मुसीबत में कर्ज बांटने को राहत पैकेज कहा जाता है यह पहली दफा सुना

अगर 9 लाख करोड़ के लोन इस तरह बंटे तो देश लोकल होगा या नहीं यह तो मालूम नहीं पर देश के हर हिस्से में छोटे छोटे नीरव मोदी जरूर मिलने लगेंगे।

New Delhi, May 14 : मोदी जी के 20 लाख करोड़ के पैकेज की कहानी बस इतनी सी है कि आने वाले दिनों में कोई भी छोटा बड़ा फैक्टरी वाला कर्ज मांगे तो उसे बिना गारंटी के दे देना है।
वैसे भी आजकल बैंक कर्ज देने के लिये परेशान हैं। मेरे बैंक की ब्रांच मैनेजर हर 15 दिन पर मुझे फोन करती है कि आपके नाम से प्रि अप्रूव लोन का सेंक्शन है, आप प्लीज आकर ले लीजिये। नहीं आ सकते तो योनो एप पर ही कन्फर्म कर दीजिये। इसी तरह क्रेडिट कार्ड वाला भी हर हफ्ते फोन करके परेशान करता है। बैंकों में लिक्विडिटी बढ़ा दी गयी है तो हर बैंक पर कर्ज बांटने का प्रेशर है।

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अगर कर्ज देना ही राहत पैकेज है तो बिना शोर शराबे के एलआईसी ने सबसे बड़ा राहत अभियान चलाया है। उसने कोविड की शुरुआत से ही अपने लाखों एजेंटों को 50 हजार रुपये तक का ब्याज मुक्त लोन बांटा है। इसकी रिकवरी उन एजेंटों के कमीशन के पैसों से होनी है। सहारा इंडिया जैसी डूब रही कम्पनी ने भी अपने एजेंटों को ब्याज मुक्त कर्ज देकर मदद की है।
ध्यान रहे, मोदी जी के पैकेज से आमलोगों को कोई मदद नहीं मिलने वाली। यह मदद उद्योग धंधा करने वालों को मिलेगी। और जैसा कि पुराना अनुभव बताता है कि इससे सबसे अधिक फायदा लोन बांटने वाले बैंकरों को होगा। हर लोन लेने वाला कुछ न कुछ चढ़ावा देगा ही।

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अगर 9 लाख करोड़ के लोन इस तरह बंटे तो देश लोकल होगा या नहीं यह तो मालूम नहीं पर देश के हर हिस्से में छोटे छोटे नीरव मोदी जरूर मिलने लगेंगे।
सच पूछिए तो मोदी जी की यह योजना न गरीब मजदूरों के लिए है, न किसानों के लिए, न मेहनत करके रोजी रोटी कमाने वाले लोवर मिड्ल क्लास के लिये। यह मध्यम वर्गीय उस ख़लीहर जमात के लिए है जो नौकरी चाकरी से ऊबा हुआ है और हर तीसरे महीने कोई न कोई बिजनेस प्लान करने लगता है। ऐसे लोग फिर से गणित बिठाने में जुट गए हैं।
फिर भी हमें उम्मीद करनी चाहिये कि शायद उद्योग जगत को इसका कुछ फायदा मिलेगा। तरह तरह के उत्पाद बाजार में आएंगे।

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मगर एक सवाल छूट गया, इन्हें खरीदेगा कौन? पोस्ट कोरोना काल में हर किसी की आमदनी घटने वाली है। बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार होंगे। उनकी परचेजिंग पॉवर घटेगी। ऐसे में इन MSME के लिए खरीदार कहाँ से आएंगे।
इसी समस्या का बेहतरीन हल नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने बताया था। हर जनधन खाते में सरकार को कुछ पैसे डाल देने चाहिये। ताकि वह बाजार आकर अपनी जरूरत की चीजें खरीदे। लोग बाजार में पैसे लेकर आएंगे तो खुद ब खुद मांग बढ़ेगी। इससे बिजनेस भी आगे बढ़ेगा। उद्योग धंधे भी खड़े होंगे। पोस्ट कोरोना काल में अगर आपको आगे बढ़ना है तो लोक कल्याणकारी बनना ही पड़ेगा। सिर्फ उद्योगों को राहत देने से नहीं चलेगा।

मगर सरकार ने उल्टी तरकीब लगाई है। उत्पादन बढ़ाना है। आमदनी बढ़ाने पर कोई काम नहीं करना। हां, मजदूरों के काम के घंटे बढ़ा देने हैं। तो उत्पादन बढ़ाते रहिये, कर्ज बांटते रहिये।
और हां, अगर आप जेनुइन तरीके से कर्ज लेकर कारोबार करने की प्लानिंग कर रहे हैं तो याद रखिये। सिर्फ अतिआवश्यक वस्तुओं के उत्पाद वाले व्यापार में उतरियेगा। आने वाले दिनों में लोग न लक्जरी आइटम खरीदेंगे, न होटल रेस्तरां में खाने जाएंगे, न बाहर घूमने फिरने जाएंगे, न कार और बुलेट खरीदेंगे, वे सिर्फ स्वस्थ भोजन, आयुर्वेदिक दवा और सप्लीमेंट, बच्चों की शिक्षा, ऑनलाइन आवश्यक उपकरणों पर ही खर्च करेंगे। वह भी हाथ बांधकर ही, खोल कर नहीं।

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)