अगर कल्याण सिंह ने नक़ल अध्यादेश लाकर यूपी बोर्ड में सख्ती न की होती तो आज स्थिति और बुरी होती

पैसा कमाने की हवस में इन लोगों ने नौजवानों की मेधा और जवानी लूट ली । और टी वी न्यूज देख कर हंसने के लिए गणेश कुमार और रुबी राय पैदा कर दिया ।

New Delhi, Jun 02 : कृपया मुझे कहने दीजिए कि अगर कल्याण सिंह सरकार में शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने नक़ल अध्यादेश ला कर उत्तर प्रदेश बोर्ड में सख्ती न की होती तो आज उत्तर प्रदेश में बिहार से भी बुरी स्थिति होती । स्थिति आज भी कोई बहुत अच्छी नहीं है उत्तर प्रदेश बोर्ड की । क्यों कि तब के दिनों हुए चुनाव में मुलायम ने अपने समाजवादी पार्टी के घोषणा पत्र में ही कहा था कि वह नकल अध्यादेश खत्म कर देंगे । और सचमुच सरकार बनते ही मुलायम ने नकल अध्यादेश खत्म किया । ज़िक्र ज़रुरी है कि नकल अध्यादेश के तहत पकड़े जाने पर नकलची छात्र , नकल करवाने वाले अध्यापक , प्रिंसिपल सभी जेल भेज दिए जाते थे । फिर अध्यादेश खत्म होते ही स्कूलों में नकल के ठेके उठने लगे। आज भी उठते हैं । जो लोग एक वाक्य नहीं ठीक से पढ़ सकते , इंग्लिश की स्पेलिंग inglis लिखते हैं , वह लोग मेरिट ले कर पास होते हैं । फर्स्ट डिवीजन ज़्यादा लोग पास होते हैं , थर्ड डिवीजन तो अब जल्दी कोई दीखता ही नहीं ।

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अखिलेश ने पिता की परंपरा कायम रखी । इतनी कि उत्तर प्रदेश में यू पी बोर्ड से पढ़ना पाप हो गया । अब वही लोग उत्तर प्रदेश बोर्ड का इम्तहान देते देखे जाते हैं जो कभी कहीं किसी और बोर्ड से पास नहीं हो पाते । नतीज़ा यह हो गया कि बीते ढाई दशक में तमाम प्राइवेट स्कूल देखते ही देखते उत्तर प्रदेश बोर्ड छोड़ कर आई सी एस आई , आई एस सी आई बोर्ड या सी बी एस सी बोर्ड में तब्दील हो गए । क्या शहर , क्या गांव । अब तो वही स्कूल यू पी बोर्ड में रह गए हैं जो या तो सरकारी हैं या एडेड हैं । या फिर जो नकल का ठेका लेने में चैम्पियन हैं । जहां कोई जल्दी पढ़ने नहीं जाता । लोग यहां पढ़ने कम इम्तहान देने ज़्यादा जाते हैं ।

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गनीमत है कि अखिलेश सरकार अब नहीं है । अगर होती तो तय मानिए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग , उत्तर प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग और उत्तर प्रदेश शिक्षा आयोग से चयनित लोगों की स्थिति भी उत्तर प्रदेश बोर्ड और बिहार बोर्ड से पास हुए टापर छात्रों जैसी होती जा रही थी । हर कहीं , हर जगह यादवों को भर्ती करने के लिए अखिलेश सरकार जैसे सनक गई थी । इन सभी आयोगों के अध्यक्ष यादव लोग ही नियुक्त कर दिए थे अखिलेश यादव ने । और इन विभिन्न यादव अध्यक्षों ने अधिकतम यादवों को नियुक्त करना शुरु कर दिया था । किसी अभियान की तरह । सोचिए कि लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव जो खुद हिस्ट्रीशीटर भी थे उन्हों ने तो गज़ब किया । सौ डिप्टी कलक्टर में पचासी डिप्टी कलक्टर यादव नियुक्त करने का रिकार्ड बना दिया है अखिलेश यादव के राज में । और जब अति हो गई तो इलाहाबाद में छात्रों ने बड़ा आंदोलन किया । सड़क पर उतर गए । हाईकोर्ट को बीच में आना पड़ा । हाईकोर्ट के निर्देश पर अखिलेश सरकार को अंततः अनिल यादव को हटाना पड़ा था ।

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तो भी उत्तर प्रदेश में यादव का मतलब तब सरकार बन गया था । उन दिनों तमाम सरकारी कुर्सियों पर बैठे यादव लोग अपने को सरकार कहते नहीं अघाते थे । एक से एक आई एस अफसर भी और बाबू भी । ऐसे कुछ वीडियो इस फ़ेसबुक और वाट्स आप पर भी तब के समय खूब वायरल हुए हैं ।
तो बिहार में एक टापर रूबी राय और एक टापर गणेश कुमार की बात टी वी न्यूज पर सुन कर आप फौरी तौर पर भले हंसे होंगे । पर सच में दोषी गणेश कुमार या रुबी राय नहीं हैं । असल दोषी तो राजनीतिक नेतृत्व का है । बिहार में लालू , राबड़ी शासन ने उत्तर प्रदेश में मुलायम , मायावती , अखिलेश शासन ने तमाम चीजों की तरह शिक्षा व्यवस्था को भी दीमक की तरह चाट लिया है । दोषी यह लोग हैं । इन पर हंसिए । उन बिचारे गरीब बच्चों पर नहीं ।

आज बिहार के टापर जो मुखड़ा और अंतरा के बाबत बता रहे थे न कि गाने के समय जो सैड भाव चेहरे पर आता है , उसे ही मुखड़ा कहते हैं । और आप यह सुन कर हंस रहे थे तो गलत हंस रहे थे । असल में इस सारे मामले का मुखड़ा यही लालू , मुलायम , मायावती , अखिलेश हैं जिन्हों ने शिक्षा सहित हर चीज़ को ठेका पट्टा बना दिया । स्कूल को पेट्रोल पंप बना दिया । कम मापने और मिलावट करने वाला पेट्रोल पंप । ताली बजवाने के लिए चरवाहा विश्वविद्यालय बनवा दिया । प्राइवेट स्कूलों का घना जाल बुन दिया । शिक्षा माफ़िया खड़ा कर दिया । कोचिंग माफ़िया खड़ा कर दिया । पैसा कमाने की हवस में इन लोगों ने नौजवानों की मेधा और जवानी लूट ली । और टी वी न्यूज देख कर हंसने के लिए गणेश कुमार और रुबी राय पैदा कर दिया । लालू ने तो न सिर्फ़ बिहार बोर्ड को रौंद दिया है बल्कि अपने दोनों बेटों की पढ़ाई सत्यानाश करवा दी । लेकिन एक नौवीं पास डिप्टी चीफ मिनिस्टर बन गया था , दूसरा बारहवीं पास मिनिस्टर । यह वही बिहार है जहां नालंदा जैसा विश्व विख्यात शिक्षण संस्थान रहा है ।

(वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)