हम इंसान जानवर से बदतर क्यों हैं?
सैमुअल पचाऊ का कहना है कि इस संबंध में मुक़दमा दर्ज कर लिया गया है और हथिनी की मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों की पहचान करने की कोशिशें की जा रही हैं।
New Delhi, Jun 03 : आज इस खबर को पढ़ कर बहुत रोया — हम इंसान जानवर से बदतर क्यों हैं ? अभी पर्यावरण दिवस का जुलुस निकालेंगे — लेकिन जो जानवर इस जंगल को बचाए हैं उसके साथ ऐसी पाशविकता ? सारे देश से इसके विरोध में मल्लापुरम के कलेक्टर को मेल भेजें , जफ़र मलिक राजस्थान के हैं ओर हिंदी भी समझते हैं
१- आरोपी पर कड़ी कार्यवाही , फास्ट ट्रेक कोर्ट में एक महीने में सजा हो
२- हथिनी कि याद में एक समरक ताकि लोग इस नृशंश घटना को याद रखें व सबक लें
३- भविष्य में ऐसा न हो इसे सुनिश्चित किया जाए
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घटना बीबीसी की साईट से
पानी में खड़े तीन दिन मौत का इंतेज़ार करती रही गर्भवती हथिनी
दक्षिण भारत के केरल राज्य में एक गर्भवती हथिनी की विस्फोटक भरा अनानास खाने से मौत ने मानवता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं.
शक है कि कुछ शरारती तत्वों ने हथिनी को विस्फोटक भरा अनानास खिला दिया. मानव और जानवरों के बीच संघर्ष में मानवता के पतन की ये एक और कहानी है.
वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक हथिनी की उम्र 14-15 साल रही होगी. घायल होने के बाद वो इतनी पीड़ा में थी कि तीन दिन तक वेलियार नदी में खड़ी रही और उस तक चिकित्सीय मदद पहुंचाने के सभी प्रयास नाकाम रहे.
इस दौरान उसका मुंह और सूंढ़ पानी के भीतर ही रहेसाइलेंट वैली नेशनल पार्क, पलक्कड़ के वाइल्डलाइफ़ वार्डन सेमुअल पचाऊ ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘हमें वो जगह नहीं मिली है जहां वो घायल हुई थी. वो सिर्फ़ पानी ही पी रही थी, शायद इससे उसे कुछ राहत मिल रही हो. उसके पूरे जबड़े को दोनों तरफ़ गंभीर चोट पहुंची थी. उसके दांत भी टूट गए थे.’
पल्लकड़ ज़िले की मन्नारकड़ इलाक़े के वन अधिकारी सुनील कुमार ने बीबीसी से कहा, ‘वन विभाग के अधिकारियों को यह हथिनी 25 मई को मिली थी जब यह भटक कर पास के खेत में पहुंच गई थी, शायद वो अपने गर्भस्थ शिशु के लिए कुछ खाना चाह रही थी.’हथिनी के घायल होने की ये घटना लोगों की नज़र में तब आई जब रेपिड रेस्पांस टीम के वन अधिकारी मोहन कृष्णनन ने फ़ेसबुक पर इसके बारे में भावुक पोस्ट लिखी.
उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि घायल होने के बाद हथिनी एक गांव से भागते हुए निकली लेकिन उसने किसी को भी चोट नहीं पहुंचाई.
हथिनी की तस्वीरें फ़ेसबुक पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा कि वह भलाई से भरी हुई थी.वो कहते हैं कि तस्वीरों में हथिनी का दर्द क़ैद नहीं हुआ है.
वहीं सुनील कुमार का कहना है कि वन विभाग ने हाथियों की मदद से हथिनी को नदी से बाहर निकालने के प्रयास किए लेकिन वो टस से मस नहीं हुई. वन विभाग पशु चिकित्सकों से हथिनी का ऑपरेशन करवाने के प्रयास कर रहा था.आख़िरकार हथिनी ने 27 मई को नदी में खड़े-खड़े ही दम तोड़ दिया. जब उसके शव को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया तो पता चला कि वो गर्भवती थी.
कृष्णा ने अपनी पोस्ट में लिखा, ‘पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने मुझे बताया कि वो अकेली नहीं थी. मैं डॉक्टर के दर्द को समझ सकता था, हालांकि उनका चेहरा मास्क में छुपा था. हमने वहीं चिता जलाकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया. हमने उसके सामने सिर झुकाकर अपना अंतिम सम्मान प्रकट किया.’
वहीं सैमुअल पचाऊ का कहना है कि इस संबंध में मुक़दमा दर्ज कर लिया गया है और हथिनी की मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों की पहचान करने की कोशिशें की जा रही हैं. निलांबुर वन क्षेत्र में जानवरों और मनुष्य के बीच संघर्ष कोई नई बात नहीं है. ये वन क्षेत्र केरल के मल्लापुरम और पलक्कड़ ज़िलों के चार और वन क्षेत्रों से लगा हुआ है.
पचाऊ कहते हैं, “पहले भी लोगों और जानवरों के बीच संघर्ष के मामले सामने आते रहे हैं लेकिन ये पहली बार है जब किसी हाथी को इस तरह विस्फोटक से घायल किया गया है.”
मेरे जीवन की बहुत दुखदायी घटना में से एक है यह – अभी कल्पना कर दर्द से भर गया हूँ कि वह तीन दिन पानी में अपनी मौत का इंतज़ार करती रही