली इसके मुख्य रणनीतिकार हैं।

New Delhi, Feb 22 : अन्ना हज़ारे और बाबा रामदेव का आंदोलन तो याद ही होगा। दिल्ली के रामलीला मैदान से शुरु हुआ उनका आंदोलन एक समय पूरे देश का आंदोलन बन गया था। हर गली-मोहल्ले से लोग हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों पर निकल पड़े थे। लगता था मानो देश में इंकलाब आ गया है। वह सब स्वतःस्फूर्त था।

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बाद में राजनीतिक दल इस आंदोलन से जुड़ गए। BJP ने इस आंदोलन में पूरी ताकत झोंक दी थी। कांग्रेस विरोधी अन्य संगठन भी इससे जुड़ गए थे। कांग्रेस बिल्कुल अलग-थलग पड़ गई थी। BJP ने इसका पूरा फायदा उठाया और अंततः कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बाहर होना पड़ा था। उसी तर्ज पर शाहीनबाग आंदोलन को खड़ा करने की कोशिश हो रही है।
CAA और NRC का विरोध तो एक माध्यम है। मोदी विरोधी तमाम राजनीतिक और सामाजिक ताकतें इस आंदोलन के पीछे आ खड़ी हुई हैं। रणनीति के तहत मुस्लिम महिलाओं को आंदोलन का चेहरा बनाया गया है। मोदी सरकार के प्रति मुसलमानों के गुस्से को आगे कर विपक्ष अपनी गोटी लाल करने की फिराक में है।

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दरअसल यह सत्ता की लड़ाई है। जिस CAA को सरकार अपनी उपलब्धि बता रही है, उसी के माध्यम से जनाक्रोश भड़का कर सरकार को सत्ता से बाहर करने का प्रयास किया जा रहा है। वामपंथी और नक्सली इसके मुख्य रणनीतिकार हैं। कांग्रेस समेत अन्य विरोधी दल सम्हल-सम्हल कर शाहीनबाग के समर्थन में हैं। मुसलमानों को मोहरा बनाकर राजनीतिक दल अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
शाहीनबाग का रास्ता खुलवाने के लिए धरना स्थल पर गये सुप्रीम कोर्ट के दूतों संजय हेगड़े और साधना रामचंद्रन से जिस तरह बात की जा रही है, उससे छिपा हुआ सच सामने आ गया है। दूतों को भी यह कहना पड़ा कि वे अपने दिमाग का इस्तेमाल करें, किसी के बहकावे में न आयें।
पूरे देश में 100 से अधिक स्थानों पर शाहीनबाग की तर्ज पर धरना चल रहा है। अधिकांश स्थानों पर महिलाएं ही मोर्चे पर हैं।

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तमाम प्रयासों के बाद भी शाहीनबाग आंदोलन अन्ना/रामदेव आंदोलन की तरह देश में लहर पैदा नही कर पाया। इसकी हताशा धीरे-धीरे सामने आने लगी है। बेंगलुरु की रैली में पाकिस्तान के नारे इसके परिचायक हैं।
लेकिन देश का एक बड़ा वर्ग, जिसमें काफी संख्या मुसलमानों की भी है, इस आंदोलन को खामोशी से देख रहा है। वह इस आंदोलन से सहमत नहीं है। फिर भी प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है। धीरज रखे है। उसका धैर्य समाप्त हो इसके पहले आंदोलन समाप्त हो जाये, यह देश के हित में है।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)