Opinion – मांसाहार यदि हमें कोरोना के कराल गाल में ठूंसता है तो इससे बचें

अमेरिका में मांसाहार के कारण लगभग 3 लाख 20 हजार लोगों की मौत हर साल होती है। मोटापा, मधुमेह, हृदयरोग आदि बीमारियों को मांसाहार से बढ़ावा मिलता है।

New Delhi, May 11 : विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के भोजन-सुरक्षा विशेषज्ञ पीटर एंवारेक ने कहा है कि मांसाहार से कोरोना के फैलने का खतरा जरुर है लेकिन हम लोगों को यह कैसे कहें कि आप मांस, मछली, अंडे मत खाइए ? चीन के वुहान शहर में कोरोना विषाणु को फैलाने में इन मांसाहारी वस्तुओं की भूमिका पर सभी इशारा कर रहे हैं लेकिन दुनिया के करोड़ों लोगों का खाना और रोजगार मांसाहार के दम पर ही चल रहा है।

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एंवारेक का यह तर्क दक्षिण एशिया के देशों के साथ-साथ सारे संसार के संपन्न देशों पर लागू होता है, खास तौर से यूरोप और अमेरिका के देशों पर, क्योंकि इन देशों की बहुत कम जनता आजकल खेती पर निर्भर रहती है। वहां खेती का काफी हद तक यंत्रीकरण हो गया है लेकिन भारत-जैसे दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देशों में अभी भी करोड़ों लोग खेती और बागवानी पर निर्भर हैं। यदि संपन्न देशों के लोग मांसाहार बंद कर दें तो वहां तुरंत आर्थिक संकट खड़ा हो सकता है। तात्कालिक दृष्टि से तो यही होगा लेकिन यदि हम थोड़ा गहरे में उतरें और अर्थशास्त्र के छात्र की तरह थोड़ी जोड़-तोड़ करें और थोड़ा गुणा-भाग करें तो उसके नतीजे एकदम चमत्कारी होंगे।

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इस मामले में हम क्या करेंगे ? हमसे कहीं ज्यादा खोज-पड़ताल अमेरिकी और ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने कर रखी है। उनका कहना है कि यदि दुनिया के लोग मांसाहार बंद कर दें तो सारी दुनिया हर साल 20 से 30 ट्रिलियन डाॅलर (20 लाख से 30 लाख करोड़ रु.) बचा सकती है। उनके अनुसार एक किलो मांस पैदा करने में जितना खर्च होता है, उतने पैसे में 10 किलो अनाज पैदा होता है। एक किलो गेहूं के लिए 1500 लीटर पानी लगता है और उतने ही गोमांस के लिए दस गुना ज्यादा याने 15000 लीटर पानी खर्च होता है। अमेरिका में मांसाहार के कारण लगभग 3 लाख 20 हजार लोगों की मौत हर साल होती है। मोटापा, मधुमेह, हृदयरोग आदि बीमारियों को मांसाहार से बढ़ावा मिलता है।

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मांस के कारण गंदी गैस और बदबू भी बड़ा नुकसान करती है। यदि अमेरिकी लोग सिर्फ गोमांस खाना बंद कर दें तो अमेरिका की 42 प्रतिशत जमीन खेती के लिए बच सकती है। पेड़-पौधों से फसलें तो कई बार ली जाती हैं लेकिन पशुओं का मांस तो सिर्फ एक बार ही हाथ लगता है, जबकि उन्हें महिनों-वर्षों खिलाते रहना पड़ता है। शाकाहार मनुष्य का स्वाभाविक भोजन है, यह उसके दांत और आंत से पता चलता है। दुनिया के किसी भी धर्मशास्त्र- वेद, जिंदावस्ता, त्रिपिटक, बाइबिल, कुरान, गुरु ग्रंथ साहब आदि में कहीं भी नहीं लिखा है कि मांस खाए बिना मुक्ति नहीं मिलेगी और मांसाहार यदि हमें कोरोना के कराल गाल में ठूंसता है तो हम इससे क्यों न बचें ?

(वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)