Opinion – सोनिया गांधी के नाम एक मामूली लेखक-पत्रकार का खुला खत

अगर केवल कटु वचनों के आधार पर पुलिस को ऐसी कार्रवाई करने का हक मिल जाता है, तब तो आपके पूरे परिवार की ज़िंदगी थाने में ही गुज़र जानी चाहिए।

New Delhi,  Apr 27 : आदरणीया सोनिया गांधी जी,
हमारे लोकतंत्र में आप संभवतः इकलौती ऐसी बड़ी नेता हैं, जो बड़े से बड़े पत्रकारों को इंटरव्यू नहीं देतीं और उनसे संवाद नहीं करतीं, तो मुझ जैसे मामूली लेखक-पत्रकार से संवाद के लिए कितना तैयार होंगी? यही सोचकर लगा कि बेहतर है आपको एक चिट्ठी ही लिख दूँ। संदर्भ महाराष्ट्र में आपकी सरकार की पुलिस की मौजूदगी में पालघर में संतों के संहार और उसके बाद इसपर सवाल उठाने वाले पत्रकार अर्णब गोस्वामी के उत्पीड़न का है।

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पालघर में संतों के संहार के संदर्भ में आपको लेकर अर्णब के कटु वचनों से पहले ही असहमति जता चुका हूं, लेकिन उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों और सवालों से मेरी पूर्ण सहमति है। इसलिए आपसे मेरा प्रश्न यही है कि अर्णब ने कौन सा ऐसा बड़ा गुनाह कर दिया है कि महाराष्ट्र पुलिस को 5 घंटों तक उनसे पूछताछ करनी पड़ गई? अगर केवल कटु वचनों के आधार पर पुलिस को ऐसी कार्रवाई करने का हक मिल जाता है, तब तो आपके पूरे परिवार की ज़िंदगी थाने में ही गुज़र जानी चाहिए।
ज़रा देखिए कि अलग अलग मौकों पर खुद आप लोगों की भाषा कितनी आपत्तिजनक, अलोकतांत्रिक और असंसदीय रही है। खुद आपने नरेंद्र मोदी को “मौत का सौदागर” कहा था। आपकी बेटी प्रियंका वाड्रा ने नरेंद्र मोदी को “नीच राजनीति” करने वाला बताया था। आपके बेटे राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को “शहीदों के खून की दलाली” करने वाला कहा था। राहुल गांधी ने बिना किसी तथ्य नरेंद्र मोदी के लिए हजारों बार “चौकीदार चोर है” भी कहा, कहलवाया और सुप्रीम कोर्ट को गलत उद्धृत भी किया, जिसके लिए कोर्ट से उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी।

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यह इस देश और लोकतंत्र को आप जैसी नेताओं का ही दिया हुआ (कु)संस्कार है कि आज लोग एक-दूसरे की आलोचना करने में भाषा की न्यूनतम मर्यादा तक भूल जा रहे हैं। फिर, यह भी एक ध्रुव सत्य है कि हम जो फसल बोते हैं, उसे ही काटते हैं। बबूल बोकर आम के पेड़ नहीं उगाए जा सकते।
यहाँ यह भी गौरतलब है कि आपके विरोधी दलों की सरकारों ने आपको या आपके परिजनों को उपरोक्त आपत्तिजनक बयानों के लिए कभी थाने में बिठाकर पूछताछ नहीं की।
इसलिए, जब महाराष्ट्र में आपकी पार्टी की साझेदारी वाली सरकार, जिसका रिमोट कंट्रोल आपके हाथ में है, अपनी पुलिस से एक पत्रकार पर ऐसा ज़ुल्म करा रही है, तो मन में बस इतना ही आ रहा है कि

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1. आपकी सरकार सठिया गई है क्या?
2. आप लोगों ने बुद्धि-विवेक सब बेच दिया है क्या?
3. बाटला हाउस के आतंकवादियों के लिए आप रात भर रोएंगी (यह मैं नहीं कह रहा, आप ही के लाड़ले नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था) और एक पत्रकार से अपनी पुलिस से दिन भर पूछताछ कराएंगी?
4. लोकतंत्र को आप लोगों ने जोकतंत्र समझ लिया है क्या?
5. ज़रा दिल पर हाथ रखकर सोचिए कि आपकी और आपकी सरकार की प्राथमिकता इस वक़्त पालघर में संतों की हत्या के मामले में न्याय करना होना चाहिए या सवाल उठाने वाले पत्रकार को प्रताड़ित करना होना चाहिए?

आदरणीया सोनिया जी, मेरी माटी के महाकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है- “जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।”
आप दुनिया की संभवतः पहली ऐसी मां हैं, जो पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अपने असफल बेटे की उत्तराधिकारिणी बनी हैं और फिर से कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाला है। लेकिन लगता है कि केंद्र की सत्ता चली जाने से इस बार आपका बुद्धि-विवेक सही तरीके से काम नहीं कर रहा है।
पहले आपने पालघर नरसंहार पर महज एक बयान देने की भी आवश्यकता नहीं समझी, फिर बयान की मांग होने के बावजूद बयान न देने का अहंकार दिखाया, फिर खुद सामने न आकर हास्यास्पद तरीके से देश भर में अपने कार्यकर्ताओं से अर्णब के खिलाफ मुकदमे कराए और अब यह पाप भी कर लिया कि इस महान लोकतंत्र में एक पत्रकार को महज उसकी टिप्पणी के लिए 5 घंटे तक थाने में बैठा लिया?

कहीं ऐसा तो नहीं कि आपकी सास स्वर्गीया श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने “राष्ट्र” में इमरजेंसी लगाई थी और आपने “महाराष्ट्र” में इमरजेंसी लगा दी है?
आदरणीया सोनिया जी, एक बात याद रखें कि सत्ता से गिरे नेता दोबारा संभल सकते हैं, लेकिन जनता की नज़रों से गिरे नेताओं के लिए सँभल पाना लगभग असंभव होता है। इसलिए कुछ भी ऐसा मत कीजिए, जिससे जनता की नजरों से आप लगातार गिरती ही चली जाएं।
शुक्रिया
आपका चिरहितैषी “निंदक”
अभिरंजन कुमार

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)