Opinion – चीन, ‘लतीफा’ गांधी और उन के तख्तनशीन होने का इल्हाम

चीन अपने कमीनेपन में अभी कामयाब होने के बजाय अपनी गीदड़ भभकी में मात खा गया है तात्कालिक रूप से। तो क्या लतीफा गांधी और उन की टीम , चीन भारत के ताज़ा हालात में भारत पक्ष में कोई छिद्र आदि तलाश रहे हैं इस लिए खामोश हैं ?

New Delhi, May 30 : चीन मसले पर नरेंद्र मोदी का कोई बयान अभी तक तो नहीं आया है। लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन कर कूद गए हैं। दो बिल्लियों के बीच बंदर होने की उन की अदा है कि जाती ही नहीं। पाकिस्तान मसले पर भी उन की यह अदा हम देख चुके हैं। बहरहाल भारत ने इस पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। पता नहीं क्यों ?

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हां , नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने थूक कर चाट लिया है। पर इस सब मुझे कुछ लेना-देना नहीं। मुझे तो इंतज़ार है कि अपने लतीफा गांधी कब किसी जवाब का सवाल पूछते हुए कूदते हैं। लगता है कामरेड लोगों ने कोई स्क्रिप्ट अभी उन्हें मुहैया नहीं करवाई है। या फिर मज़दूरों से मिलने और फिर प्रेस कांफ्रेंस की थकान मिटा रहे हैं वह। दिक्क्त यह भी है कि लॉक डाऊन के चलते थाईलैंड वगैरह की व्यक्तिगत मसाज यात्रा भी नहीं कर पा रहे वह ताकि फ्रेश हो सकें। फिर भी मुझे इंतज़ार है। भले वह चीन के राजदूत के साथ एक ताज़ा फोटो सेशन ही परोस दें।

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अब यह अलग बात है कि चीन अपने कमीनेपन में अभी कामयाब होने के बजाय अपनी गीदड़ भभकी में मात खा गया है तात्कालिक रूप से। तो क्या लतीफा गांधी और उन की टीम , , चीन भारत के ताज़ा हालात में भारत पक्ष में कोई छिद्र आदि तलाश रहे हैं इस लिए खामोश हैं ? फिर भी बोलना तो है है देर-सवेर। देखिए और कि देखना दिलचस्प ही होगा कि किस जवाब का वह सवाल पूछते हैं। बल्कि किस-किस जवाब का कौन-कौन सा सवाल।
आखिर उन के सिपहसालारों को उन को यह एहसास भी दिलाते रहना है कि हुजूर अभी भी आप ही इस देश के असली हुक्मरान हैं। शायद उन को खुद भी इस बात का निरंतर इल्हाम होता ही रहता है कि शासक तो वह ही हैं। शासन और शासक होने की खुमारी है कि जाती है नहीं इस परिवार और इस के सिपहसालारों के दिल से।

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होता है अकसर होता है। हनारे लखनऊ के तमाम पंचर जोड़ने वाले लोग भी अभी तक अपने को नवाब से नीचे नहीं मानते। तमाम मैकेनिक भी अपने को मुगलिया सल्तनत का खून बताते नहीं थकते। तिस पर राहत इंदौरी जैसे शायर ऐसे-वैसे शेर कह कर कि :
कब्रों की ज़मीनें दे कर हम मत बहलाइए
राजधानी दी थी , राजधानी चाहिए ।
इन का मन और बढ़ा देते हैं। तो मुगलिया सल्तनत दफ़न हुए ज़माना बीत गए फिर भी यह कनवर्टेड लोग अपने को सुलतान ही मानते हैं। बाबर , औरंगज़ेब भी वही हैं , शाहजहां और अकबर आदि-इत्यादि भी। फिर अपने लतीफा गांधी को तो अभी जुम्मा-जुम्मा आठ दिन भी नहीं हुए। सो तख्तनशीन वह अब भी अपने ही को मानते हैं। मानते रहेंगे। भारत को अपनी जागीर मान कर ही वह जब भी कुछ बोलते हैं तो बोलते हैं। तो इंतज़ार है हुजूर लतीफा गांधी द्वारा हर जवाब का सवाल पूछने की सनक का। चीन के तअल्लुक़ से।
आप को नहीं है क्या ?

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)