सुशांत, दिशा की मौत पर मीडिया द्वारा उठाए जा रहे सवालों से बहुत व्यथित थे…

दिशा काफी समय तक सुशांत की मैनेजर थी और ज़ाहिर है बेहद करीबी थीं।इस आत्महत्या को लेकर मीडिया के कुछ सेक्शन ने दिशा और सुशांत को लेकर खूब सवाल किये और खूब कीचड भी उछाला।

जैसे ऊँचे पहाड़ों पर अचानक बादल फटता है या समंदरी किनारों पर चक्रवात उमड़ता है, ऐसे ही आवेश में….डिप्रेशन के एक्सट्रीम झोंके में कोई आत्महत्या का निर्णेय लेता है। फिर जो कुछ भी घटता है, बेहद तेजी से घटता है। लेकिन इस अचानक से घटे कृत्य के पीछे भी एक ट्रिगर पॉइंट होता है। कोई ऐसी घटना होती है जो मन, दिमाग पर लगातार चोट करती रहती है।

Advertisement

अमेरिकी मनोचिकित्सक और मनोविज्ञान शास्त्री कहते है कि आवेश में आकर की गयी आत्महत्या के पीछे 7-8 कारण प्रमुख है जिनमे आज के दौर का एक कारण मीडिया भी है। विशेषकर चरित्रहत्या का प्रयास करने वाली टीआरपी मीडिया। वो मीडिया जो अपनी टीआरपी रेस के बीच ये नहीं सोचती कि चरित्र पर कीचड उछालने के परिणाम किसी के लिए घातक भी हो सकते हैं। और अक्सर अवसाद के चक्रवाती क्षणों में, चरित्र पर उठे सवाल, पीड़ित को और भी एक्सट्रीम अवसाद की ओर ले जाते हैं।
साइबर फॉरेंसिक यानि कंप्यूटर, मोबाइल फ़ोन की जांच से ये जाहिर हुआ है कि आत्महत्या से पहले सुशांत सिंह राजपूत, बार बार गूगल पर अपना और मैनेजर दिशा सालियान का नाम सर्च कर रहे थे।डिप्रेशन से पीड़ित सुशांत, कभी मोबाइल फ़ोन पर तो कभी अपने लैपटॉप पर दिशा और अपना नाम टाइप करते और सारे लिंक सर्च करते और पढ़ते।आत्महत्या करने से पहले , ऐसी सर्च वे गूगल पर लगातार एक हफ्ते तक करते रहे।

Advertisement

28 साल की दिशा सालियान ने मुंबई के मलाड इलाके की मल्टी स्टोरी ईमारत से कूदकर 9 जून 2020 को खुदकशी कर ली थी। दिशा काफी समय तक सुशांत की मैनेजर थी और ज़ाहिर है बेहद करीबी थीं।इस आत्महत्या को लेकर मीडिया के कुछ सेक्शन ने दिशा और सुशांत को लेकर खूब सवाल किये और खूब कीचड भी उछाला। ये सच है कि दोनों जवान थे, एक दूसरे के नज़दीकी भी थे लेकिन अब तक की जांच में दिशा और सुशांत के बारे में कोई भी ऐसी जानकारी नहीं मिली। यानी दोनों के बीच रिश्ते प्रोफेशनल थे।साइबर जांच करने वाली कम्पनी Kalina Forensic Laboratory की रिपोर्ट कहती है कि मौत से घंटे भर पहले तक सुशांत गूगल सर्च पर सक्रिय थे।साफ है कि सुशांत, दिशा की मौत पर मीडिया द्वारा उठाए जा रहे सवालों से बहुत व्यथित थे। और सच ये नहीं है कि दिशा की आत्महत्या के कुछ ही दिन बाद सुशांत ने भी जीवन का एक क्रूर निर्णेय ले लिया।

Advertisement

यहाँ सवाल सुशांत की आत्महत्या के कारण और उन्हें फांसी तक ले जाने वाले उत्प्रेरकों तक पहुँचने का नहीं है…. क्यूंकि ये जवाबदेही तो अब मुंबई और पटना पुलिस की है। सवाल तो मीडिया के उस हद तक किसी रिश्ते -नाते पर कीचड उछालने का है जिसके नतीजे घातक हो सकते हैं। कम से कम सुसाइड की रिपोर्टिंग को लेकर मीडिया को पहले से तय प्रोटोकॉल फॉलो करने चाहिए थे। अमेरिका और ब्रिटैन में बाकायदा सुसाइड रिपोर्टिंग के मानक तय हैं और सभी न्यूज़ चैनल, अपनी टीआरपी रेस को अलग कर, इन मानकों का सम्मान करते हैं।चाहे घटनास्थल की आपत्तिजनक तस्वीरों हों, सीक्रेट पत्र हों या पीड़ित/मृत व्यक्ति की अंतरंग कहानियां, अमेरिकी मीडिया इससे शुरुआती दिनों में परहेज करती है।
लेकिन अपने देश में इसके उलट होता है। यहाँ मीडिया , खासकर कुछ न्यूज़ चैनल और वेबसाइट, तथ्यों से भी इतर, गढ़ी हुईं अंतरंग कथाओं को स्क्रीन पर उतारतें है। सबूतों से खुला खिलवाड़ किया जाता है और गरीब तबके से आने वाले गवाह( जैसे ड्राइवर, मेड, घरेलू नौकर, गॉर्ड) पैसे देकर स्टूडियो में बैठाये जाते है। इससे, अक्सर जांच का सत्यानाश होता है।

समय आ गया है क़ि देश में बलात्कार की घटनाओं की तरह सुसाइड रिपोर्टिंग पर भी कुछ सख्त मानक फॉलो कराये जाएँ।
सच तो ये है कि हमारे यहां सुसाइड रिपोर्टिंग के मानक है… पर देश के बड़े संपादक और मीडिया की निगरानी करने वाली मानक संस्थाएं सख्ती नहीं करतीं। और आखिरकार टीआरपी की अंधी दौड़ में पीड़ित परिवार के मानवाधिकार, जांच से जुड़े साक्ष्य और रिपोर्टिंग के मानक, तीनो की सच बोलने के नाम पर बलि चढ़ा दी जाती है।
वैसे भी टीवी चैनल्स में आजकल सच, खालिस मुनाफे के लिए, अक्सर गढ़ा जाता है।
(चर्चित वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)