सन 77 में अपनी ही बनवाई सरकार से बाद में निराश हो गये थे जयप्रकाश नारायण

जेपी ने जे.बी.कृपलानी से मिलकर मोरारजी देसाई को प्रधान मंत्री बनवाया। पर गद्दी हासिल करने के बाद मोरारजी सरकार ने जेपी की बात सुननी बंद कर दी।

New Delhi, Jun 06 : केंद्र की मोरारजी देसाई की सरकार के करीब डेढ़ साल के कार्यकलापों को देखकर ही जयप्रकाश नारायण ने 1978 के अगस्त में यह कह दिया था कि ‘यदि इस देश में कोई हिंसक आंदोलन भी होगा तो मैं उसका विरोध नहीं करूंगा।’ चर्चित साप्ताहिक पत्रिका ‘रविवार’ से मुलाकात में जेपी ने तब कहा था कि ‘जो कुछ चल रहा है, उससे मैं असंतुष्ट हूं।

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इसमें शक नहीं कि जनता पार्टी और पुरानी कांग्रेस में कोई विशेष अंतर नहीं है। लेकिन एक क्रांतिकारी आंदोलन के बाद परिवत्र्तन होता है ,परिवत्र्तन हुआ भी। पर आज बहुत कुछ गलत हो रहा है।’ उनका इशारा मोरारजी सरकार के कामों की ओर था। याद रहे कि 1974 में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र युवा आंदोलन हुआ था। बाद में वह जन आंदोलन में परिणत हो गया।
1975 में इमरजंेसी लगी। 1977 में जब लोक सभा का आम चुनाव हुआ तो केंद्र से पहली बार कांग्रेस शासन का सफाया हो गया। जंेपी उस आंदोलन के सर्वोच्च नेता थे। लोगों ने उनके ही नाम पर जनता पार्टी को वोट दिए थे।

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उन्होंने जे.बी.कृपलानी से मिलकर मोरारजी देसाई को प्रधान मंत्री बनवाया। पर गद्दी हासिल करने के बाद मोरारजी सरकार ने जेपी की बात सुननी बंद कर दी। छात्र युवा आंदोलन की मांगों को सरकार ने भुला दिया। यहां तक कि जब गद्दी के लिए तीन नेता मोरारजी देसाई, चरण सिंह और जगजीवन राम आपस में लड़ने लगे तो कुछ लोगांे ने जेपी और आचार्य कृपलानी से हस्तक्षेप करने के लिए कहा। इस पर मोरारजी देसाई ने कह दिया कि यह हमारा आंतरिक मामला है। हम ही सुलझाएंगे। बाहरी लोगों कीे इसमें कोई जरूरत नहीं है। वे तब जेपी और जे.बी. कृपलानी को बाहरी मानने लगे थे।

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बाद में तो जनता पार्टी और सरकार का आंतरिक झगड़ा इतना तेज हो गया कि मोरार जी सरकार का 1979 में पतन हो गया। कांग्रेस की मदद से चरण सिंह प्रधान मंत्री बने। पर वह भी अधिक दिनों तक नहीं चल सके। 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गयी। इस संबंध में पत्रकार ने जेपी से पूछा था कि आप तो जानते थे कि मोरारजी देसाई जिद्दी व्यक्ति हैं फिर आपने उनको प्रधान मंत्री क्यों बनवाया ? इस पर जेपी ने कहा कि ‘ यह सभी लोग कहेंगे कि मोरार जी भाई का जिद्दीपन इधर कम हुआ है। उन्होंने लोगों के साथ एडजस्ट किया है। उस समय दादा कृपलानी और मैंने सोचा कि अखिल भारतीय व्यक्तित्व होना चाहिए।

चैधरी चरण सिंह का बड़ा स्थान था, पर वे उत्तर भारत तक ही सीमित थे। दक्षिण में उस वक्त उनको कम ही लोग जानते थे। उस समय का वातावरण बुजुर्गों के पक्ष में था। मोरार जी देसाई ने देश के बाहर भी भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। हमलोगों ने सोचा कि मोरारजी भाई अनुभवी हैं।
पूरे देश में लोग उन्हें जानते हैं। गांधी जी के साथी रह चुके हैं। आदर्शवादी हैं। उनको प्रशासन का अनुभव है। तो अच्छा ही करेंगे। लेकिन अब तक जो कुछ उन्होंने किया है, उससे मुझ असंतोष है।
वायदों को अमल में न लाने के लिए मुझे कोई कारण भी दिखाई नहीं पड़ता। मैं यह नहीं कह सकता कि जनसंघ रुकावट बना होगा।

अटल जी हुए, नानाजी हुए, आडवाणी साहब हुए। वैसी कोई जरूरत पड़ने पर मोरारजी भाई मेंरी मदद तो ले सकते थे। ये लोग मेरा उपकार मानते हैं कि जब इन पर प्रहार हो रहा था तो मैंने इनकी सहायता की थी। इस सवाल पर कि मोरारजी आपसे चिढ़ते हैं, जेपी ने कहा कि मैं नहीं जानता कि वे मुझसे चिढ़ते हैं। या हो सकता है कि चिढ़ते हों। प्रभुता पाई काहि मद नहीं ! वे अब कुर्सी पर हैं।
एक अन्य सवाल के जवाब में जेपी ने कहा था कि अब जो युवा आंदोलन होगा,उसमें आज की स्थिति को देखते हुए यह लगता है कि अधिक हिंसा की आशंका है। कोई गुणात्मक परिवत्र्तन तो हुआ नहीं ,इसलिए देश में असंतोष है। खिन्न मन से जेपी ने कहा था कि यदि कोई हिसंक आंदोलन होता है तो मैं उसका विरोध नहीं करूंगा,पर मैं उसका साथ भी नहीं दूंगा। एक अन्य सवाल के जवाब में जेपी ने कहा था कि ‘मान लीजिए मोरार जी भाई मुझसे बड़े हैं उम्र में। या प्रधान मंत्री हैं, वे न आएं। पर ,किसी को भेज तो सकते हैं। कांति भाई को भेज सकते हैं। जो मिनिस्ट्री में हैं,उनको भेज सकते हैं। लेकिन मेरे साथ यह सोच कर कि जेपी बीमार हैं,उन पर बोझ नहीं डालना चाहिए था कुछ और सोच कर बिलकुल मुझे अलग -थलग रखा है। कुछ पता नहीं चल रहा है कि क्या कुछ हो रहा है। पता न हो और मेैं कुछ बोलूं,वह उल्टा सीधा पड़े तो उसका परिणाम तो बुरा होगा। इसलिए में चुप हूं। पर समय पर मैं बोलूंगा।’ इस तरह जेपी के आखिरी दिन निराशा में ही बीते। सन 1979 में जेपी का निधन हो गया। कुछ ऐसा ही अंतिम दिनों में महात्मा गांधी के साथ भी हुआ था।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)